एक वक्त था जब बॉलीवुड के ‘खिलाड़ी’ अक्षय कुमार ने Aankhen जैसी अनोखी थ्रिलर फिल्म करने से साफ इनकार कर दिया था। जी हां, वही फिल्म जो भारत में हीस्ट थ्रिलर्स की परिभाषा बदल कर रख दी, वही फिल्म जिसमें अमिताभ बच्चन ने निगेटिव किरदार निभाया और अक्षय कुमार ने एक दृष्टिहीन व्यक्ति का किरदार निभाकर सबको चौंका दिया—उस फिल्म को करने के लिए पहले अक्षय तैयार ही नहीं थे। लेकिन फिर ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने ‘ना’ से ‘हां’ कह दिया? यह कहानी है सस्पेंस, अहंकार, सिनेमा की ताकत और एक ट्विस्ट की, जो खुद फिल्म के क्लाइमैक्स से कम नहीं।
सामग्री की तालिका
चलिए जानते हैं उस फिल्म के पर्दे के पीछे की वो कहानी, जिसने न केवल एक कल्ट क्लासिक को जन्म दिया बल्कि अक्षय कुमार के करियर की दिशा भी बदल दी।
फिल्म जिसने सबको चौंका दिया
साल 2002 में जब Aankhen रिलीज़ हुई, तो यह भारतीय सिनेमा के लिए एक बिल्कुल नया प्रयोग था। एक ऐसी कहानी जिसमें तीन दृष्टिहीन व्यक्ति मिलकर बैंक लूटते हैं, और इस पूरे प्लान का मास्टरमाइंड होता है एक नाराज़ पूर्व बैंक मैनेजर। यह कोई टिपिकल मसाला फिल्म नहीं थी।
फिल्म में अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, अर्जुन रामपाल, सुष्मिता सेन और परेश रावल जैसे सितारे थे। निर्देशक विपुल अमृतलाल शाह की यह पहली बॉलीवुड फिल्म थी, और उन्होंने काफी जोखिम उठाया था।
लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इस फिल्म की कास्टिंग में सबसे बड़ी चुनौती अक्षय कुमार को राज़ी करना था।
अक्षय का पहला रिएक्शन: साफ इंकार
जब विपुल शाह पहली बार अक्षय कुमार के पास इस फिल्म की स्क्रिप्ट लेकर पहुंचे, तब अक्षय अपने करियर के उस दौर में थे जहां वे मुख्य रूप से एक्शन और ‘खिलाड़ी’ टाइप फिल्मों में व्यस्त थे। एक ऐसे विषय पर फिल्म जिसमें तीन दृष्टिहीन लोग बैंक लूटते हैं—यह उन्हें कुछ ज्यादा ही रिस्की और अलग लगा।
सूत्रों के अनुसार, अक्षय का पहला रिएक्शन उत्साहपूर्ण नहीं था, बल्कि संदेह से भरा हुआ था। उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि इस तरह की फिल्म दर्शकों को कैसे पसंद आएगी।
उन्होंने साफ तौर पर कहा—
“ये फिल्म चलेगी कैसे? अंधे लोग बैंक कैसे लूट सकते हैं? ये दर्शक कैसे मानेंगे?”
और इसके साथ ही उन्होंने फिल्म को करने से मना कर दिया।
कहानी में आया असली ट्विस्ट
अब सवाल यह कि उन्होंने बाद में हां क्यों कहा?
यहां पर कहानी में आता है असली ट्विस्ट।
विपुल शाह अक्षय के इंकार से निराश तो थे, लेकिन हार मानने को तैयार नहीं थे। उन्होंने एक नया तरीका अपनाया। उन्होंने अक्षय को वही गुजराती नाटक दिखाने का फैसला किया, जिस पर फिल्म Aankhen आधारित थी—आंधलो पाटो।
उन्होंने एक स्पेशल शो अरेंज किया और अक्षय को आमंत्रित किया। अक्षय ने अनमने मन से वो नाटक देखने की हामी भर दी।
लेकिन जैसे ही नाटक खत्म हुआ, अक्षय का मन बदल गया।
उन्होंने विपुल शाह से कहा—
“अब समझ में आया! अगर आप फिल्म को इसी अंदाज में बनाएंगे, तो मैं जरूर करूंगा।”
वो एक नाटक, अक्षय के सोचने का तरीका बदल गया। जो कहानी उन्हें स्क्रिप्ट में अधूरी और रिस्की लग रही थी, वही मंच पर जीवंत हो गई।
किरदार जिसने मांगी अक्षय से एक नई परफॉर्मेंस
अक्षय कुमार ने फिल्मों में कई तरह के रोल किए हैं, लेकिन Aankhen में उनका किरदार सबसे चुनौतीपूर्ण था। एक दृष्टिहीन व्यक्ति का किरदार निभाना उनके लिए बिल्कुल नया अनुभव था।
इस रोल के लिए उन्हें अपनी एक्टिंग की सारी पुरानी आदतों को छोड़ना पड़ा। आंखों से भाव नहीं दिखा सकते, विजुअल संकेतों पर रिएक्ट नहीं कर सकते, कोई नायक जैसी एंट्री नहीं—सबकुछ भीतर से निकालना था।
