होम संस्कृति Mauni Amavasya 2022: अर्थ, शुभ मुहूर्त, कथा और महत्व

Mauni Amavasya 2022: अर्थ, शुभ मुहूर्त, कथा और महत्व

ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म में पवित्र गंगा नदी का पानी मौनी अमावस्या के दिन अमृत में बदल जाता है।

मौनी अमावस्या माघ महीने के मध्य में आती है और इसे माघी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

मौनी का अर्थ है मौन। जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं, वे बिना कुछ बोले उपवास करते हैं। और चूंकि वे मौन धारण करते हैं, इसलिए अमावस्या को Mauni Amavasya भी कहा जाता है।

Mauni Amavasya 2022 शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि शुरू – 02:18 अपराह्न 31 जनवरी, 2022

अमावस्या तिथि समाप्त – 01 फरवरी, 2022 को पूर्वाह्न 11:15

Mauni Amavasya व्रत कथा 

एक प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार कांचीपुरी में एक ब्राह्मण अपनी पत्नी धनवती और सात पुत्रों-एक पुत्री के साथ रहता था। पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने अपने सभी पुत्रों की शादी के बाद अपनी पुत्री के लिए वर ढूंढना चाहा। ब्राह्मण ने पुत्री की कुंडली पंडित को दिखाई। कुंडली देख पंडित बोला कि पुत्री के जीवन में बैधव्य दोष है। यानी वो विधवा हो जाएगी। पंडित ने इस दोष के निवारण के लिए एक उपाय बताया।

उन्होंने बताया कि कन्या अलग सोमा (धोबिन) का पूजन करेगी तो यह दोष दूर हो जाएगा। गुणवती को सोमा को अपनी सेवा से खुश करना होगा। ये उपाय जान ब्राह्मण ने अपने छोटे पुत्र और पुत्री को सोमा को लेने भेजा। सोमा सागर पार सिंहल द्वीप पर रहती थी। छोटा पुत्र सागर पार करने की चिंता में एक पेड़ की छाया के नीचे बैठ गया। उस पेड़ पर गिद्ध का परिवार रहता था। शाम होते ही गिद्ध के बच्चों की मां अपने घोसले में वापस आई तो उसे पता चला कि उसके गिद्ध बच्चों ने भोजन नहीं किया।

गिद्ध के बच्चे अपनी मां से बोले की पेड़ के नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं।

जब तक वो कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे। ये बात सुन गिद्धों की मां उन दो प्राणियों के पास गई और बोली, मैं आपकी इच्छा को जान गई हूं और मैं आपको सुबह सागर पार करा दूंगी। लेकिन उससे पहले कुछ खा लीजिए, मैं आपके लिए भोजन लाती हूं।

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दोनों भाई-बहन को अगले दिन सुबह गिद्ध ने सागर पार कराया। दोनों सोमा के घर पहुंचे और बिना कुछ बताए उसकी सेवा करने लगे। उसका घर लीपने लगे। सोमा ने एक दिन अपनी बहुओं से पूछा, कि हमारे घर को रोज़ाना सुबह कौन लीपता है? सबने कहा कि कोई नहीं हम ही घर लीपते-पोतते हैं। लेकिन सोमा को अपने परिवार वालों की बातों का भरोसा नही हुआ।

एक रात को इस रहस्य को जानने के लिए सुबह तक जागी और उसने पता लगा लिया कि ये भाई-बहन उसके घर को लीपते हैं। सोमा ने दोनों से बात की और दोनों ने सोमा को बहन के दोष और निवारण की बात बताई। सोमा ने गुणवती को उस दोष से निवारण का वचन दे दिया, लेकिन गुणवती के भाई ने उन्हें घर आने का आग्रह किया। सोमा ने ना नहीं किया वो दोनों के साथ ब्राह्मण के घर पहुंची।

सोमा ने अपनी बहुओं से कहा कि उसकी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट ना करें, मेरा इंतज़ार करें। ये बोलकर वो गुणवती के साथ उसके घर चई गई। गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हुआ। लेकिन सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरंत अपने पुण्यों का फल गुणवती को दिया। उसका पति तुरंत जीवित हो गया। सोमा दोनों को आशार्वाद देकर चली गई। गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र जमाता और पति की मृत्यु हो गई।

सोमा ने पुण्य फल को संचित करने के लिए रास्ते में पीपल की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की और व्रत रखा। परिक्रमा पूर्ण होते ही उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे। निष्काम भाव से सेवा का फल उसे मिला।

Mauni Amavasya (माघी अमावस्या) की मान्यता

Mauni Amavasya 2022: Meaning, Muhurta and Story
Mauni Amavasya में सबसे पहले गंगा में स्नान करें, घर में हो तो पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें

ऐसा माना जाता है कि हिंदू धर्म में पवित्र गंगा नदी का पानी Mauni Amavasya के दिन अमृत में बदल जाता है। इस मान्यता के कारण मौनी अमावस्या का दिन हिंदू कैलेंडर में गंगा में पवित्र डुबकी लगाने का सबसे महत्वपूर्ण दिन है।

उत्तर भारतीय कैलेंडर के अनुसार, Mauni Amavasya माघ महीने के मध्य में आती है और इसे माघी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। बहुत से लोग मौनी अमावस्या के दिन ही नहीं बल्कि पूरे माघ महीने के दौरान गंगा में पवित्र डुबकी लगाने का संकल्प लेते हैं। दैनिक स्नान अनुष्ठान पौष पूर्णिमा से शुरू होता है और माघ पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है।

कुंभ मेले के दौरान, Mauni Amavasya इलाहाबाद के प्रयाग में सबसे महत्वपूर्ण स्नान दिवस है और इसे अमृत योग के दिन और कुंभ पर्व के दिन के रूप में जाना जाता है। अगला कुंभ मेला 2025 में है।

Mauni Amavasya (मौन अमावस) के नाम से भी जाना जाता है। जैसा कि नाम से पता चलता है कि यह हिंदू धर्म में मौन का दिन भी है, जब लोग पूरे दिन एक शब्द भी न बोलकर एक दिन का उपवास रखने का संकल्प लेते हैं।

Mauni Amavasya का व्रत कैसे किया जाता है?

