Lord Shiva एक हिंदू देवता हैं और सर्वोच्च होने के पहलू का प्रतिनिधित्व करते हैं। संस्कृत में शिव का अर्थ ‘शुद्ध और संहारक’ है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिव त्रिमूर्ति के बीच संहारक हैं। Lord Shiva योगियों के देवता हैं और एक सर्वज्ञ योगी के रूप में वर्णित हैं, जो कैलाश पर्वत पर एक तपस्वी जीवन जीते हैं। Lord Shiva को कई नामों से जाना जाता है महादेव, पशुपति, भैरव, विश्वनाथ, भोले नाथ, शंभू और शंकर। शिव ब्रह्मांडीय नर्तक हैं और उन्हें नर्तकियों के भगवान नटराज के रूप में भी जाना जाता है। हिंदू Lord Shiva को शिवलिंग के रूप में अन्य देवताओं के मंदिर से अलग उनके अलग मंदिर में स्थापना कर पहचानते हैं।
Lord Shiva के मंत्र जो आपकी सभी समस्याओं को हल करने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली हैं
महामृत्युंजय मंत्र को त्रयंबक मंत्र के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में, महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद का एक श्लोक है और इसे सबसे शक्तिशाली शिव मंत्र माना जाता है। यह दीर्घायु प्रदान करता है, विपत्तियों को दूर करता है और असमय मृत्यु को रोकता है। यह भय को भी दूर करता है और समग्र रूप से ठीक करता है।
महा मृत्युंजय मंत्र
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् II
यह अत्यंत शक्तिशाली मंत्र हमें मृत्यु के भय से बचने में मदद करता है। भगवान शिव को मृत्यु और विनाश के देवता के रूप में जाना जाता है, इसलिए वे ही हमें मृत्यु से बचा सकते हैं। जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहे लोगों के परिवार के सदस्य अक्सर प्रभावितों के जल्द स्वस्थ होने के लिए इस विशेष मंत्र का पाठ करते हैं।
Lord Shiva मंत्र
ओम नमः शिवाय (ॐ नमः शिवाय)
महा शिवरात्रि मुहूर्त
महा शिवरात्रि मंगलवार, 1 मार्च, 2022
निशिता काल पूजा का समय – 12:08 पूर्वाह्न से 12:58 पूर्वाह्न, 02 मार्च
शिवरात्रि पारण समय – 06:45 पूर्वाह्न, 02 मार्च
Lord Shiva के भक्तों के लिए शिवरात्रि का विशेष महत्व है। शिवरात्रि शिव और शक्ति के अभिसरण का महान पर्व है। माघ महीने में कृष्ण पक्ष के दौरान चतुर्दशी तिथि को दक्षिण भारतीय कैलेंडर के अनुसार महा शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है। हालाँकि उत्तर भारतीय कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन के महीने में मासिक शिवरात्रि को महा शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है। दोनों कलैण्डरों में यह चंद्र मास की नामकरण परंपरा है जो भिन्न-भिन्न है। हालाँकि, उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय दोनों, एक ही दिन महा शिवरात्रि मनाते हैं।
प्रहर पूजा | समय |
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा का समय | 06:21 अपराह्न से 09:27 अपराह्न तक |
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा का समय | 09:27 अपराह्न से 12:33 पूर्वाह्न, 02 मार्च |
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा का समय | 12:33 पूर्वाह्न से 03:39 पूर्वाह्न, 02 मार्च |
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा का समय | 03:39 पूर्वाह्न से 06:45 पूर्वाह्न, 02 मार्च |
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ | 03:16 पूर्वाह्न को, 01 मार्च, 2022 |
