होम क्राइम Muradnagar Cemetery Incident: जांच में सामने आए चौंकाने वाले सबूत,

Muradnagar Cemetery Incident: जांच में सामने आए चौंकाने वाले सबूत,

अक्तूबर में श्मशान घाट (Cemetery) गलियारे बनाए जाने की तैयारी शुरू की गई और नवंबर में इसका निर्माण शुरू कर लिंटर डाल दिया गया।

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Gaziabad: गाजियाबाद के मुरादनगर (Muradnagar) स्थित श्मशान घाट (Cemetery) हादसे में पूरे सिस्टम की मिलीभगत का खेल सामने आ रहा है। जेल भेज गया जेई चंद्रपाल सिंह 30 सिंतबर को सेवानिवृत्त हो चुका था, लेकिन उसके बाद भी वो नियमित रूप से नगर पालिका में टेंडर से जुड़े सभी काम देख रहा था। पालिका से लेकर ऊपर सिस्टम में बैठे अधिकारियों को पूरी जानकारी थी लेकिन किसी ने उसे नहीं रोका। बल्कि सेवानिवृत्त होने के बाद श्मशान घाट (Cemetery) के सुंदरीकरण व जीर्णोद्धार कार्य का संशोधित एस्टिमेट भी बनाया गया था जिसमें कुल खर्च को 54 लाख से बढ़ाकर 65 लाख किया जाना था। 

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10 लाख रुपया अतिरिक्त खर्च होने का एस्टिमेट अगली पालिका बोर्ड बैठक में रखकर पास कराया जाना था, जिसको लेकर ठेकेदार और पालिका अधिकारियों की पहले से मौखिक सहमति बनी थी। प्रशासन और शासन के निर्देश पर चार स्तर की जांच चल रही है। एसआईटी और मजिस्ट्रेट जांच जारी है। अभी तक की जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। 

IN Muradnagar Cemetery Incident many Shocking evidence revealed in the investigation
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अवर अभियंता सीपी सिंह बीते वर्ष 30 सितंबर को ही सेवानिवृत्त हो गया था लेकिन उसके बाद पालिका में करोड़ों रुपये के निर्माण कार्यों के एस्टिमेट बैक डेट से बनाता रहा। इसके साथ ही निर्माण कार्यों का सत्यापन भी उसके द्वारा बैक डेट से किया गया। अक्तूबर में श्मशान घाट (Cemetery) गलियारे बनाए जाने की तैयारी शुरू की गई और नवंबर में इसका निर्माण शुरू कर लिंटर डाल दिया गया। इसके डिजाइन को कहीं से पास कराया गया। इसको लेकर पालिका अधिकारी, जेई और ठेकेदार के बीच सहमति बनीं कि आगामी बोर्ड बैठक में एक संशोधित एस्टिमेट के साथ प्रस्ताव रखा जाएगा, जिसमें दस लाख रुपया पास करा लिया जाएगा।

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एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया है कि मौके से कुछ दस्तावेज जांच टीमों को मिले हैं जिनसे साफ होता है कि श्मशान घाट (Cemetery) का संशोधित एस्टिमेट बनाया जा रहा था लेकिन कुछ साक्ष्य कमिश्नर और आईजी की अध्यक्ष वाली कमेटी ने सील कर दिए हैं। सील किए गए साक्ष्यों के आधार पर ही आगे की कार्रवाई होगी। सेवानिवृत्त होने के बाद सीपी सिंह का नियमित रूप से अपने कार्यालय में आना जाना बना रहा है और फाइलों पर बैक डेट से हस्ताक्षर करने का खेल चलता रहा।  

फाइल अक्तूबर के बाद बनी लेकिन हस्ताक्षर 30 सिंतबर से पहले के

एक सेवानिवृत्त जेई को गिरफ्तार कर जेल भेजने का फैसला आसान नहीं था। खासकर जब यह बात सामने आ रही थी कि गलियारे का निर्माण अक्तूबर से दिसंबर के बीच हुआ है लेकिन प्रारंभिक जांच में कई अहम साक्ष्य मिले, जिन्होंने सीपी सिंह की गिरफ्तारी की राह को आसान बना दिया। बताया जा रहा है कि नगर पालिका में अक्तूबर से दिसंबर 2020 के बीच बड़ी संख्या में फर्मों को भुगतान किए गए। 

इन्हीं भुगतान की फाइलों ने कब्र खोद दी। कुछ भुगतान संबंधित फाइलें अक्तूबर में ही तैयार की गई। फर्मों की तरफ से प्रस्तुत किए गए भुगतान बिलों पर 30 सितंबर के बाद की डेट लिखी थी लेकिन जेई सीपी सिंह ने बैक डेट (30 सितंबर) डालकर कर सत्यापन कर दिया। इसी से साफ हो गया कि जेई नियमित तौर पर पालिका में काम कर रहा था और उसी की शह पर पूरा लिंटर डाला गया। 

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