सर्वाइकल कैंसर, जो लंबे समय से एक ‘साइलेंट किलर’ यानी चुपचाप जान लेने वाला रोग बना हुआ था, अब विज्ञान की एक बड़ी उपलब्धि के कारण मात खाने वाला है। AIIMS ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे इस खतरनाक बीमारी की पहचान जल्दी, सस्ती और सरल तरीके से हो सकेगी। आइए जानें, यह तकनीक कितनी क्रांतिकारी है और आम महिलाओं के लिए क्या मायने रखती है।
सामग्री की तालिका
सर्वाइकल कैंसर: एक खामोश खतरा
दुनियाभर में सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में चौथा सबसे आम कैंसर है, लेकिन यह ऐसा रोग है जिसे समय रहते पहचाना और रोका जा सकता है। भारत जैसे विकासशील देशों में समस्या इलाज नहीं बल्कि जांच और समय पर पहचान की है।
अधिकतर महिलाएं या तो जांच के महंगे खर्च के कारण टेस्ट नहीं करवा पातीं, या उन्हें जानकारी ही नहीं होती कि इसकी जांच क्यों जरूरी है। कई बार लक्षण तब सामने आते हैं जब कैंसर शरीर में फैल चुका होता है, और तब इलाज मुश्किल और महंगा हो जाता है।
लेकिन अब उम्मीद की किरण नजर आई है।
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AIIMS की नई खोज: सस्ती, सरल और सटीक जांच तकनीक
नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने मिलकर एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो सर्वाइकल कैंसर की शुरुआती अवस्था में पहचान कर सकती है।
यह तकनीक है:
- बेहद सस्ती (₹100 से भी कम),
- सरल (प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी इसे कर सकते हैं),
- और दूर-दराज के इलाकों में भी प्रयोग की जा सकने वाली।
इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें न तो किसी बड़ी मशीन की जरूरत है और न ही लैब रिपोर्ट की। परिणाम तुरंत मिलते हैं।
जांच कैसे काम करती है?
इस तकनीक में एक सामान्य सिरका (विनेगर) आधारित समाधान का उपयोग किया जाता है, जिसे VIA (Visual Inspection with Acetic Acid) कहते हैं। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मोबाइल फोन आधारित इमेजिंग को जोड़ा गया है।
प्रक्रिया:
- गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) पर पतला सिरका लगाया जाता है।
- यदि वहां कोई असामान्य (प्रीकैंसर या कैंसर) कोशिकाएं होती हैं, तो वे सफेद रंग में परिवर्तित हो जाती हैं।
- एक स्मार्टफोन से उसका फोटो लिया जाता है।
- AIIMS द्वारा तैयार की गई एआई तकनीक उस फोटो का विश्लेषण करती है और कैंसर के लक्षणों की पहचान करती है।
इससे रिपोर्ट तुरंत मिल जाती है, और इसे एक स्वास्थ्यकर्मी आसानी से कर सकता है।
भारत के लिए क्यों अहम है यह खोज?
भारत में हर साल लाखों महिलाएं सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित होती हैं, और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, दुनिया में सर्वाइकल कैंसर से होने वाली कुल मौतों में से एक-चौथाई सिर्फ भारत में होती हैं।
इसकी मुख्य वजह है:
- समय पर जांच की कमी
- ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव
- जागरूकता की कमी
AIIMS की यह तकनीक इन सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती है:
- कोई बड़ी मशीन नहीं चाहिए
- कम पढ़े-लिखे या प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी भी इसे कर सकते हैं
- मोबाइल फोन और सिरके की मदद से त्वरित परिणाम मिलते हैं
इससे यह तकनीक गांव-गांव तक पहुंचाई जा सकती है।
एआई का इसमें क्या रोल है?