चतुर्दशी तिथि समाप्त | 01:00 पूर्वाह्न, 02 मार्च, 2022 |
ओम जय शिव ओंकारा Lord Shiva की सबसे प्रसिद्ध आरती में से एक है। यह प्रसिद्ध आरती भगवान शिव से संबंधित अधिकांश अवसरों पर पढ़ी जाती है। यह आरती पूरी मंडली द्वारा गाई जाती है, जबकि देवता की पूजा उत्सव के दीपक से की जाती है।
आरती शिवजी की : ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरती जो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
Lord Shiva ध्यानम्
पूजा की शुरुआत Lord Shiva के ध्यान से करनी चाहिए। ध्यान शिवलिंग के सामने करना चाहिए। Lord Shiva का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए।
ध्यायेन्नित्यं महेशं रजतगिरिनिभं चारुचन्द्रावतंसं
रत्नाकल्पोज्ज्चलाङ्गं परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्।
पद्मासीनं समन्तात् स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं
विश्वाद्यं विश्वबीजं निखिलभयहरं पञ्चवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥
Dhyayennityam Mahesham Rajatagirinimam Charu Chandravatamsam।
Ratnakalpojjvalanga Parashumrigavarabhitihastam Prasannam॥
Padmasinam Samantat Stutamamaragnairvyaghra Kritim Vasanam।
Vishvavadyam Vishvabijam Nikhila-Bhayaharam Panchavaktram Trinetram॥
Lord Shiva ध्यान मन्त्र का अर्थ
चाँदी के पर्वत के समान जिनकी श्वेत कान्ति है, जो सुन्दर चन्द्रमा को आभूषण रूप धारण करते हैं, रत्नमय अलंकार से जिनका शरीर उज्ज्वल है, जिनके हाथों में परशु तथा मृग, वर और अभय मुद्राएँ हैं, जो प्रसन्न हैं, पद्म के आसन पर विराजमान हैं, देवतागण जिनके चारों ओर खड़े होकर स्तुति करते हैं, जो बाघ की खाल पहनते हैं, जो विश्व के आदि, जगत् की उत्पत्ति के बीज और समस्त भयों को हरनेवाले हैं, जिनके पाँच मुख और तीन नेत्र हैं, उन महेश्वर का प्रतिदिन ध्यान करें|
शिव पंचानन ध्यानम्
प्रालेयाचलमिदुकुन्दधवलं गोक्षीरफेनप्रभं,
भस्माभ्यंगमनङ्गदेहदहनज्वालावलीलोचनम्।
विष्णुब्रह्ममरुद्गणार्चितपदं चार्ग्वेदनादोदयं,
वन्देऽहं सकलं कलङ्करहितं स्थाणोर्मुखं पश्चिमम्॥१॥
गौरं कुङ्कुमपङ्किलं सुतिलकं व्यापाण्डु कण्ठस्थलं,
भ्रूविक्षेपकटाक्षवीक्षणलसद्संसक्तकर्णोत्पलम्।
स्निग्धं बिम्बफलाधरं प्रहसितं नीलालकालंकृतं,
वन्दे याजुषवेदघोषजनकं वक्त्रं हरस्योत्तरम् ॥२॥
सांवर्ताग्नितटित्प्रतप्तकनकप्रस्पर्धितेजोमयं,
गम्भीरध्वनिसामवेदजनकं ताम्राधरं सुन्दरम्।
अर्धेन्दुद्युति फालपिङ्गलजटाभारप्रबद्धोरगं,
वन्दे सिद्धसुरासुरेन्द्रनमितं पूर्वं मुखं शूलिनः ॥३॥
कालाभ्रभ्रमराञ्जनद्युतिनिभं व्यावर्तिपिङ्गेक्षणं,
कर्णोद्भासितभोगिमस्तकमणिप्रोत्फुल्लदंष्ट्राङ्कुरम्।
सर्पप्रोतकपालमिन्दुशकलव्याकीर्णसच्छेखरं,
वन्दे दक्षिणमीश्वरस्य वदनं चाथर्ववेदोदयम् ॥४॥
व्यक्ताव्यक्तनिरूपितं च परमं षट्त्रिंशतत्त्वाधिकम्,
तस्मादुत्तरतत्त्वमक्षरमिति ध्येयं सदा योगिभिः।
ओंकारादि समस्तमन्त्रजनकं सूक्ष्मादिसूक्ष्मं परम्,
वन्दे पञ्चममीश्वरस्य वदनं खं व्यापि तेजोमयम् ॥५॥
एतानि पञ्चवदनानि महेश्वरस्य ये कीर्तयन्ति पुरुषाः सततं प्रदोषे।
गच्छन्ति ते शिवपुरीं रुचिरैर्विमानैः क्रीडन्ति नन्दनवने सह लोकपालैः ॥६॥
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॥ श्री शिवशंकरजी की आरती ॥
हर हर हर महादेव!
सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव सबके स्वामी।
अविकारी अविनाशी, अज अन्तर्यामी॥
हर हर हर महादेव!
आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥
हर हर हर महादेव!
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर तुम त्रिमूर्तिधारी।
कर्ता, भर्ता, धर्ता, तुम ही संहारी॥
हर हर हर महादेव!
रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औढरदानी।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता अभिमानी॥
हर हर हर महादेव!
मणिमय-भवन निवासी, अति भोगी रागी।
सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥
हर हर हर महादेव!
छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल व्याली।
चिता भस्मतन त्रिनयन, अयनमहाकाली॥
हर हर हर महादेव!
प्रेत-पिशाच-सुसेवित, पीत जटाधारी।
विवसन विकट रूपधर, रुद्र प्रलयकारी॥
हर हर हर महादेव!
शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।
अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मन-हारी॥
हर हर हर महादेव!
निर्गुण, सगुण, निरञ्जन, जगमय नित्य प्रभो।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥
हर हर हर महादेव!
सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय धाता।
प्रेम-सुधा-निधि प्रियतम, अखिल विश्व त्राता॥
हर हर हर महादेव!
हम अतिदीन, दयामय! चरण-शरण दीजै।
सब विधि निर्मल मति कर, अपना कर लीजै॥
हर हर हर महादेव!
Lord Shiva चालीसा
शिव चालीसा Lord Shiva पर आधारित एक भक्ति छंद है। यह एक लोकप्रिय प्रार्थना है जो 40 छंदों से बनी है और प्रतिदिन या Lord Shiva को समर्पित विशेष त्योहारों पर पढ़ी जाती है।
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही, पाठ करो चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
स्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
Lord Shiva श्लोक
कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि ॥
इस मंत्र से शिवजी की स्तुति की जाती है। इसका अर्थ इस प्रकार है-
कर्पूरगौरं– कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।
करुणावतारं– करुणा के जो साक्षात् अवतार हैं।
संसारसारं– समस्त सृष्टि के जो सार हैं।
भुजगेंद्रहारम्– इसका अर्थ है जो सांप को हार के रूप में धारण करते हैं।
सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि– इसका अर्थ है कि जो शिव, पार्वती के साथ सदैव मेरे हृदय में निवास करते हैं, उनको मेरा नमन है।
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हिन्दी अनुवाद:
Lord Shiva मंत्र का पूरा अर्थ– जो कर्पूर जैसे गौर वर्ण वाले हैं, करुणा के अवतार हैं, संसार के सार हैं और भुजंगों का हार धारण करते हैं, वे भगवान शिव माता भवानी सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।
कर्पूरगौरं करुणावतारं….मंत्र का महत्व
किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरं करुणावतारं….मंत्र ही क्यों बोला जाता है, इसके पीछे बहुत गहरे अर्थ छिपे हुए हैं। भगवान शिव की ये स्तुति शिव-पार्वती विवाह के समय विष्णु द्वारा गाई हुई मानी गई है। अमूमन ये माना जाता है कि शिव शमशान वासी हैं, उनका स्वरुप बहुत भयंकर और अघोरी वाला है। लेकिन, ये स्तुति बताती है कि उनका स्वरुप बहुत दिव्य है।
Lord Shiva को सृष्टि का अधिपति माना गया है, वे मृत्युलोक के देवता हैं, उन्हें पशुपतिनाथ भी कहा जाता है, पशुपति का अर्थ है संसार के जितने भी जीव हैं (मनुष्य सहित) उन सब का अधिपति। ये स्तुति इसी कारण से गाई जाती है कि जो इस समस्त संसार का अधिपति है, वो हमारे मन में वास करे। शिव श्मशान वासी हैं, जो मृत्यु के भय को दूर करते हैं। हमारे मन में शिव वास करें, मृत्यु का भय दूर हो।