Basoda 2025: बासोड़ा एक पारंपरिक हिंदू पर्व है, जिसे विशेष रूप से उत्तर भारत के कुछ हिस्सों, खासकर राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में मनाया जाता है। इसे शीतला अष्टमी के रूप में भी जाना जाता है और यह होली के बाद आने वाली अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्त शीतला माता की पूजा करते हैं और घर में एक दिन पहले बना भोजन ग्रहण करते हैं, जिसे बासी खाना कहा जाता है। इस परंपरा के पीछे यह मान्यता है कि इस दिन ठंडा और बासी भोजन खाने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं और बीमारियों से रक्षा करती हैं।
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बासोड़ा 2025: तिथि और समय
अष्टमी तिथि शुरू – 22 मार्च, 2025 – 04:23 पूर्वाह्न
अष्टमी तिथि समाप्त – 23 मार्च, 2025 – 05:23 पूर्वाह्न
Basoda का महत्व
इस दिन महिलाएँ व्रत रखती हैं और शीतला माता के मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करती हैं। विशेष रूप से इस दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता, और परिवारजन एक दिन पहले पकाए गए भोजन को ही ग्रहण करते हैं। यह पर्व संक्रामक रोगों से बचाव और स्वच्छता का संदेश भी देता है, क्योंकि यह शीतला माता की कृपा पाने और रोगों से रक्षा करने की परंपरा से जुड़ा हुआ है।
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समाज और संस्कृति पर प्रभाव
Basoda केवल धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और स्वास्थ्य जागरूकता से भी जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह त्योहार हमें भोजन को सही तरीके से संरक्षित करने और स्वच्छता का पालन करने की प्रेरणा देता है। साथ ही, यह सामुदायिक एकता को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि इस दिन लोग अपने रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ भोजन साझा करते हैं।
बासोड़ा 2025: इतिहास
Basoda या शीतला अष्टमी की उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथाओं और परंपराओं में गहराई से निहित है। शीतला नाम देवी शीतला को संदर्भित करता है, जिन्हें बीमारियों को ठीक करने के लिए जिम्मेदार देवी माना जाता है, विशेष रूप से चेचक, चेचक और बुखार जैसे संक्रमणों से संबंधित। अष्टमी शब्द पूर्णिमा के बाद के आठवें दिन को संदर्भित करता है, जिसे देवताओं की पूजा के लिए शुभ माना जाता है। त्योहार का इतिहास और पालन सदियों पुराना है, जिसका संदर्भ कई हिंदू ग्रंथों में मिलता है। विशेष रूप से, शीतला अष्टमी को होली उत्सव का विस्तार माना जाता है, जो गर्मी की तीव्र गर्मी से अधिक मध्यम, सुखद जलवायु में संक्रमण का प्रतीक है।
निष्कर्ष
Basoda पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा हुआ है, बल्कि यह पर्यावरण, स्वास्थ्य, और सामाजिक समरसता का संदेश भी देता है। 2025 में यह पर्व 23 मार्च को मनाया जाएगा, और इस दिन लोग परंपरा के अनुसार शीतला माता की पूजा कर स्वस्थ और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करेंगे।
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