इस तकनीक में इस्तेमाल किया गया AI एल्गोरिदम हजारों चित्रों पर प्रशिक्षित है, जिससे यह सूक्ष्म बदलावों को भी पहचान सकता है, जो सामान्य आंखों से देखे नहीं जा सकते।
इसका लाभ:
- स्वास्थ्यकर्मी को विशेषज्ञ डॉक्टर होने की आवश्यकता नहीं
- गलत परिणामों की संभावना कम
- तुरंत निदान संभव
यह तकनीक सटीकता और सरलता का बेहतरीन उदाहरण है।
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परीक्षण और परिणाम
AIIMS ने इस तकनीक को बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और अन्य राज्यों में हजारों महिलाओं पर आजमाया है। इन महिलाओं में से अधिकांश पहली बार किसी सर्वाइकल जांच से गुजर रही थीं।
परीक्षण के प्रमुख निष्कर्ष:
- 95% से अधिक महिलाओं ने इसे सरल और सहायक बताया
- कई महिलाओं में प्रारंभिक कैंसर के लक्षणों की पहचान हुई
- न के बराबर साइड इफेक्ट्स
- बेहद कम गलत परिणाम
अब यह तकनीक राष्ट्रीय मान्यता और अनुमोदन के अंतिम चरण में है।
क्या यह पाप स्मीयर और HPV टेस्ट से अलग है?
जांच | पाप स्मीयर | HPV टेस्ट | AIIMS की नई जांच |
लागत | ₹1000+ | ₹1500–₹3000 | ₹100 से कम |
रिपोर्ट का समय | 3–7 दिन | 5–10 दिन | तुरंत |
उपकरण की जरूरत | लैब, पैथोलॉजिस्ट | डीएनए किट, लैब | स्मार्टफोन, सिरका |
ग्रामीण क्षेत्रों में प्रयोग | मुश्किल | बहुत मुश्किल | बेहद आसान |
सटीकता | उच्च | बहुत उच्च | उच्च |
AIIMS की तकनीक इन महंगी जांचों का विकल्प नहीं बल्कि एक व्यावहारिक समाधान है उन महिलाओं के लिए जिन्हें अब तक जांच का मौका ही नहीं मिल पाया।
कौन करवा सकता है यह जांच?
- 25 से 65 वर्ष की सभी महिलाएं
- जो पहले कभी सर्वाइकल कैंसर की जांच नहीं करवा पाई हों
- ग्रामीण या पिछड़े इलाकों की महिलाएं
- जिनके पास महंगी जांच करवाने की सुविधा नहीं है
यह जांच सरकारी स्वास्थ्य शिविरों, आंगनवाड़ी केंद्रों, और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में सरलता से की जा सकती है।
विशेषज्ञों की राय
“यह तकनीक भारत में सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों को अगले 10-15 वर्षों में समाप्त कर सकती है।”
— डॉ. नीरजा भाटला, प्रमुख, गायनोकोलॉजी ऑन्कोलॉजी विभाग, AIIMS
“हम सिर्फ एक टेस्ट की बात नहीं कर रहे, बल्कि उन लाखों महिलाओं की ताकत की बात कर रहे हैं जिन्हें आज तक यह सुविधा नहीं मिली।”
— डॉ. रणदीप गुलेरिया, पूर्व निदेशक, AIIMS
सरकार और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) इस तकनीक को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की योजना बना रही है।
भविष्य की योजना: पूरे देश में अभियान
AIIMS की यह योजना है कि आने वाले समय में इस तकनीक को:
- हर राज्य के सरकारी अस्पतालों में लागू किया जाए
- मोबाइल स्वास्थ्य क्लिनिक और आशा वर्करों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जाए
- गांवों में जागरूकता अभियान चलाया जाए
इससे:
- लाखों महिलाओं की जान बचाई जा सकती है
- समय रहते इलाज संभव होगा
- सरकारी स्वास्थ्य बजट पर बोझ भी कम होगा
आप क्या कर सकते हैं?
- अपने परिवार की महिलाओं को सर्वाइकल जांच के लिए प्रेरित करें
- इस तकनीक की जानकारी अपने इलाके में साझा करें
- स्वास्थ्य शिविरों का सहयोग करें
- यदि आप हेल्थ वर्कर हैं तो VIA जांच का प्रशिक्षण लें
सर्वाइकल कैंसर की हार का आगाज
AIIMS की इस खोज ने न केवल चिकित्सा जगत को चौंका दिया है बल्कि लाखों महिलाओं के जीवन को बचाने की उम्मीद भी जगाई है। अब यह बीमारी ‘खामोश हत्यारा’ नहीं रह जाएगी, बल्कि समय रहते पहचानी और ठीक की जा सकने वाली एक स्वास्थ्य समस्या बन जाएगी।
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