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भारत में Sustainable Fashion: पारंपरिक विरासत और पर्यावरण अनुकूल परिधानों की ओर एक कदम

सस्टेनेबल फैशन भारत के लिए एक अवसर है – अपनी पारंपरिक विरासत को पुनर्जीवित करने का, पर्यावरण को संरक्षित करने का, और एक समावेशी एवं नैतिक फैशन इंडस्ट्री का निर्माण करने का।

“भारत में Sustainable Fashion” विषय पर केंद्रित है, जिसमें पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार फैशन उद्योग की आवश्यकता, भारतीय पारंपरिक वस्त्रों की भूमिका, और नए नवाचारों के साथ टिकाऊ फैशन की दिशा में उठाए जा रहे कदमों की विस्तृत जानकारी दी गई है। इसमें कपड़ा उद्योग की पर्यावरणीय चुनौतियाँ, उपभोक्ता जागरूकता, फैशन ब्रांड्स की भूमिका और सरकारी नीतियों पर भी चर्चा की गई है।

भारत में सस्टेनेबल फैशन: एक पर्यावरण अनुकूल परिधान क्रांति

Sustainable Fashion in India: Embracin

Sustainable Fashion आज जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियों का सामना कर रही है, तब Sustainable Fashion (सतत फैशन) एक ऐसी अवधारणा बनकर उभरा है जो न केवल फैशन इंडस्ट्री में बदलाव ला रही है, बल्कि उपभोक्ताओं की सोच को भी नया आयाम दे रही है। भारत जैसे देश में, जहां पारंपरिक वस्त्र, हथकरघा, और हस्तकला की समृद्ध विरासत है, Sustainable Fashion न केवल एक आवश्यकता है, बल्कि यह हमारी संस्कृति का पुनर्जागरण भी है।

इस लेख में हम जानेंगे Sustainable Fashion क्या है, इसकी आवश्यकता क्यों है, भारत में इसका वर्तमान परिदृश्य, चुनौतियाँ, संभावनाएं, सरकार और निजी क्षेत्र की भूमिका, और भविष्य की दिशा।

1. सस्टेनेबल फैशन क्या है?

Sustainable Fashion का आशय ऐसे परिधानों और फैशन उत्पादों से है जो पर्यावरण और समाज पर कम से कम नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इसमें कच्चे माल के चयन से लेकर उत्पादन, वितरण, उपयोग और रीसायक्लिंग तक की संपूर्ण प्रक्रिया शामिल होती है।

मुख्य विशेषताएँ:

  • पर्यावरण के अनुकूल कच्चे माल (जैसे ऑर्गेनिक कॉटन, बांस, जूट) का उपयोग
  • न्यूनतम जल और ऊर्जा की खपत
  • वेस्ट को कम करना
  • स्थानीय कारीगरों को बढ़ावा देना
  • पारदर्शी आपूर्ति श्रृंखला
  • टिकाऊ और लंबे समय तक चलने वाले परिधान बनाना

2. सस्टेनेबल फैशन की आवश्यकता क्यों?

(i) पर्यावरणीय प्रभाव:

  • परंपरागत Sustainable Fashion इंडस्ट्री विश्व की दूसरी सबसे प्रदूषित करने वाली इंडस्ट्री मानी जाती है।
  • सिंथेटिक फाइबर्स प्लास्टिक आधारित होते हैं जो माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण का कारण बनते हैं।
  • डाई और रसायनों का नदियों और जल स्रोतों में गिरना पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाता है।

(ii) सामाजिक प्रभाव:

  • फैशन इंडस्ट्री में श्रमिक शोषण की समस्या, खासकर विकासशील देशों में बहुत व्यापक है।
  • सस्टेनेबल फैशन में सामाजिक न्याय को भी महत्व दिया जाता है।

(iii) उपभोक्ता जागरूकता:

  • आज के उपभोक्ता सिर्फ स्टाइल ही नहीं, बल्कि नैतिकता और पर्यावरण को भी महत्व देते हैं।
  • ‘Slow Fashion’ का चलन बढ़ रहा है जिसमें गुणवत्ता, शिल्पकला और टिकाऊपन को प्राथमिकता दी जाती है।

3. भारत में सस्टेनेबल फैशन का इतिहास और परंपरा

भारत में सदियों से कपड़ा उद्योग पर्यावरण और समाज से जुड़ा रहा है:

(i) खादी और हथकरघा:

