आगामी चुनावों से पहले, दिल्ली के मुख्यमंत्री Arvind Kejriwal ने स्वीकार किया है कि तीन बड़े वादे हैं जिन्हें वह अपने कार्यकाल में पूरा नहीं कर पाए, बावजूद इसके कि उन्होंने अपनी पूरी कोशिश की। केजरीवाल, जो आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता हैं, ने मीडिया से बात करते हुए इन वादों का जिक्र किया और यह माना कि कुछ चुनौतियों के कारण पार्टी अपने वादों को पूरी तरह से लागू नहीं कर पाई। उनका यह बयान उस समय आया है जब राजनीतिक माहौल चुनावी प्रचारों से काफी गर्म है और उनकी पार्टी पर विपक्ष और जनता दोनों की ओर से दबाव है।
Arvind Kejriwal ने जिन तीन वादों का उल्लेख किया, वे उनके शासन के दौरान प्रमुख मुद्दे रहे हैं और आम आदमी पार्टी का एजेंडा भी थे। अब ये अधूरे वादे राजनीतिक चर्चा का केंद्र बन गए हैं, खासकर जब चुनाव नजदीक हैं। आइए, इन तीन वादों पर गहराई से नज़र डालते हैं और केजरीवाल ने अपने बयान में इनसे संबंधित कौन सी चुनौतियाँ बताई हैं।
सामग्री की तालिका
1. दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा
Arvind Kejriwal और उनकी पार्टी ने अपने शुरुआती अभियानों के दौरान दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा किया था। यह वादा पार्टी के मुख्य एजेंडे में था, जो दिल्ली को अधिक स्वायत्तता देने का लक्ष्य रखता था, विशेष रूप से कानून-व्यवस्था, पुलिसिंग और भूमि प्रबंधन के मामलों में, जो अभी भी केंद्रीय सरकार के नियंत्रण में हैं।
केजरीवाल का मानना था कि दिल्ली, जो देश की राष्ट्रीय राजधानी है, प्रशासनिक शक्तियों की कमी के कारण सही तरीके से काम नहीं कर पा रही है, क्योंकि यह एक विशेष दर्जे के तहत एक केंद्र शासित प्रदेश है। इसके कारण दिल्ली सरकार और केंद्रीय सरकार के बीच अक्सर टकराव होते रहे हैं, खासकर कानून-व्यवस्था, बुनियादी ढांचे और अन्य नागरिक मामलों में।
हालांकि, Arvind Kejriwal ने यह स्वीकार किया कि उनकी सरकार पूर्ण राज्य का दर्जा देने के लिए प्रयासों में सफल नहीं हो पाई। उन्होंने बताया कि इसके लिए किए गए कई प्रयासों के बावजूद केंद्रीय सरकार से उन्हें अपेक्षित समर्थन नहीं मिला। भारतीय जनता पार्टी (BJP) की केंद्र सरकार ने बार-बार पूर्ण राज्य के दर्जे का विरोध किया है, यह कहते हुए कि इससे दिल्ली जैसे संवेदनशील क्षेत्र में शक्ति का असंतुलन हो सकता है।
Arvind Kejriwal ने इस पर खेद व्यक्त किया और यह माना कि इस वादे को पूरा करना उनके लिए बहुत कठिन साबित हुआ। जबकि उनकी सरकार ने कई कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया है, जैसे मुफ्त बिजली, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाएं, पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त करने की कोशिशें अब भी अधूरी हैं। आलोचकों का कहना है कि यह वादा अत्यधिक महत्वाकांक्षी था और दिल्ली की केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति निकट भविष्य में बदलने की संभावना कम है।
2. पुलिस व्यवस्था में सुधार
एक और वादा जिसे केजरीवाल ने स्वीकार किया कि वह पूरा नहीं कर पाए, वह था दिल्ली की पुलिस व्यवस्था में सुधार। अपने पहले अभियानों में उन्होंने दिल्ली में बढ़ते अपराध और विशेष रूप से महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दों पर चिंता जताते हुए पुलिस व्यवस्था को बेहतर बनाने का वादा किया था। Arvind Kejriwal की सरकार ने पुलिस बल को मजबूत करने, पुलिस के कार्यों की पारदर्शिता बढ़ाने और नागरिकों के प्रति पुलिस की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं बनाई थीं।
