हाल ही में, इंफोसिस के सह-संस्थापक Narayana Murthy ने भारत में कोचिंग कक्षाओं की व्यापक प्रवृत्ति पर तीखी आलोचना की है। मूर्ति, जो आईटी उद्योग में अपने योगदान और शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रसिद्ध हैं, ने यह व्यक्त किया है कि ये कक्षाएँ बच्चों के सीखने के अनुभव और समग्र विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं।
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कोचिंग कक्षाओं का उदय
भारत में कोचिंग कक्षाएँ शिक्षा परिदृश्य का एक अभिन्न हिस्सा बन गई हैं। बढ़ती प्रतिस्पर्धा और उच्च परीक्षा परिणामों के दबाव के कारण, छात्र और माता-पिता अक्सर इन कक्षाओं का रुख करते हैं ताकि वे एक प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्राप्त कर सकें। ये कक्षाएँ छात्रों के प्रदर्शन को बढ़ाने, विशेष ज्ञान प्रदान करने और विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी में मदद करने का वादा करती हैं।
Narayana Murthy
- रोट लर्निंग पर अत्यधिक जोर: मूर्ति का कहना है कि कोचिंग कक्षाएँ अक्सर रोट लर्निंग (मेमोराइजेशन) पर जोर देती हैं, जिससे अवधारणाओं की गहरी समझ नहीं होती। उनका कहना है कि यह दृष्टिकोण आलोचनात्मक सोच या समस्या-समाधान क्षमताओं को प्रोत्साहित नहीं करता, बल्कि सतही समझ पैदा करता है, जो दीर्घकालिक रूप से हानिकारक हो सकता है।
- दबाव और तनाव: मूर्ति के अनुसार, कोचिंग कक्षाओं का दबाव छात्रों को अत्यधिक तनाव में डालता है। अकादमिक सफलता की निरंतर खोज, जो इन कक्षाओं द्वारा प्रेरित होती है, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं और थकावट का कारण बन सकती है। उनका मानना है कि यह वातावरण अव्यवसायिक है और समग्र विकास में योगदान नहीं करता।
- मूलभूत क्षमताओं की अनदेखी: Narayana Murthy यह बताते हैं कि कोचिंग कक्षाएँ अक्सर विशिष्ट परीक्षाओं की तैयारी पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जिससे मूलभूत क्षमताओं का विकास नहीं होता। यह संकीर्ण फोकस छात्रों को व्यापक शिक्षा से वंचित कर सकता है, जो उनके समग्र विकास और भविष्य की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
- स्व-शिक्षण की कमी: मूर्ति का कहना है कि कोचिंग कक्षाओं पर निर्भरता स्व-शिक्षण और आत्म-निर्भर अध्ययन के महत्व को कम कर सकती है। वे मानते हैं कि जो छात्र इन कक्षाओं पर अत्यधिक निर्भर रहते हैं, वे जीवनभर के लिए आवश्यक अनुशासन और जिज्ञासा को विकसित नहीं कर पाते।
- आर्थिक विषमताएँ: मूर्ति का एक और चिंताजनक बिंदु आर्थिक विषमताएँ हैं, जो कोचिंग कक्षाओं द्वारा बढ़ाई जा सकती हैं। जिन परिवारों के पास अधिक संसाधन होते हैं, वे गुणवत्ता की कोचिंग का खर्च उठा सकते हैं, जो संभावित रूप से एक असमान खेल का मैदान बना सकता है। यह विषमता शैक्षिक असमानताओं को और बढ़ा सकती है और कम समृद्ध पृष्ठभूमि वाले छात्रों के अवसरों को सीमित कर सकती है।
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वैकल्पिक सुझाव
अपनी आलोचना के मद्देनजर, Narayana Murthy कुछ वैकल्पिक सुझाव प्रस्तुत करते हैं:
- स्कूल शिक्षा को मजबूत करना: मूर्ति का सुझाव है कि स्कूलों को अपनी शिक्षण विधियों और पाठ्यक्रमों में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। अवधारणात्मक समझ और आलोचनात्मक सोच पर जोर देकर, स्कूल अतिरिक्त कोचिंग की आवश्यकता को कम कर सकते हैं और एक मजबूत शिक्षा प्रदान कर सकते हैं।
- स्व-शिक्षण को प्रोत्साहित करना: वे स्व-शिक्षण और जिज्ञासा की संस्कृति को बढ़ावा देने की सिफारिश करते हैं। छात्रों को स्वतंत्र रूप से विषयों का अन्वेषण करने और सीखने में सच्ची रुचि विकसित करने के लिए प्रोत्साहित करना उन्हें बाहरी कोचिंग के बिना सफलता प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
- समग्र विकास को बढ़ावा देना: Narayana Murthy समग्र विकास की महत्वता को रेखांकित करते हैं, जिसमें भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य शामिल है। शैक्षिक संस्थानों को केवल अकादमिक प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, पूर्णत: व्यक्तित्व का पोषण करना चाहिए।
- आर्थिक विषमताओं को संबोधित करना: आर्थिक विषमताओं से निपटने के लिए, मूर्ति सुझाव देते हैं कि गुणवत्ता की शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नीतियाँ लागू की जानी चाहिए। सरकारी पहल और समर्थन प्रणालियों को सभी छात्रों के लिए अवसर प्रदान करने के लिए काम करना चाहिए, चाहे उनकी वित्तीय पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
निष्कर्ष
Narayana Murthy की कोचिंग कक्षाओं की आलोचना वर्तमान शैक्षिक ढांचे में महत्वपूर्ण समस्याओं को उजागर करती है। उनका दृष्टिकोण शिक्षा के वितरण के तरीके पर पुनर्विचार की आवश्यकता को रेखांकित करता है और समग्र विकास के लिए प्रणालीगत परिवर्तनों की आवश्यकता पर जोर देता है। जबकि कोचिंग कक्षाएँ अकादमिक तैयारी के लिए एक लोकप्रिय उपकरण बन गई हैं, Narayana Murthy की आलोचना शिक्षा के मूलभूत पहलुओं और समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करने की याद दिलाती है।
इन चिंताओं का समाधान करके, एक अधिक संतुलित और समान शैक्षिक प्रणाली बनाई जा सकती है जो अकादमिक उत्कृष्टता और व्यक्तिगत विकास दोनों को प्रोत्साहित करती है।
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