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Newsnowसंस्कृतिJitiya Vrat कैसे करना चाहिए? 

Jitiya Vrat कैसे करना चाहिए? 

Jitiya Vrat एक पवित्र और महत्वपूर्ण परंपरा है जो माताओं और उनके बच्चों के बीच के अटूट प्रेम को दर्शाता है। यह कठोर उपवास और प्रार्थना माताओं के अपने बच्चों के प्रति निःस्वार्थ प्रेम और उनकी सुरक्षा के लिए समर्पण को दर्शाते हैं।

Jitiya Vrat जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण उपवास है जो मुख्य रूप से माताओं द्वारा अपने बच्चों की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। यह व्रत भारत के उत्तरी और पूर्वी राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से मनाया जाता है। यह उपवास आमतौर पर हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। नीचे दिए गए विवरण में जीतिया व्रत के मुख्य नियमों, महत्व और विधियों पर 1500 शब्दों की विस्तृत जानकारी दी गई है।

Jitiya Vrat का महत्व

Jitiya Vrat का उद्देश्य बच्चों की लंबी उम्र, उनकी सुरक्षा और खुशहाल जीवन के लिए भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करना है। यह व्रत माताओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपवासों में से एक माना जाता है, जहां वे अपने बच्चों की भलाई और सुरक्षा के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। यह व्रत जीवित्पुत्रिका के नाम पर रखा गया है, जो भगवान जीमूतवाहन का एक रूप है। जीमूतवाहन की कथा, जिन्होंने एक नाग को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी, त्याग और सुरक्षा का प्रतीक है। माताओं का विश्वास है कि इस व्रत को करने से भगवान जीमूतवाहन उनके बच्चों को लंबी उम्र और अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करेंगे।

विभिन्न क्षेत्रों में जीतिया व्रत का महत्व

यह व्रत बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से मनाया जाता है। नेपाल में इसे जीतिया पर्व भी कहा जाता है। व्रत की जड़ें प्राचीन पौराणिक कथाओं में हैं और इसका संबंध महाभारत और पुराणों से भी है। यह व्रत खासकर उन महिलाओं द्वारा किया जाता है जिनके बच्चे हैं, और यह विशेष रूप से माताओं के लिए महत्वपूर्ण होता है।

Jitiya Vrat की तैयारी

1.पंचमी (पाँचवें दिन) की तैयारी: व्रत की तैयारियाँ पंचमी तिथि से ही शुरू हो जाती हैं। इस दिन घर की साफ-सफाई की जाती है और व्रत के लिए पूजा स्थल को शुद्ध किया जाता है।

2.सप्तमी (सातवें दिन) स्नान: सप्तमी के दिन महिलाएँ सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करती हैं। स्नान के बाद, वे व्रत में उपयोग होने वाली सामग्री जैसे लाल धागा, फल, फूल और पूजा सामग्री की तैयारी करती हैं। व्रत आधिकारिक रूप से सप्तमी की रात से शुरू होता है और तीन दिनों तक चलता है।

3.अष्टमी (आठवें दिन) – जीतिया व्रत का मुख्य दिन: अष्टमी के दिन महिलाएँ सुबह जल्दी उठकर स्नान करती हैं और साफ वस्त्र धारण करती हैं। इसके बाद वे जीतिया धागा अपने हाथों पर बांधती हैं, जो लाल और पीले रंग का होता है, और यह धागा सुरक्षा और आशीर्वाद का प्रतीक होता है।

उपवास के नियम और विधि

1.निर्जला व्रत (बिना जल का उपवास): Jitiya Vrat का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह एक निर्जला व्रत होता है, जिसमें महिलाएँ पूरे दिन बिना भोजन और पानी के उपवास करती हैं। यह व्रत अत्यंत कठोर माना जाता है क्योंकि इसके नियम बहुत सख्त होते हैं। हालांकि, वृद्ध महिलाएँ या जिनकी स्वास्थ्य स्थिति अनुमति नहीं देती है, वे जल के साथ व्रत कर सकती हैं।

2.अन्न ग्रहण नहीं करना: व्रत से एक दिन पहले (सप्तमी) महिलाएँ सात्विक भोजन (शुद्ध शाकाहारी भोजन) करती हैं और अनाज का सेवन नहीं करतीं। सप्तमी की रात के बाद, जब तक व्रत का पारण नहीं होता, महिलाएँ कुछ भी नहीं खातीं।

3.उपवास की अवधि: यह व्रत अष्टमी के सूर्योदय के बाद शुरू होता है और अगले दिन के पारण तक चलता है। महिलाएँ इस दौरान भोजन या जल ग्रहण नहीं करती हैं।

पूजा विधि (पुजा की प्रक्रिया)

