Maa Durga: कामाख्या मंदिर भारत के असम राज्य में स्थित एक अत्यंत प्राचीन और महत्वपूर्ण शक्ति पीठ है, जो देवी कामाख्या को समर्पित है। यह मंदिर गुवाहाटी शहर के पास नीलांचल पहाड़ियों पर स्थित है और देवी कामाख्या की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। शक्ति पीठों में से एक होने के नाते, कामाख्या मंदिर का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे तांत्रिक परंपराओं और शक्ति साधना का केंद्र माना जाता है।
देवी सती के अंगों के गिरने से जुड़े शक्ति पीठों में यह मंदिर मुख्य रूप से प्रसिद्ध है, और यहाँ देवी के योनि-रूप की पूजा की जाती है। यही कारण है कि अन्य देवी मंदिरों की तरह यहाँ Maa Durga की मूर्ति की पूजा नहीं की जाती।
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कामाख्या मंदिर का पौराणिक महत्व
कामाख्या मंदिर का पौराणिक महत्व अत्यंत गहरा और विशिष्ट है। हिंदू पुराणों के अनुसार, सती ने अपने पिता दक्ष द्वारा अपमानित किए जाने पर यज्ञ कुंड में आत्मदाह कर लिया था। इस घटना से भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और सती के मृत शरीर को लेकर तांडव नृत्य करने लगे।
शिव के इस क्रोध को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को काटकर विभाजित किया, जिसके परिणामस्वरूप सती के शरीर के 51 भाग पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर गिरे। इन्हीं स्थानों को शक्ति पीठों के नाम से जाना जाता है। कामाख्या मंदिर वह स्थान है जहाँ सती का योनि भाग गिरा था, और इसलिए यह मंदिर महिलाओं की प्रजनन क्षमता और सृजनात्मक शक्ति का प्रतीक है।
कामाख्या को देवी शक्ति के रूप में पूजा जाता है, और यहाँ की पूजा पद्धति विशेष रूप से तांत्रिक साधनाओं पर आधारित है। यहां कोई विशिष्ट देवी मूर्ति की पूजा नहीं होती, बल्कि गर्भगृह में स्थित योनि-आकार का एक पत्थर, जिसे जलधारा से निरंतर सींचा जाता है, मुख्य पूजा स्थल है। यह पत्थर देवी की शक्ति और उनके सृजनात्मक पहलू का प्रतीक है। इस कारण से यह मंदिर अपने आप में अद्वितीय है और इसकी पूजा पद्धति भी अन्य देवी मंदिरों से काफी भिन्न है।
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Maa Durga की प्रतिमा की पूजा न होने का कारण
कामाख्या मंदिर में Maa Durga प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती है, जबकि अन्य शक्ति पीठों या देवी मंदिरों में दुर्गा या अन्य देवी की मूर्तियों की पूजा सामान्य रूप से होती है। इसके पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कारण हैं, जो कामाख्या मंदिर को अन्य मंदिरों से अलग करते हैं।
तांत्रिक परंपरा का प्रभाव: कामाख्या मंदिर मुख्य रूप से तांत्रिक साधनाओं के लिए प्रसिद्ध है। तांत्रिक पूजा पद्धतियों में मूर्ति पूजा का विशेष महत्व नहीं होता, बल्कि यहां ध्यान और साधना का केंद्र उस ऊर्जा और शक्ति पर होता है जो प्रत्यक्ष रूप में सृष्टि का आधार मानी जाती है। देवी कामाख्या को सृजनात्मक ऊर्जा के रूप में देखा जाता है, और इसी कारण यहाँ कोई मूर्ति की पूजा नहीं होती।
तांत्रिक साधनाओं में यह माना जाता है कि देवी की मूर्ति या प्रतिमा उनकी वास्तविक शक्ति का प्रतीक नहीं होती, बल्कि वे एक निराकार शक्ति हैं, जो संसार की समस्त सृजनात्मक शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस प्रकार, कामाख्या मंदिर में देवी का कोई साकार रूप न होते हुए उनके ऊर्जा रूप की पूजा की जाती है।
