इसरो की स्पैडेक्स डॉकिंग (SPADEX Docking) प्रणाली की सफलता पर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसे भारत की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया। उनके बयान में कई महत्वपूर्ण पहलू सामने आए, जो भारत के अंतरिक्ष मिशनों के भविष्य और उनकी लागत-प्रभाविता को दर्शाते हैं।
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ISRO की Spadex Docking प्रणाली के मुख्य बिंदु:
भारत का वैश्विक स्थान
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि इस सफलता के बाद भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो गया है, जिनके पास यह जटिल और उन्नत तकनीक है।
भारत अब दुनिया के 3-4 देशों के उस समूह का हिस्सा बन गया है, जो स्वदेशी डॉकिंग तकनीक में महारत रखता है।
स्वदेशी और लागत-प्रभावी उपलब्धि
यह पूरी उपलब्धि स्वदेशी रूप से हासिल की गई है, जो भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की आत्मनिर्भरता को दर्शाती है।
मिशन की लागत 400 करोड़ रुपये से कम रही, जो वैश्विक स्तर पर ऐसे मिशनों की लागत से बेहद कम है।
भविष्य के अंतरिक्ष मिशन
इस डॉकिंग प्रणाली का उपयोग भारत के भविष्य के मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशनों के लिए महत्वपूर्ण होगा।
इसमें अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष स्टेशन के अंदर और बाहर ले जाने, पेलोड और नमूनों के परिवहन जैसे कार्यों को सक्षम बनाने की क्षमता होगी।
कक्षीय संयंत्र अनुसंधान (Orbital Plant Research)
डॉ. जितेंद्र सिंह ने Spadex Docking के एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू का जिक्र किया, जिसमें कक्षीय संयंत्र अनुसंधान को भविष्य के अंतरिक्ष विज्ञान के लिए अहम बताया।
अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में विस्तार
उन्होंने बताया कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था अगले 8-10 वर्षों में 5 गुना बढ़ने की उम्मीद है।
यह उपलब्धि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को तेजी से बढ़ाने और नए निवेश आकर्षित करने में सहायक होगी।
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अंतरिक्ष में भारत की दीर्घकालिक योजनाएं
भारत अब अंतरिक्ष में दीर्घकालिक अनुसंधान, विकास और मिशन संचालन की योजना बना रहा है।
डॉकिंग सिस्टम जैसे तकनीकी नवाचार भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों और अनुसंधान उपकरणों को कक्षीय स्टेशन तक ले जाने के लिए अनिवार्य होंगे।
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