1.भगवान जीमूतवाहन की पूजा: इस व्रत के मुख्य देवता भगवान जीमूतवाहन हैं, जिनकी कहानी त्याग और बलिदान पर आधारित है। माताएँ भगवान जीमूतवाहन के साथ भगवान शिव, माता पार्वती और नाग देवता की पूजा करती हैं और अपने बच्चों की सुरक्षा की प्रार्थना करती हैं।

2.जीतिया धागे का अर्पण: पूजा के दौरान महिलाओं के हाथों पर जीतिया धागा बांधा जाता है, जो उनके व्रत और संकल्प का प्रतीक होता है। यह धागा व्रत के दौरान पहना जाता है और अगले दिन व्रत पूरा होने पर इसे खोला जाता है।

3.मिट्टी और कुशा से बनी गुड़िया: कई स्थानों पर महिलाएँ जीतिया व्रत की पूजा के समय मिट्टी और कुशा घास से छोटी-छोटी गुड़िया या आकृतियाँ बनाती हैं, जो भगवान जीमूतवाहन और नाग देवता का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन आकृतियों की पूजा की जाती है और इन्हें फल, फूल, धूप आदि अर्पित किए जाते हैं।

4.फल और मिठाई का अर्पण: पूजा के समय भगवान जीमूतवाहन को फल, मिठाई और फूल अर्पित किए जाते हैं। पूजा के बाद, इन प्रसादों को परिवार के सदस्यों, खासकर बच्चों में वितरित किया जाता है।

5.व्रत कथा का श्रवण: पूजा के समय जीतिया व्रत कथा सुनना अनिवार्य होता है। यह कथा भगवान जीमूतवाहन की जीवन कहानी को सुनाती है और इस व्रत के महत्व को दर्शाती है। कथा सुनने से महिलाओं को व्रत का महत्व और आशीर्वाद समझने में मदद मिलती है।

Jitiya Vrat कथा (पौराणिक कहानी)

Jitiya Vrat कथा राजा जीमूतवाहन की कहानी पर आधारित है, जो अपनी दयालुता और परोपकार के लिए प्रसिद्ध थे। पौराणिक कथा के अनुसार, जीमूतवाहन ने एक नाग को गरुड़ से बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। गरुड़ जीमूतवाहन के इस त्याग से प्रसन्न हुए और उन्होंने नाग की जान बख्श दी। इसके साथ ही उन्होंने जीमूतवाहन को अमरत्व का आशीर्वाद दिया। यही कहानी जीतिया व्रत का मूल है, जो बच्चों की सुरक्षा और दीर्घायु का प्रतीक है।

Jitiya Vrat का पारण (व्रत तोड़ना)

Jitiya Vrat का समापन नवमी तिथि के दिन होता है। नवमी तिथि पर महिलाएँ पूजा करके व्रत का पारण करती हैं। पारण करने के लिए सबसे पहले महिलाएँ भगवान को जल अर्पित करती हैं और फिर सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। इस भोजन में फल, हल्का भोजन जैसे चावल, दाल और हरी सब्जियाँ शामिल होती हैं। व्रत का पारण शांति और संयम से किया जाना चाहिए।

Jitiya Vrat में ध्यान देने योग्य बातें

  1. क्या करें:

Jitiya Vrat से पहले पूजा स्थल और घर की अच्छे से सफाई करें।

सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।

पूरी श्रद्धा और भक्ति से सभी पूजा और व्रत के नियमों का पालन करें।

Jitiya Vrat के दौरान जीतिया धागा बांधें और उसे पूरा होने तक पहने रखें।

स्वास्थ्य अनुमति देने पर पूरा निर्जला व्रत करें।

  1. क्या न करें:

सप्तमी के भोजन के बाद कुछ भी खाने-पीने से बचें।

Jitiya Vrat के दौरान कठोर या नकारात्मक भाषा का प्रयोग न करें।

ध्यान भंग करने वाली चीज़ों से बचें और अपने बच्चों की भलाई और सुरक्षा के लिए प्रार्थना पर ध्यान केंद्रित करें।

सप्तमी के दिन अनाज और मांसाहारी भोजन से परहेज़ करें।

यह भी पढ़ें: Jitiya Vrat कैसे करना चाहिए?

निष्कर्ष

Jitiya Vrat एक पवित्र और महत्वपूर्ण परंपरा है जो माताओं और उनके बच्चों के बीच के अटूट प्रेम को दर्शाता है। यह कठोर उपवास और प्रार्थना माताओं के अपने बच्चों के प्रति निःस्वार्थ प्रेम और उनकी सुरक्षा के लिए समर्पण को दर्शाते हैं। इस व्रत का पालन करने से माताएँ अपने बच्चों के लिए भगवान से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं, जिससे उनके बच्चों की लंबी आयु, सुख और समृद्धि की कामना की जाती है।

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