Chhath Puja मुख्यतः सूर्य देवता, सूर्या और उनकी पत्नी उषा की पूजा के लिए समर्पित एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाली प्रवासी समुदायों में मनाया जाता है। यह प्राचीन त्योहार मुख्यतः कार्तिक महीने (अक्टूबर-नवंबर) के दौरान मनाया जाता है और चार दिनों तक चलता है, जिनमें प्रत्येक दिन के अपने विशेष महत्व होते हैं।
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ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ
छठ पूजा का इतिहास वेदों की परंपराओं में निहित है और यह माना जाता है कि यह प्राचीन काल से मनाई जा रही है। यह एक ऐसा त्योहार है जो प्रकृति की पूजा को महत्व देता है और सूर्य को जीवन का स्रोत माना जाता है। त्योहार से जुड़ी कई पौराणिक कथाएँ हैं, जिनमें से एक महाभारत की पांडवों की कथा है, जिन्होंने अपनी निर्वासन के बाद आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस पूजा को किया था।
Chhath Puja का महत्व
छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता का आभार व्यक्त करना है, जिन्होंने पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखा है। भक्त स्वास्थ्य, समृद्धि और कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। यह त्योहार पारिवारिक मूल्यों और सामुदायिक बंधन को भी महत्व देता है, क्योंकि इसे रिश्तेदारों और पड़ोसियों के साथ मनाया जाता है।
Chhath Puja का तिथि और समय
7 नवंबर 2024
- चतुर्थी नहाय खाय
- सूर्योदय 06:36 AM पर
- सूर्योस्त 05:33 PM पर
- पञ्चमी लोहंडा और खरना
- सूर्योदय 06:37 AM पर
- सूर्योस्त 05:32 PM पर
- षष्ठी छठ पूजा, सन्ध्या अर्घ्य
- सूर्योदय 06:38 AM पर
- सूर्योस्त 05:32 PM पर
- सप्तमी उषा अर्घ्य, पारण का दिन
- सूर्योदय 06:38 AM पर
- सूर्योस्त 05:31 PM पर
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रीति-रिवाज और परंपराएं
Chhath Puja चार मुख्य दिनों में मनाई जाती है, जिनमें प्रत्येक दिन के अपने विशेष अनुष्ठान होते हैं
1. नहाय-खाय (पहला दिन): इस दिन त्योहार की शुरुआत होती है। भक्त, मुख्यतः महिलाएं, किसी नदी या जलाशय में पवित्र स्नान करती हैं, जो शुद्धता का प्रतीक है। स्नान के बाद, वे विशेष भोजन तैयार करती हैं, जिसमें चावल, दाल और सब्जियाँ शामिल होती हैं। यह भोजन सूर्य देवता को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार द्वारा सेवन किया जाता है। यह दिन शुद्धता और आध्यात्मिक तैयारी का प्रतीक है।
2. खरना (दूसरा दिन): इस दिन सूर्योदय से लेकर संध्या तक उपवास किया जाता है। सूर्यास्त के बाद, भक्त विशेष भोग तैयार करते हैं जिसे ‘खीर’ कहा जाता है, जो गुड़ और दूध से बनाई जाती है, साथ ही फलों का भी भोग लगाया जाता है। ये भोग पारिवारिक देवताओं को अर्पित किए जाते हैं और फिर परिवार के सदस्यों में बांटे जाते हैं। यह दिन मुख्य अनुष्ठानों की तैयारी का प्रतीक है।
3. छठ (तीसरा दिन): त्योहार का मुख्य दिन शाम की पूजा के लिए भक्तों द्वारा तैयारियों के साथ शुरू होता है। परिवार नदी किनारे या निर्धारित स्थानों पर इकट्ठा होते हैं और विभिन्न फलों, मिठाइयों और ‘ठेकुआ’ (गेहूं के आटे और गुड़ से बना मीठा) से भरे बास्केट बनाते हैं। सूर्य अस्त होने पर, भक्त इन बास्केटों को अर्पित करते हैं और सूर्या के लिए पारंपरिक गीत गाते हैं। जब सूर्य अस्त होता है, तब यह विशेष क्षण होता है, जब भक्त अपनी प्रार्थनाएं और आभार व्यक्त करते हैं।
