Kartik Purnima, जिसे भारत में प्रमुखता से मनाया जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को आती है। यह त्योहार विशेष रूप से हिंदू धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म में महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन का विशेष महत्व धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से है।
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Kartik Purnima शुक्रवार, नवम्बर 15, 2024 को
शुक्ल पूर्णिमा पूर्णिमा के दिन चन्द्रोदय – 04:51 PM
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 15, 2024 को 06:19 AM बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – नवम्बर 16, 2024 को 02:58 AM बजे
कार्तिक माह का महत्व
कार्तिक माह का नाम भगवान कृष्ण के नाम पर रखा गया है। यह माह विशेष रूप से पूजा, उपासना और स्नान के लिए जाना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार, इस महीने में किए गए धार्मिक कार्यों का विशेष फल मिलता है। कार्तिक माह में व्रत, उपवास और पूजा करने का विशेष महत्व होता है। इस महीने में व्रत रखने वाले लोग अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए कठिन साधना करते हैं।
पूर्णिमा का महत्व
पूर्णिमा का दिन चंद्रमा के पूर्ण रूप में दिखाई देने का प्रतीक है। इस दिन का धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान और अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन दान, पुण्य कार्य और साधना करने का विशेष महत्व है।
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Kartik Purnima की विशेषताएँ
दिव्य स्नान: इस दिन लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करने के लिए जुटते हैं। विशेषकर गंगा, यमुना, नर्मदा और गोदावरी में स्नान करने का विशेष महत्व है। यह माना जाता है कि स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
दिवाली के बाद का उत्सव: कार्तिक पूर्णिमा, दिवाली के बाद मनाया जाने वाला त्योहार है। यह पर्व दीपावली के उत्सव को समाप्त करने का प्रतीक है। लोग इस दिन घरों में दीप जलाकर अपने घरों को रोशन करते हैं और विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी से जुड़ा: इस दिन को भगवान कृष्ण से भी जोड़ा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था। इसलिए इस दिन भगवान कृष्ण की पूजा विशेष महत्व रखती है।
सिख धर्म में महत्व: सिख धर्म में भी कार्तिक पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इसे गुरु नानक देव जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, सिख श्रद्धालु गुरुद्वारों में जाकर विशेष प्रार्थना करते हैं और लंगर का प्रसाद लेते हैं।
जैन धर्म में उपवास: जैन धर्म के अनुयायी इस दिन उपवास रखते हैं। यह दिन उनके लिए आत्मा की शुद्धि और तप का प्रतीक है। जैन धर्म में इसे ‘दीपावली’ के बाद मनाए जाने वाले प्रमुख पर्वों में से एक माना जाता है।
पूजा विधि
कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूजा का विशेष महत्व है। श्रद्धालु इस दिन स्नान करने के बाद घर में या किसी पवित्र स्थान पर दीपक लगाते हैं और भगवान की पूजा करते हैं। पूजा में विशेषकर फल, मिठाई, फूल और धूप का इस्तेमाल किया जाता है। लोग अपने-अपने घरों में दीप जलाकर वातावरण को पवित्र करते हैं।
दान और पुण्य कार्य
इस दिन दान का विशेष महत्व होता है। श्रद्धालु इस दिन जरूरतमंदों को कपड़े, भोजन और अन्य सामग्री का दान करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन दान करने से व्यक्ति को अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। लोग घरों से निकलकर समाज में सेवा कार्यों में भी भाग लेते हैं, जैसे कि भूखे लोगों को खाना देना, वृक्षारोपण करना आदि।
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सांस्कृतिक महत्व
कार्तिक पूर्णिमा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा भी है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर मेले और उत्सव आयोजित किए जाते हैं। लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते हैं और सामूहिक पूजा में भाग लेते हैं।
समापन
Kartik Purnima एक ऐसा पर्व है जो न केवल आध्यात्मिकता को बढ़ावा देता है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का भी प्रतीक है। यह दिन हमें अपने जीवन में सकारात्मकता, सेवा और साधना की प्रेरणा देता है। इस दिन की पूजा और अनुष्ठान से प्राप्त पुण्य का फल व्यक्ति के जीवन को उज्ज्वल बनाता है।
इस प्रकार, Kartik Purnima का त्योहार न केवल धार्मिकता की भावना को बढ़ाता है, बल्कि हमें एक साथ मिलकर रहने, प्रेम और भाईचारे का संदेश भी देता है। इस दिन मनाए जाने वाले उत्सव हमें यह याद दिलाते हैं कि हमारी संस्कृति की जड़ें कितनी गहरी और विविधतापूर्ण हैं।
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निष्कर्ष:
Kartik Purnima एक ऐसा पर्व है जो न केवल धार्मिक आस्था और परंपराओं का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में एकता, सेवा और भाईचारे की भावना को भी उजागर करता है। इस दिन की विशेष पूजा, दान और उपासना हमें आत्मिक शुद्धि के साथ-साथ सामाजिक उत्तरदायित्व का अहसास कराती है। यह त्योहार न केवल व्यक्तिगत कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है, बल्कि सामूहिक सद्भावना और मानवता की सेवा की प्रेरणा भी देता है। कार्तिक पूर्णिमा का पर्व हमें हमारे धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों की पुनरावृत्ति कराता है, जिससे हम अपने जीवन में सकारात्मकता और समर्पण के साथ आगे बढ़ सकें।
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