Mauni Amavasya पर विष्णु जी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें

• Mauni Amavasya में सबसे पहले गंगा में स्नान करें, घर में हो तो पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें 

• विष्णु जी का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें

• विष्णु जी की रोज़ाना की तरह पूजा कर तुलसी की 108 बार परिक्रमा लें

• पूजा के बाद अन्न, वस्त्र या धन को दान में दें

• सुबह स्नान से ही मौन रहें

• इस मंत्र का जाप करते रहें

Mauni Amavasya का व्रत मंत्र

Mauni Amavasya में सबसे पहले गंगा में स्नान करें, घर में हो तो पानी में गंगाजल डालकर स्नान करें

गंगे च यमुनेश्चैव गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी जलेस्मिनेसंनिधि कुरू।।

अर्थात् हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी नदियों! (मेरे स्नान करने के) इस जल में (आप सभी) पधारिये ।

बहुधा स्नान करते समय बोले जाने वाला श्लोक, जो इस प्रकार है ।

गंगा सिंधु सरस्वती च यमुना गोदावरी नर्मदा
कावेरी सरयू महेन्द्रतनया चर्मण्यवती वेदिका।
क्षिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता जया गण्डकी
पूर्णाः पूर्णजलैः समुद्रसहिताः कुर्वन्तु मे मंगलम् ।।

इस श्लोक का अर्थ भी यही है कि उपर्युक्त सभी जल से परिपूर्ण नदियां, समुद्र सहित मेरा कल्याण करें । गंगा की महिमा तो वर्णनातीत है । उसे प्रणाम कर अपना जीवन सार्थक करने की परंपरा अति प्राचीन है ।

नमामि गंगे! तव पादपंकजं
सुरसुरैर्वन्दितदिव्यरूपम् ।
भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यम्
भावानुसारेण सदा नराणाम् ।।

अर्थात् हे गंगाजी! मैं देव व दैत्यों द्वारा पूजित आपके दिव्य पादपद्मों को प्रणाम करता हूँ । आप मनुष्यों को सदा उनके भावानुसार भोग एवं मोक्ष प्रदान करती हैं । यही नहीं, स्नान के समय गंगाजी के १२ नामों वाला यह श्लोक भी बोला जाता है, जिसमें गंगाजी का यह वचन निहित हैं कि स्नान के समय कोई मेरा जहाँ जहाँ भी स्मरण करेगा, मैं वहाँ के जल में आ जाऊँगी ।

नंदिनी नलिनी सीता मालती च महापगा ।
विष्णुपादाब्जसम्भूता गंगा त्रिपथगामिनी ।।
भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी ।
द्वादशैतानि नामानि यत्र यत्र जलाशये ।।
स्नानोद्यतः स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम् ।।

साधारण कूप, बावडी व अन्य जलाशयों के अलावा अन्य पवित्र नदियों के जल में भी गंगा के आवाहन को आवश्यक माना गया है । स्कन्दपुराण का कथन है,

स्नानकालेऽश्रन्यतीर्थेषु जप्यते जाह्नवी जनैः ।
विना विष्णुपदीं कान्यत् समर्था ह्यघशोधने।

इसका अर्थ यह है कि अन्य तीर्थों में स्नान करते समय भी लोग गंगा का नाम ही जपा करते हैं , गंगा के बिना अन्य कौन पाप धोने में समर्थ है? अग्निपुराण के मतानुसार तीर्थ के जल से गंगाजल का जल अधिक श्रेष्ठ है।

“तीर्थतोयं ततः पुण्यं गंगातोयं ततोsधिकम्”। सहस्र नामों से पवित्र देवापगा गंगा के स्तवन गाये जाते हैं , तथा अपने अघ-मर्षण की अभ्यर्थना की जाती है, दूध, गंध, धूप, दीप, पुष्प, माल्य आदि से पूजा-अर्चना की जाती है । गंगा के भू पर अवतरण की तिथि पर गंग-दशहरा मनाया जाता है व स्नान-पुण्य आदि करके श्रद्धालु जन स्वयं को पवित्र करते हैं ।

ज्येष्ठ मास उजियारी दशमी, मंगलवार को गंग

अवतरी मैया मकरवाहिनी, दुग्ध-से उजले अंग

परमेश्वरी भागीरथी के तीर पर किसी भी भांति रहने का सुयोग मिले , ऐसी अभिलाषा महर्षि वाल्मीकि ने भी ‘श्रीगङ्गाष्टकम्’ में व्यक्त की है। उनके शब्दों में,

त्वत्तीरे तरुकोटारान्तर्गतो गंगे विहंगो वरं
त्वन्नीरे नरकान्तकारिणि वरं मत्स्योsथवा कच्छपः ।

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