  • महात्मा गांधी द्वारा प्रोत्साहित खादी आंदोलन, आत्मनिर्भरता और सतत विकास का प्रतीक था।
  • हथकरघा और हस्तकला आज भी हजारों कारीगरों को जीविका प्रदान करते हैं।

(ii) पारंपरिक रंग और तकनीक:

  • प्राकृतिक रंगों और हाथ से बुनाई की तकनीकें जैसे अजरख, बंधेज, कांथा, जमदानी आदि Sustainable Fashion का आदर्श उदाहरण हैं।

4. भारत में सस्टेनेबल फैशन का वर्तमान परिदृश्य

(i) प्रमुख ब्रांड्स और पहलें:

  • FabIndia, B Label (Bombay Hemp Company), No Nasties, Okhai, Upasana जैसे ब्रांड्स Sustainable Fashion को बढ़ावा दे रहे हैं।
  • Lakmé Fashion Week जैसे फैशन प्लेटफॉर्म्स भी ‘सस्टेनेबिलिटी’ थीम को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

(ii) स्टार्टअप्स की भूमिका:

  • कई युवा उद्यमी अब इको-फ्रेंडली परिधान, अपसाइकलिंग, और सर्कुलर फैशन मॉडल पर काम कर रहे हैं।

(iii) डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग:

  • सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स सस्टेनेबल ब्रांड्स के प्रचार-प्रसार में सहायक हैं।

5. सस्टेनेबल फैशन के फायदे

  1. पर्यावरण संरक्षण: प्रदूषण, जल और ऊर्जा की खपत में कमी
  2. स्थानीय रोजगार: ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार सृजन
  3. स्वास्थ्य के लिए अच्छा: ऑर्गेनिक फैब्रिक त्वचा के लिए सुरक्षित
  4. लंबे समय तक टिकाऊ परिधान: एक बार खरीदने पर वर्षों तक इस्तेमाल संभव
  5. आर्थिक रूप से विवेकपूर्ण: ‘Cost per Wear’ की दृष्टि से सस्ता

6. चुनौतियाँ

  1. लागत: इको-फ्रेंडली मटेरियल और हैंडमेड प्रोडक्ट्स की लागत अधिक होती है।
  2. उपभोक्ता शिक्षा की कमी: लोगों को अभी भी तेज फैशन की आदत है।
  3. स्केलेबिलिटी: कारीगर आधारित उत्पादन प्रणाली को बड़े स्तर पर लागू करना कठिन।
  4. सप्लाई चेन पारदर्शिता की कमी

7. सरकार और नीतियों की भूमिका

  • ‘मेक इन इंडिया’, ‘वोकल फॉर लोकल’, ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी योजनाएं सस्टेनेबल फैशन को प्रोत्साहित करती हैं।
  • सरकार हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योग को सब्सिडी, प्रशिक्षण और विपणन सहायता प्रदान करती है।
  • Textile Ministry द्वारा प्राकृतिक रेशा उद्योग को बढ़ावा

8. उपभोक्ताओं की भूमिका

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  1. कम परंतु गुणवत्तापूर्ण खरीदारी करें
  2. ‘री-यूज़’, ‘री-सायकल’, ‘अप-सायकल’ को अपनाएं
  3. स्थानीय कारीगरों और ब्रांड्स को समर्थन दें
  4. सस्ते फैशन से बचें जो श्रमिक शोषण को बढ़ावा देता है
  5. कपड़ों की देखभाल कर उनका जीवन बढ़ाएं

9. भविष्य की दिशा

  • सस्टेनेबल फैशन केवल एक ट्रेंड नहीं, बल्कि भविष्य की आवश्यकता है।
  • भारत जैसे विविधता से भरपूर देश में इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं।
  • तकनीकी नवाचार जैसे बायोफैब्रिकेशन, 3D प्रिंटेड फैशन, और AI आधारित फैशन प्लानिंग भविष्य को नया आकार देंगे।
  • फैशन शिक्षा में सस्टेनेबिलिटी को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जा रहा है।

निष्कर्ष

Sustainable Fashion भारत के लिए एक अवसर है – अपनी पारंपरिक विरासत को पुनर्जीवित करने का, पर्यावरण को संरक्षित करने का, और एक समावेशी एवं नैतिक फैशन इंडस्ट्री का निर्माण करने का। उपभोक्ता, उद्यमी, सरकार और समाज सभी को मिलकर इस दिशा में आगे बढ़ना होगा।

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