हालांकि, यह वादा भी पूरी तरह से लागू नहीं हो सका। दिल्ली पुलिस, जो दिल्ली की सुरक्षा व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, केंद्रीय सरकार के नियंत्रण में है, न कि राज्य सरकार के। इससे दिल्ली सरकार के लिए पुलिस पर सीधा नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है। Arvind Kejriwal ने बार-बार दिल्ली पुलिस से सहयोग की कमी का आरोप लगाया है, जो अक्सर राज्य सरकार से कम ही जवाबदेह महसूस करती है।
पुलिस सुधार दिल्ली में एक पुराना मुद्दा है, और विभिन्न सरकारों के लिए यह हमेशा एक चुनौती रही है। हालांकि केजरीवाल की सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई पहल कीं, जैसे महिलाओं के लिए हेल्पलाइन और विशेष पुलिस स्टेशन, फिर भी पुलिस की जवाबदेही और कार्यक्षमता को सुधारने में वह सफल नहीं हो पाए। उन्होंने यह स्वीकार किया कि दिल्ली पुलिस पर ज्यादा नियंत्रण न होने के कारण उनका यह वादा पूरा नहीं हो सका।
3. ट्रैफिक जाम और सार्वजनिक परिवहन में सुधार
दिल्ली में यातायात का बढ़ता दबाव हमेशा एक गंभीर समस्या रही है, और Arvind Kejriwal ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए कई कदम उठाने का वादा किया था। उनके शासन के दौरान, आम आदमी पार्टी ने ट्रैफिक कम करने, सार्वजनिक परिवहन को सुधारने और इको-फ्रेंडली परिवहन के तरीकों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी। केजरीवाल की सरकार ने दिल्ली मेट्रो नेटवर्क का विस्तार करने, इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को बढ़ावा देने और बेहतर सड़कों तथा ट्रैफिक प्रबंधन की योजनाएं बनाई थीं।
हालांकि, केजरीवाल ने यह स्वीकार किया कि ट्रैफिक की भीड़ कम करना जितना अपेक्षित था, उतना तेजी से नहीं हो सका। सार्वजनिक परिवहन में सुधार और वाहनों की संख्या में कमी लाना अब भी एक बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य साबित हुआ है। दिल्ली मेट्रो के विस्तार के बावजूद, यह पूरे शहर को कवर नहीं करता और लोगों का निजी वाहनों पर निर्भर रहना जारी है। इसके अलावा, परिवहन सुधारों में कई विघ्न और देरी आई हैं, जिससे यह वादा अधूरा रह गया।
Arvind Kejriwal ने यह माना कि ट्रैफिक जाम और प्रदूषण जैसे मुद्दों का समाधान आसान नहीं है और इसे सुलझाने के लिए अधिक समय और संसाधनों की आवश्यकता है। उन्होंने यह स्वीकार किया कि दिल्ली में ट्रैफिक की स्थिति में सुधार करना अब भी एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है।
निष्कर्ष
जब Arvind Kejriwal चुनावों से पहले इन अधूरे वादों का उल्लेख करते हैं, तो यह उनके शासन की उपलब्धियों और कमियों पर विचार करने का एक अवसर प्रदान करता है। हालांकि दिल्ली सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य और बिजली सब्सिडी जैसे क्षेत्रों में कई सफल पहल की हैं, ये अधूरे वादे यह दर्शाते हैं कि दिल्ली जैसी जटिल और राजनीतिक रूप से संवेदनशील जगह पर व्यापक बदलाव लाना एक कठिन कार्य है।
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Arvind Kejriwal का यह बयान, भले ही ईमानदार हो, यह भी याद दिलाता है कि राजनीतिक नेताओं के लिए बड़े और प्रणालीगत बदलाव लाना आसान नहीं होता। इन अधूरे वादों का चुनावी परिदृश्य पर क्या असर पड़ेगा, यह देखना होगा। जनता, खासकर दिल्ली जैसे राजनीतिक रूप से सक्रिय शहर में, इन कमियों को उनके प्रशासन की सफलताओं के साथ तौलते हुए निर्णय लेगी कि आगामी चुनावों में उन्हें किसे समर्थन देना चाहिए।
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