4. उषा अर्घ्य (चौथा दिन): त्योहार का अंतिम दिन सूर्योदय पर प्रार्थनाओं के अर्पण के लिए समर्पित होता है। भक्त फिर से नदी किनारे इकट्ठा होते हैं और सूर्या को ‘अर्घ्य’ (जल अर्पण) प्रदान करते हैं। यह क्रिया मंत्रोच्चारण और गीतों के साथ होती है। अनुष्ठान के बाद, परिवार अक्सर प्रसाद बांटते हैं और एक साथ जश्न मनाते हैं। यह दिन नए शुरुआत और जीवन के चक्र का प्रतीक है।
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विशेष प्रथाएँ और विश्वास
छठ पूजा अन्य हिंदू त्योहारों से भिन्न है क्योंकि इसमें अनुष्ठानों और पवित्रता का कठोर पालन किया जाता है। भक्त पूरी तरह से शाकाहारी होते हैं और त्योहार के दौरान कुछ खाद्य पदार्थों और पेय से परहेज करते हैं। अनुष्ठान बड़ी श्रद्धा के साथ किए जाते हैं और अक्सर पारंपरिक गीतों के साथ होते हैं, जिन्हें “छठ गीत” कहा जाता है, जो सूर्य देवता की कथाओं को सुनाते हैं।
यह त्योहार केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है; पुरुष भी विभिन्न भूमिकाओं में भाग लेते हैं, तैयारी और अनुष्ठानों में मदद करते हैं। पूरे परिवार की भागीदारी इस त्योहार के सामुदायिक पहलू को उजागर करती है, जो एकता और एकजुटता को बढ़ावा देती है।
पर्यावरणीय महत्व
Chhath Pujaने जलाशयों और प्रकृति की पूजा पर भी जोर दिया है। अनुष्ठान नदी या तालाबों के किनारे किए जाते हैं, जो इन प्राकृतिक संसाधनों के महत्व को दर्शाते हैं। हाल के वर्षों में, जलाशयों के प्रदूषण के बारे में बढ़ती चिंताओं के कारण, कई समुदायों ने इस त्योहार के दौरान उन्हें साफ और संरक्षित करने के उपाय किए हैं। यह पर्यावरणीय जागरूकता आज की छठ पूजा की एक आवश्यक विशेषता है।
क्षेत्रीय विविधताएँ
हालाँकि Chhath Puja के मूल अनुष्ठान अधिकांशतः समान रहते हैं, लेकिन इसके मनाने के तरीके और उत्सव में क्षेत्रीय विविधताएँ भी हैं। बिहार में, उदाहरण के लिए, यह त्योहार अत्यधिक उत्साह के साथ मनाया जाता है, जिसमें सामुदायिक समारोहों का आयोजन होता है, जबकि झारखंड में यह अधिक पारिवारिक और अंतरंग होता है। नेपाल में भी, यह त्योहार “छठ” के नाम से जाना जाता है और इसमें समान अनुष्ठान और महत्व होते हैं।
चुनौतियाँ और अनुकूलन
हाल के वर्षों में, छठ पूजा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में जहाँ प्रदूषण और स्वच्छ जलाशयों की कमी इस त्योहार के उत्सव में बाधा डाल सकती है। कई शहरों ने अनुष्ठानों के लिए निर्धारित क्षेत्रों का आयोजन किया है, और कुछ ने त्योहार के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिए इको-फ्रेंडली प्रथाओं को भी अपनाया है।
निष्कर्ष:
छठ पूजा केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है; यह जीवन, प्रकृति और समुदाय का उत्सव है। इसके अनुष्ठान और प्रथाएँ गहरे सांस्कृतिक मूल्यों और प्रकृति की उन शक्तियों के प्रति गहरी श्रद्धा को दर्शाती हैं जो जीवन को बनाए रखती हैं। जैसे-जैसे यह त्योहार पीढ़ियों के बीच मनाया जाता है, यह मानव जीवन और पर्यावरण के अंतर्संबंध को याद दिलाता है। इसके जीवंत परंपराओं और अनुष्ठानों के माध्यम से, छठ पूजा उन क्षेत्रों की सांस्कृतिक धारा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है जो इसे मनाते हैं, भक्तों के बीच पहचान और संबंध की भावना को बढ़ावा देती है।
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