Newsnowसंस्कृतिKoraput के आदिवासी खाद्य प्रणाली का बदलाव

Koraput के आदिवासी खाद्य प्रणाली का बदलाव

कोरापुट में उगाया जाने वाला "काला जीरा चावल" एक सुगंधित धान प्रजाति है, जिसे जनवरी 2024 में भौगोलिक संकेतक (GI) टैग मिला है।

ओडिशा के Koraput जिले में विभिन्न आदिवासी समुदाय रहते हैं, जिनकी पारंपरिक खाद्य प्रणाली लंबे समय से स्थानीय रूप से उपलब्ध फसलों और वन संसाधनों पर निर्भर रही है। हाल के वर्षों में, इनकी खाद्य टोकरी (फूड बास्केट) में महत्वपूर्ण बदलाव आया है, जिसमें पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक कृषि नवाचारों का समावेश किया गया है।

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Koraput के पारंपरिक खाद्य स्रोत

Transformation of the tribal food system of Koraput

जंगली कंद (ट्यूबर) एवं अनाज:
Koraput के आदिवासी समुदाय मानसून के महीनों (जून-अक्टूबर) के दौरान भोजन की कमी से निपटने के लिए जंगली खाद्य कंदों (स्थानीय भाषा में “कंदा”) का उपयोग करते रहे हैं। ये कंद पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।

मोटे अनाज (मिलेट्स):
उंगलियों का बाजरा (फिंगर मिलेट), जिसे स्थानीय रूप से “मंडिया” कहा जाता है, इन समुदायों का मुख्य आहार रहा है। इसे पारंपरिक रूप से अलग-अलग रूपों में खाया जाता है, जिससे यह पोषण और ऊर्जा प्रदान करता है।

खेती में नवाचार और फसल विविधीकरण

पारंपरिक फसलों को पुनर्जीवित करने की पहल:
भोजन की असुरक्षा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा ऐसी उपेक्षित और कम उपयोग की जाने वाली पारंपरिक फसलों (neglected and under-utilized species – NUS) को पुनर्जीवित करने पर बल दिया जा रहा है, जो स्थानीय पर्यावरण के अनुकूल हैं।

Koraput काला जीरा चावल:
कोरापुट में उगाया जाने वाला “काला जीरा चावल” एक सुगंधित धान प्रजाति है, जिसे जनवरी 2024 में भौगोलिक संकेतक (GI) टैग मिला है। इस मान्यता से न केवल इसकी गुणवत्ता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है, बल्कि किसानों को इसे उगाने के लिए प्रोत्साहन भी मिल रहा है।

महिला सशक्तिकरण और खाद्य प्रसंस्करण में सुधार

Transformation of the tribal food system of Koraput

महिला स्वयं सहायता समूहों की भूमिका:
12 गांवों में स्थापित छोटे आटा चक्कियों (मिनी फ्लोर मिल्स) ने मोटे अनाजों (मिलेट्स) को पीसने के काम को आसान बना दिया है। पहले यह काम पूरी तरह से महिलाओं पर निर्भर था और अत्यधिक मेहनत भरा था।

स्व-रोजगार और सामाजिक सशक्तिकरण:
इन आटा चक्कियों को महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों द्वारा संचालित किया जा रहा है, जिससे न केवल उनका श्रम बच रहा है, बल्कि उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी मिल रहा है।

परंपरा और आधुनिकता का संतुलन

Koraput की आदिवासी खाद्य प्रणाली में हो रहा यह बदलाव पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक कृषि तकनीकों का मिश्रण है।
फसल विविधीकरण, स्थानीय फसलों का संरक्षण, और महिला सशक्तिकरण जैसी पहल कोरापुट को खाद्य सुरक्षा और पोषण की दिशा में आत्मनिर्भर बना रही हैं।
✔ इससे न केवल स्थानीय किसानों को लाभ हो रहा है, बल्कि आदिवासी संस्कृति और खाद्य विरासत को संरक्षित करने में भी मदद मिल रही है।

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