विशेषज्ञों का कहना है कि टेक्स्ट अलर्ट और सोशल मीडिया पर लगातार व्यस्त रहने की कीमत मानसिक और भावनात्मक तनाव (Stress) के तौर पर अदा करनी पड़ रही है। वास्तव में, ये ज्यादा ठीक होगा कि अपनी रोजाना की गतिविधियों में फोन इस्तेमाल करने के अंतराल में कमी लाएं।
फोन कैसे बढ़ाते हैं हमारे Stress के लेवल को?
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी ग्रोसमन स्कूल ऑफ मेडिसीन में बच्चे और किशोर विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर यामालिस डियाज की क्लिनिक में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए बड़ी तादाद आई। उन्होंने कहा कि चाहे बच्चा हो या किशोर, 2020 में Stress का असमान्य संयोजन देखा गया।
COVID-19 की महामारी हमारी रोजाना की जिंदगी को प्रभावित कर रही है। उसके साथ कई फैक्टर जुड़कर तनाव बढ़ा रहे हैं। कई तरीकों से हमारे फोन और डिवाइस तनाव में इजाफे की वजह बन रहे हैं।
उनका कहना है कि तनाव का कारण बननेवाले हार्मोन जैसे कोर्टिसोल सक्रिय हो जाते हैं। ये हार्मोन खतरे का सामना करने के लिए हमें तैयार करते हैं। मगर, तनावपूर्ण सूचना के नतीजे में ये तंत्र ज्यादा सक्रिय हो जाता और ज्यादा देर तक सक्रिय रहता है। ये खतरा-प्रतिक्रिया तंत्र बुनियादी तौर पर हमेशा हमारे नियमित फोन के संपर्क से ‘हाई अलर्ट’ पर रहते हैं।
डिजिटल डिवाइस जेहन को चौकन्ना रखती है
मनोवैज्ञानिक मारिया मौराटिडिस ने भी यामालिस डियाज की बातों से सहमति जताई। मारिया बाल्टीमोर, मैरीलैंड में मनोरोग अस्पताल की विशेषज्ञ हैं। उनका कहना है कि खबरों की लगातार भरमार के नतीजे में Stress और बेचैनी में बढ़ोतरी होती है। उन्होंने बताया कि डिजिटल डिवाइस वास्तव में हमारे जेहन को हर वक्त चौकन्ना रखती हैं। जिसके नतीजे में वक्त के साथ मानसिक क्षमता में गिरावट आने लगती है।
उन्होंने सोशल मीडिया को भी बेचैनी का अलग लेवल बढ़ाने का जिम्मेदार माना क्योंकि ये खुद की तुलना अन्य से करने के लिए मजबूर करता है। जिसके नतीजे में डिप्रेशन का एहसास बढ़ता है। यामालिस डियाज ने कहा कि फोन और टेक्नोलोजी डेवलपर बिल्कुल वाकिफ हैं कि वो क्या कर रहे हैं।
‘लाइक्स’ और नोटिफिकेशन के विकल्प को उन्होंने इसलिए बनाया जिससे हमारा मस्तिष्क उसका आदी हो सके। हालांकि, इससे हमें उस वक्त खुशी का एहसास होता है जब कुछ आकर्षक और दिलचस्प हो। मगर लगातार मीडिया और न्यूज अपडेट्स के नतीजे में हमारे अंदर एक दबाव का एहसास भी पैदा होता है।