उन्होंने दृष्टिहीन लोगों के साथ समय बिताया, उनकी बॉडी लैंग्वेज, चलने का तरीका, बोलने का अंदाज सीखा।
और फिल्म में जो उन्होंने परफॉर्म किया, वो उनके करियर के सबसे गहरे और सधे हुए परफॉर्मेंस में से एक बन गया।
सेट पर अमिताभ बच्चन के साथ टकराव की खबरें
यह सारा ड्रामा सिर्फ स्क्रिप्ट तक सीमित नहीं था। सेट पर भी माहौल कभी-कभी काफी तनावपूर्ण हो जाता था।
एक तरफ अमिताभ बच्चन जो पहली बार निगेटिव किरदार में उतर रहे थे, और दूसरी तरफ अक्षय कुमार, जो खुद को एक गंभीर अभिनेता के रूप में साबित करने की कोशिश कर रहे थे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, सेट पर दोनों के बीच टकराव की स्थिति भी कई बार बनी। हालांकि निर्देशक विपुल शाह ने इसे ‘क्रिएटिव टेंशन’ बताया।
“जब दो मजबूत कलाकार एक ही फ्रेम में होते हैं, तो ऊर्जा जबरदस्त होती है। वो टेंशन पर्दे पर भी दिखती है, जो फिल्म के लिए अच्छा ही होता है।”
इसका असर फिल्म के क्लाइमैक्स और इंटेंस सीन में साफ देखा जा सकता है।
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जोखिम जो बन गया सुपरहिट
Aankhen सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, यह एक प्रयोग था। और यह प्रयोग हिट रहा।
फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन किया और साल 2002 की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में शुमार हो गई।
अक्षय कुमार के लिए यह एक बड़ी जीत थी। इस फिल्म ने यह साबित किया कि वे सिर्फ एक्शन हीरो नहीं हैं, बल्कि एक अच्छे अभिनेता भी हैं।
इसके बाद उन्होंने वक्त, स्पेशल 26, बेबी, और एयरलिफ्ट जैसी फिल्में कीं, जिनमें परफॉर्मेंस को प्राथमिकता दी गई।
‘Aankhen 2’: जो कभी बन नहीं पाई
फिल्म की सफलता के बाद Aankhen 2 की चर्चा जोरों पर थी। 2016 में तो फिल्म का टीज़र पोस्टर और कास्ट तक अनाउंस कर दी गई थी। अमिताभ बच्चन के साथ अनिल कपूर और अरशद वारसी का नाम सामने आया।
लेकिन फिल्म कभी बन ही नहीं पाई।
कहते हैं कि स्क्रिप्ट में बदलाव, कास्टिंग के झगड़े और प्रोड्यूसर्स के बीच कानूनी विवादों ने प्रोजेक्ट को रोक दिया। अक्षय के वापसी की उम्मीद थी, लेकिन उन्होंने कभी फिल्म साइन नहीं की।
फैंस आज भी Aankhen 2 का इंतजार कर रहे हैं।
‘Aankhen’ की विरासत
Aankhen भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक खास मुकाम रखती है। एक ऐसी फिल्म जो बिना किसी बंदूक और खलनायक के भी रोमांच पैदा कर सकती है, यह फिल्म ने साबित किया।
अक्षय कुमार का यह रोल उनके करियर के टर्निंग पॉइंट में से एक बन गया।
अगर उन्होंने उस दिन ‘ना’ ही कहा होता, तो शायद हमें ये शानदार फिल्म देखने को ही नहीं मिलती।
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अक्षय का खुद का बयान
बाद में एक इंटरव्यू में अक्षय ने कहा—
“Aankhen करना मेरे करियर के सबसे अच्छे फैसलों में से एक था। इसने मुझे सिखाया कि सबसे मुश्किल रोल ही आपके अंदर का कलाकार बाहर लाते हैं।”
यह बात अक्षय की सोच को दर्शाती है—कि कभी-कभी रिस्क ही सबसे बड़ी जीत देता है।
निष्कर्ष
Aankhen के साथ अक्षय कुमार का सफर इस बात का सबूत है कि कभी-कभी पहले इंप्रेशन धोखा दे सकते हैं। एक फिल्म जिसे उन्होंने शुरू में ठुकरा दिया, वही फिल्म उनके करियर की पहचान बन गई।
और यह सब हुआ एक गुजराती नाटक के कारण। कह सकते हैं कि अगर वो प्ले न देखा होता, तो शायद अक्षय की ‘Aankhen’ कभी न खुलतीं।
तो अगली बार जब आप Aankhen देखें और उसके ट्विस्ट से हैरान हों, तो याद रखिए—ये फिल्म बनते-बनते ही एक फिल्म जैसी कहानी है।
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