Newsnowशिक्षाभारत में Vice-Chancellors की नियुक्ति प्रक्रिया: नियम, चुनौतियाँ और नवीनतम परिवर्तन

भारत में Vice-Chancellors की नियुक्ति प्रक्रिया: नियम, चुनौतियाँ और नवीनतम परिवर्तन

सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में स्पष्ट किया है कि राज्य विधान के तहत भी कुलपति की नियुक्ति UGC के नियमों के अनुरूप होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, Gambhirdan K. Gadhvi बनाम गुजरात राज्य (2022) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि राज्य विधान के तहत कुलपति की नियुक्ति UGC के नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकती।

भारत में विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (Vice-Chancellors) की नियुक्ति प्रक्रिया विश्वविद्यालय के प्रकार—केंद्रीय या राज्य विश्वविद्यालय—के आधार पर भिन्न होती है। यह प्रक्रिया विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के विनियमों और संबंधित विश्वविद्यालय अधिनियमों द्वारा निर्देशित होती है।

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केंद्रीय विश्वविद्यालयों में Vice-Chancellors की नियुक्ति:

Appointment Process of Vice-Chancellors in India

नियुक्ति प्राधिकारी: भारत के राष्ट्रपति, जो केंद्रीय विश्वविद्यालयों के विज़िटर (Visitor) होते हैं, कुलपति की नियुक्ति करते हैं।

चयन प्रक्रिया: केंद्र सरकार एक खोज-सह-चयन समिति (Search-cum-Selection Committee) का गठन करती है, जो योग्य उम्मीदवारों के नामों का पैनल तैयार करती है। विज़िटर इस पैनल में से कुलपति का चयन करते हैं। यदि विज़िटर पैनल से असंतुष्ट होते हैं, तो वे नए नामों की मांग कर सकते हैं。

राज्य विश्वविद्यालयों में Vice-Chancellors की नियुक्ति:

नियुक्ति प्राधिकारी: संबंधित राज्य के राज्यपाल, जो अक्सर विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति (Chancellor) होते हैं, कुलपति की नियुक्ति करते हैं。

चयन प्रक्रिया: राज्य सरकारें भी खोज-सह-चयन समितियों का गठन करती हैं, जो योग्य उम्मीदवारों की सूची तैयार करती हैं। हालांकि, नियुक्ति प्रक्रिया राज्य के विश्वविद्यालय अधिनियमों के अनुसार होती है, जो राज्यों के बीच भिन्न हो सकती है।

UGC विनियमों का पालन:

Appointment Process of Vice-Chancellors in India

UGC विनियम, 2018 के अनुसार, कुलपति पद के लिए उम्मीदवार के पास विश्वविद्यालय प्रणाली में प्रोफेसर के रूप में कम से कम 10 वर्षों का शिक्षण अनुभव होना चाहिए। साथ ही, खोज-सह-चयन समिति में UGC के अध्यक्ष या उनके नामांकित सदस्य का शामिल होना आवश्यक है। यदि राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम और UGC विनियमों के बीच कोई विरोधाभास होता है, तो UGC विनियम प्रभावी माने जाते हैं, क्योंकि शिक्षा समवर्ती सूची का विषय है, और केंद्रीय कानून को प्राथमिकता दी जाती है।

न्यायिक दृष्टिकोण:

सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में स्पष्ट किया है कि राज्य विधान के तहत भी कुलपति की नियुक्ति UGC के नियमों के अनुरूप होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, Gambhirdan K. Gadhvi बनाम गुजरात राज्य (2022) मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि राज्य विधान के तहत कुलपति की नियुक्ति UGC के नियमों का उल्लंघन नहीं कर सकती।

नवीनतम परिवर्तनों पर विचार:

हाल ही में, UGC ने Vice-Chancellors और प्रोफेसरों की नियुक्ति के मानदंडों में बदलाव का प्रस्ताव किया है। इन परिवर्तनों के तहत, अब कुलपति पद के लिए प्रोफेसर होना अनिवार्य नहीं होगा, और विशेष क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखने वाले व्यक्ति बिना NET और PhD के भी असिस्टेंट प्रोफेसर बन सकेंगे, यदि उनके पास राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार या सम्मान हो।

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