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Newsnowमंत्र-जापKarwa Chauth: प्रेम, समर्पण और विश्वास का पर्व

Karwa Chauth: प्रेम, समर्पण और विश्वास का पर्व

करवा चौथ एक ऐसा पर्व है जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं को जीवंत रखता है। यह त्योहार पति-पत्नी के बीच अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है।

Karwa Chauth एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जिसे भारतीय महिलाएँ विशेषकर उत्तर भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाती हैं। यह पर्व पति की लंबी आयु, सुख और समृद्धि के लिए रखा जाता है। करवा चौथ का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है: ‘करवा’ का अर्थ है मिट्टी का पात्र, जिसका उपयोग इस दिन पूजा में किया जाता है, और ‘चौथ’ का अर्थ है चौथा, क्योंकि यह त्योहार कार्तिक माह की चौथी तिथि को मनाया जाता है।

Karwa Chauth की परंपरा और महत्व

Karwa Chauth: A festival of love, devotion and faith

करवा चौथ की परंपरा बहुत प्राचीन है और इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व गहरा है। इसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएँ मनाती हैं, जो इस दिन निर्जल उपवास रखती हैं। महिलाएँ सूर्योदय से पहले सरगी ग्रहण करती हैं, जो उनकी सास या परिवार के बड़े बुजुर्गों द्वारा दी जाती है। इसके बाद, वे दिनभर बिना जल और भोजन के व्रत रखती हैं और रात को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करती हैं।

सरगी और व्रत की शुरुआत

व्रत की शुरुआत सूर्योदय से पहले होती है, जब महिलाएँ सरगी का सेवन करती हैं। सरगी एक प्रकार की विशेष थाली होती है, जिसमें विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाई, फल, और सूखे मेवे होते हैं। यह थाली सास अपनी बहू को देती है, और इसके साथ शुभकामनाएँ और आशीर्वाद देती है कि उसकी बेटी समान बहू के पति की उम्र लंबी हो और उसका वैवाहिक जीवन सुखमय हो। सरगी ग्रहण करने के बाद महिलाएँ जल ग्रहण नहीं करतीं और पूरा दिन उपवास रखती हैं।

Karwa Chauth की पूजा विधि

शाम के समय महिलाएँ नए कपड़े पहनकर, सोलह श्रृंगार करती हैं और करवा चौथ की पूजा के लिए तैयार होती हैं। पूजा के समय महिलाएँ करवा यानी मिट्टी के घड़े का प्रयोग करती हैं, जिसमें जल और कुछ विशेष प्रकार के अनाज भरे जाते हैं। यह करवा भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश को समर्पित किया जाता है।

Karwa Chauth: A festival of love, devotion and faith

महिलाएँ पारंपरिक गीत गाते हुए पूजा करती हैं, जिसमें करवा चौथ व्रत की महिमा और अपने पति की लंबी आयु के लिए प्रार्थना की जाती है।पुजा के दौरान महिलाएँ पंडित या बड़ी बुजुर्ग महिलाएँ Karwa Chauth की कथा सुनाती हैं, जिसमें करवा चौथ व्रत की पौराणिक कहानी और इसके महत्व के बारे में बताया जाता है। माना जाता है कि इस कथा को सुनने और पूजा विधि को सही तरीके से करने से व्रत का पुण्य फल मिलता है।

Karwa Chauth से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा वीरवती की है। इस कथा के अनुसार, वीरवती नामक एक सुंदर और प्यारी रानी थी, जो अपने सात भाइयों की अकेली बहन थी। उसकी शादी एक राजा से हुई थी। करवा चौथ के दिन वीरवती ने अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखा, लेकिन दिनभर उपवास रखने के कारण वह बहुत कमजोर हो गई।

यह भी पढ़ें: Karwa Chauth से जुड़ी सांस्कृतिक मान्यताएँ क्या हैं, विभिन्न क्षेत्र करवा चौथ कैसे मनाते हैं?