योनि पूजा का महत्व: कामाख्या मंदिर में देवी की पूजा योनि के रूप में की जाती है, जो सृजन की शक्ति का प्रतीक है। यहाँ योनि-रूप में देवी का पूजन स्त्रीत्व, प्रजनन और सृजनात्मक शक्ति को सम्मान देने के उद्देश्य से होता है। यह पूजा पद्धति देवी के उस पहलू पर केंद्रित है, जो संसार के निर्माण और निरंतरता को बनाए रखता है। इसके विपरीत, दुर्गा प्रतिमा की पूजा अन्य स्थानों पर होती है, जहाँ देवी के रक्षक और विनाशक रूप को अधिक महत्व दिया जाता है। कामाख्या मंदिर में देवी के इस सृजनात्मक रूप को पूजा जाता है, इसलिए यहाँ Maa Durga की मूर्ति की पूजा नहीं की जाती।
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रक्त पूजा और अंबुवाची मेले का महत्व: कामाख्या मंदिर में सालाना अंबुवाची मेला आयोजित होता है, जो इस मंदिर का एक प्रमुख धार्मिक आयोजन है। इस मेले के दौरान यह माना जाता है कि देवी कामाख्या मासिक धर्म में होती हैं, और मंदिर के द्वार तीन दिनों तक बंद रहते हैं। चौथे दिन मंदिर को फिर से खोला जाता है और श्रद्धालुओं को देवी के दर्शन का अवसर मिलता है। इस दौरान योनि-रूप की देवी की विशेष पूजा होती है और इस पर्व का संबंध भी सृजन और प्रजनन से है।
यह पर्व देवी की उस शक्ति का प्रतीक है, जो प्रकृति के चक्र और जीवन के निरंतर प्रवाह को दर्शाता है। यहाँ रक्त और जीवन चक्र को पूजा का केंद्र माना जाता है, जो इसे दुर्गा पूजा से अलग बनाता है, जहाँ देवी के युद्ध और विनाशकारी रूप की पूजा की जाती है।
दुर्गा की प्रतिमा की अनुपस्थिति: कामाख्या मंदिर में Maa Durga की प्रतिमा की पूजा न होने का एक और प्रमुख कारण यह है कि यहाँ देवी को सृजन और प्रजनन की देवी के रूप में पूजा जाता है। Maa Durga का प्रतिमा का स्वरूप मुख्य रूप से देवी के युद्ध और रक्षक रूप को दर्शाता है, जबकि कामाख्या मंदिर में देवी के मातृत्व और सृजनात्मक शक्ति को अधिक महत्व दिया जाता है। यहाँ की पूजा पद्धति और अनुष्ठान देवी के इसी मातृत्व और प्रजनन से जुड़े पहलुओं पर केंद्रित होते हैं।
कामाख्या मंदिर और तांत्रिक साधना
कामाख्या मंदिर को तांत्रिक साधनाओं का प्रमुख केंद्र माना जाता है। तांत्रिक परंपराओं में देवी की पूजा शक्ति के निराकार रूप में की जाती है, और यह पूजा साधक के व्यक्तिगत विकास और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में होती है। यहाँ तांत्रिक साधक देवी के प्रत्यक्ष रूप की पूजा से अधिक उनके आंतरिक और मानसिक रूप की साधना करते हैं। तांत्रिक परंपराओं में मूर्ति पूजा की अपेक्षा साधना और ध्यान का अधिक महत्व होता है, और इसी कारण कामाख्या मंदिर में भी देवी की प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती, बल्कि उनकी निराकार शक्ति को पूजा जाता है।
कामाख्या मंदिर में Maa Durga प्रतिमा की पूजा न होना एक अद्वितीय परंपरा का हिस्सा है, जहाँ देवी के सृजनात्मक और मातृत्व रूप को पूजा जाता है, न कि उनके युद्ध और विनाशकारी रूप को। यह मंदिर तांत्रिक साधनाओं और सृजनात्मक ऊर्जा के प्रतीक के रूप में प्रसिद्ध है, जो इसे अन्य देवी मंदिरों से अलग करता है। इस प्रकार, कामाख्या मंदिर का धार्मिक, पौराणिक और सामाजिक महत्व अत्यंत विशिष्ट है, जो इसे भारतीय धार्मिक परंपराओं में एक विशेष स्थान प्रदान करता है।
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