तमिलनाडु: सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के उस कानून को बरकरार रखा है, जिसमें तमिलनाडु में ‘Jallikattu’ खेल की अनुमति दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स (तमिलनाडु अमेंडमेंट) एक्ट, 2017 जानवरों के दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम करता है।
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तमिलनाडु के कानून मंत्री एस रघुपति ने फैसले की घोषणा की और कहा कि तमिलनाडु के लोग जल्लीकट्टू के खेल को जारी रखना चाहते हैं। हमारी संस्कृति, हमारी परंपराएं-सब कुछ संरक्षित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अच्छा फैसला दिया है। हम सभी जानवरों को क्रूरता से बचाएंगे। जल्लीकट्टू में किसी भी जानवर के साथ क्रूरता नहीं होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जल्लीकट्टू, बैलगाड़ी दौड़, कानून के अनुसार सही है, और जानवरों की रक्षा और सुरक्षा करना राज्य सरकार का कर्तव्य है। बता दें कि जल्लीकट्टू को ‘एरुथाझुवुथल’ के नाम से भी जाना जाता है।
Jallikattu का इतिहास
Jallikattu का इतिहास 2500 साल से भी ज्यादा पुराना है। तमिलनाडु में पोंगल (नया साल) के तीसरे दिन बैलों की पूजा की जाती है और जल्लीकट्टू के बाद खेल खेला जाता है।
इस खेल में खिलाड़ियों को मैदान में दौड़ते सांड को नियंत्रित करना होता है। सांड को काबू में करने के लिए लोग उसके पीछे दौड़े है; इसे जानवर के खिलाफ क्रूरता बताया गया था।
2011 में केंद्र सरकार ने बैलों को भी प्रदर्शनी और प्रशिक्षण के लिए पशुओं की सूची में शामिल किया। इसके बाद पीपल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स (पेटा) ने जल्लीकट्टू के खेल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर रोक लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद तमिल सरकार ने खेल जारी रखने के लिए केंद्र से अध्यादेश की मांग की थी। 2016 में, केंद्र सरकार ने कुछ शर्तों के तहत खेल को फिर से अनुमति देने के लिए एक अधिसूचना जारी की।
लेकिन Jallikattu को अनुमति देने वाले कानून का एक बार फिर विरोध हुआ और पेटा इस मामले को लेकर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो याचिका खारिज कर दी, लेकिन रिव्यू पिटीशन फाइल होने के बाद कोर्ट इस पर सुनवाई के लिए राजी हो गया।