उसकी हालत देखकर उसके भाइयों को दुख हुआ और उन्होंने चंद्रमा की नकली रोशनी बनाकर अपनी बहन को व्रत तोड़ने के लिए मना लिया।वीरवती ने अपने भाइयों की बात मानकर व्रत तोड़ दिया, लेकिन जैसे ही उसने भोजन किया, उसे पता चला कि उसके पति की मृत्यु हो गई है।

वह बहुत दुखी हुई और उसने अपने पति को पुनर्जीवित करने के लिए भगवान से प्रार्थना की। उसकी श्रद्धा और भक्ति से प्रभावित होकर देवी पार्वती ने उसे आशीर्वाद दिया और उसके पति को पुनः जीवन दान दिया। इस कथा से यह विश्वास जुड़ा कि करवा चौथ का व्रत पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए महत्वपूर्ण होता है।

चंद्र दर्शन और व्रत का समापन

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रात को चंद्रमा के उदय होने पर महिलाएँ छलनी से चंद्रमा को देखती हैं और फिर अपने पति का चेहरा देखती हैं। पति अपनी पत्नी को जल और मिठाई खिलाकर व्रत का समापन कराते हैं। इस प्रक्रिया को ‘चंद्र दर्शन’ कहा जाता है, जिसमें महिलाएँ चंद्रमा को अर्घ्य देकर उनकी पूजा करती हैं। माना जाता है कि चंद्रमा को देखने से व्रती का उपवास सफल होता है और पति की लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

Karwa Chauth का वैज्ञानिक और सामाजिक पहलू

हालांकि Karwa Chauth एक धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व है, लेकिन इसके पीछे वैज्ञानिक और सामाजिक पहलू भी जुड़ा है। करवा चौथ का व्रत उस समय मनाया जाता है जब मौसम बदल रहा होता है, विशेषकर सर्दियों की शुरुआत होती है। उपवास करने से शरीर की शुद्धि होती है और पाचन तंत्र को आराम मिलता है।

इसके अलावा, इस दिन महिलाएँ पूरे दिन शारीरिक और मानसिक अनुशासन का पालन करती हैं, जिससे उनकी मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है।सामाजिक दृष्टिकोण से करवा चौथ विवाहित जोड़ों के बीच प्रेम और विश्वास को बढ़ाता है। यह व्रत पति और पत्नी के बीच आपसी स्नेह, विश्वास और एकता को मजबूती प्रदान करता है। इसके अलावा, इस दिन महिलाओं का एक साथ पूजा करना, एक-दूसरे से मिलना और सामाजिक संवाद करना भी समाज में आपसी सौहार्द्र और एकता को बढ़ाता है।

Karwa Chauth की आधुनिकता में बदलती परंपराएँ

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समय के साथ करवा चौथ की परंपराएँ भी बदल रही हैं। जहाँ पहले यह व्रत विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में मनाया जाता था, वहीं अब यह शहरी जीवन का भी हिस्सा बन गया है। आधुनिक युग में इस त्योहार को फैशन और ग्लैमर से भी जोड़ा जाने लगा है। महिलाएँ इस दिन डिज़ाइनर कपड़े, आभूषण और सोलह श्रृंगार करती हैं।

सोशल मीडिया और टीवी शोज़ में करवा चौथ के व्रत को बड़े धूमधाम से दिखाया जाता है, जिससे इसकी लोकप्रियता और भी बढ़ गई है।अब करवा चौथ केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं रहा। कई जगहों पर पुरुष भी अपनी पत्नियों के साथ उपवास रखते हैं, ताकि वे अपने वैवाहिक संबंधों में समानता और समर्थन का संदेश दे सकें। इस प्रकार, करवा चौथ अब केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि एक पारिवारिक और सामाजिक पर्व बन गया है, जिसमें पति-पत्नी दोनों की भागीदारी महत्वपूर्ण होती है।

निष्कर्ष

यह पर्व आधुनिकता और परंपराओं का अद्भुत संगम है, जहाँ एक ओर महिलाएँ अपने वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए इस व्रत का पालन करती हैं, वहीं दूसरी ओर इस दिन वे अपनी संस्कृति और समाज के साथ जुड़े रहने का भी अनुभव करती हैं। करवा चौथ केवल एक दिन का व्रत नहीं, बल्कि एक ऐसा संदेश है जो हमें यह सिखाता है कि प्रेम, समर्पण और विश्वास के बल पर जीवन के सभी रिश्तों को खूबसूरती से निभाया जा सकता है।

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