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पापांकुशा एकादशी व्रत दिलाए पाप से मुक्ति, पूजा विधि और व्रत कथा, जानिए शुभ मुहूर्त।

आश्विन शुक्ल पक्ष की ये एकादशी कल्याण करने वाली है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से जीवन में वैभव की प्राप्ति होती है। साथ ही मनचाही इच्छाओं की पूर्ति और घर में पैसों की बढ़ोतरी होती है। जानिए पूजा विधि, व्रत कथा और शुभ मुहूर्त।

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आश्विन शुक्ल पक्ष की उदया तिथि एकादशी सुबह 10 बजकर 47 मिनट तक ही रहेगी उसके बाद पापांकुशा एकादशी है। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार आश्विन शुक्ल पक्ष की ये एकादशी कल्याण करने वाली  है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से जीवन में वैभव की प्राप्ति होती है। साथ ही मनचाही इच्छाओं की पूर्ति और घर में पैसों की बढ़ोतरी होती है। वैवाहिक जीवन सुखद बनता है, सभी कामों में सफलता मिलती है, बच्चों की तरक्की सुनिश्चित करेगी। जानिए पापांकुशा एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि  और व्रत कथा। 

पापांकुशा एकादशी का शुभ मुहूर्त

एकादशी प्रारंभ26 अक्टूबर  9 बजकर 2 मिनट से शुरू

एकादशी समाप्त–  27 अक्टूबर सुबह 10 बजकर 47 मिनट तक
व्रत पारण समय 28 अक्तूबर  सुबह 6 बजकर 30 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 44 मिनट तक

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पापांकुशा एकादशी का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, पाप रूपी हाथी को पुण्य रूपी अंकुश से भेदने के कारण ही इसे पापांकुशा एकादशी के  नाम से जाना जाता है। श्रीकृष्ण के अनुसार जो व्यक्ति पाप करता है। वह इस व्रत को करके अपने पापों से मुक्ति पा सकता है। 

पापांकुशा एकादशी पूजा विधि

सुबह उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए विधिविधान से पूजा करें। सबसे पहले घर में या मंदिर में भगवान विष्णु लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल पीकर आत्मा शुद्धि करें। फिर रक्षासूत्र बांधे। इसके बाद शुद्ध घी से दीपक जलाकर शंख और घंटी बजाकर पूजन करें। व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें और दिन भर उपवास करें।

सारी रात जागकर भगवान का भजनकीर्तन करें। इसी साथ भगवान से किसी प्रकार हुआ गलती के लिए क्षमा भी मांगे। दूसरे दिन सुबह भगवान विष्णु का पूजन पहले की तरह करें।  इसके बाद ब्राह्मणों को ससम्मान आमंत्रित करके भोजन कराएं और अपने अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे। इसके बाद सभी को प्रसाद देने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करें।

पापांकुशा एकादशी व्रत कथा

शास्त्रों के अनुसार, प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था, वह बड़ा क्रूर था। उसका सारा जीवन हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति पाप कर्मों में बीता। जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिये को लेने आए और यमदूत ने बहेलिये से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे। यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा। 

हे ऋषिवर! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं। कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए। उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करके को कहा।

महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया और इस व्रत पूजन के बल से भगवान की कृपा से वह विष्णु लोक को गया। वहीं यमराज को खाली हाथ वापस यमलोक आना पड़ा। 

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