spot_img
Newsnowजीवन शैलीदिनचर्या की बेड़ियों के बीच Positivity कैसे बनाए रखें

दिनचर्या की बेड़ियों के बीच Positivity कैसे बनाए रखें

मनुष्य की जिज्ञासा और अनजानियों के बीच संघर्ष, समय की निरंतरता, और बंधी-बंधाई जिंदगी के बावजूद अमर रहने की चाह। यह अजीब बात है कि ऊर्जावान युवा सोच के साथ हम हर चुनौती का सामना करते हुए उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ते हैं। तूफान चाहे कितने भी प्रचंड हों, अंततः अच्छाई की जीत होती है।

Positivity: मनुष्य जानकर भी अनजान है। यह बड़ी अजीब बात है। दिन के बाद रात और दिन के बाद रात। फिर भी समय मेरी मर्जी से चलता है। यह बेपरवाह दिल कहता है। बंधी-बंधाई जिंदगी गुजर रही है। फिर भी अमर रहने की असंभव उम्मीद है। यह बड़ी अजीब बात है। ऊर्जावान युवा सोच के साथ उज्ज्वल भविष्य है। जिसके कारण जीवन हमेशा मुस्कुराता रहता है और कदम गतिशील रहते हैं। तूफान टूटते हैं और बुरे लोग हार जाते हैं।

यह भी पढ़ें: Acharya Tulsi: एक महान संत और विचारक

Positivity के लिए आंतरिक शांति का महत्व

How to maintain Positivity
दिनचर्या की बेड़ियों के बीच Positivity कैसे बनाए रखें

मुझमें इतनी हिम्मत है पर मेरा मन आगे नहीं बढ़ रहा है। यह अजीब बात है। चलो कर्म की जंजीरों को तोड़ दें। सारे दुख खत्म हो जाएंगे। हम सिद्धशिला में निवास करेंगे। मुझे इस सपने का अहसास तो है पर मैं हकीकत पर यकीन नहीं करता। यह अजीब बात है। एक युवा के ऊर्जावान जीवन के लिए मन की शांति, आत्मा की शांति और खुशी या हास्य की खुराक जरूरी है। ये ऐसे महत्वपूर्ण तत्व हैं जो व्यक्ति को हर समय ऊर्जावान बनाए रखते हैं। जिसकी बुद्धि जागृत है वह हमेशा विवेकशील होता है और उसका दिल कोमल होता है।

कब, कहाँ, कैसे, क्या करना है? कितना बोलना है? उसका मन संतुलित रहता है। शांति हमेशा उसके पास रहती है। ऐसे ही पुरुष स्वस्थ रहने में समर्थ होते हैं। जिसका मन और मस्तिष्क शांत है। वह संघर्ष और विरोध से परेशान नहीं होता। जिसकी पहचान सही समय पर सही निर्णय लेना है। कीचड़ में खिले कमल की तरह। स्वस्थ रहकर वह सही जीवन जी पाता है।

दैनिक जीवन में आत्म-नियंत्रण जो आपको Positivity करें

How to maintain Positivity
दिनचर्या की बेड़ियों के बीच Positivity कैसे बनाए रखें

आज की यह समस्या है की हम अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं। जैन धर्म में संयम का बहुत महत्व हैं। युवा पीढ़ी को बदलते समय के अनुसार जीने की छूट देती है। बुढ़ापा हमारे ज़माने में ऐसा था की रट लगाता है। और वरिष्ठता बदलते समय से अपना नाता जोड़ लेती है उसे अपना लेती है। बुढ़ापा नई पीढ़ी पर अपनी राय लादता है,थोपता है और वरिष्ठता तरुण पीढ़ी की राय को समझने का प्रयास करती है।

बुढ़ापा जीवन की शाम में अपना अंत ढूंढ़ता है मगर वरिष्ठता वह तो जीवन की शाम में भी एक नए सवेरे का इंतजार करती है। युवाओं की स्फूर्ति से प्रेरित होती है। वरिष्ठता और बुढ़ापे के बीच के अंतर को हम गम्भीरतापूर्वक समझकर, जीवन का आनंद पूर्ण रूप से लेने में सक्षम बनिए। कई डॉक्टर पूछते हैं मरीज को, की आप अपने परिवार के साथ रोजाना कितना समय देते हो व अपना सुख-दुःख आपस में कितना आदान-प्रदान करते हो।

Positivity बने रहने हेतु छोटे-छोटे बदलाव

How to maintain Positivity
दिनचर्या की बेड़ियों के बीच Positivity कैसे बनाए रखें

अधिकांश रोगी डॉक्टर को सही उत्तर नहीं दे पाते। यह बात काफी हद तक सही लगती है कि कई रोगी अपनी बीमारी से ज्यादा अपने परिवार और गलत दिनचर्या से परेशान रहते हैं, जिसके कारण उनकी वास्तविक बीमारी ठीक होने के बजाय बढ़ती ही रहती है, क्योंकि उन्हें वह मानसिक खुशी नहीं मिलती जो मिलनी चाहिए। यह वर्तमान स्थिति चिंताजनक है। हालांकि जीवन में पूर्ण शांति और खुशी के लिए पूर्ण विवेक, पूर्ण समझ और साधना की आवश्यकता होती है।

अगर हम थोड़ी सी समझदारी और थोड़ी सी समझ के साथ शुरुआत करें तो भी हम जीवन के बदलते चेहरे को देख सकते हैं। ये छोटी-छोटी बातें हैं, अगर कोई काम सही न लगे तो उसे बिल्कुल न करें। इसी तरह अगर कोई बात सच न लगे तो उसे कभी न कहें। अगर हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इतनी सी समझदारी भी रखें तो इस दुनिया में जीवन आनंदमय हो सकता है। ये दो बातें छोटी हैं, लेकिन ये जीवन निर्माण की शुरुआत की सच्ची कसौटी हैं।

Positivity के लिए जीवन के चरणों पर चिंतन

How to maintain Positivity
दिनचर्या की बेड़ियों के बीच Positivity कैसे बनाए रखें

बचपन बीता, किशोरावस्था भी बीती। जवानी आई, फिर बुढ़ापा आया और समय के अनुसार जीवन समाप्त हो गया। लेकिन निरंतर जीवन के इस दौर में हमें वह उद्देश्य समझ में नहीं आया जिसके लिए हम पैदा हुए थे। बचपन में समय तो होता है लेकिन समझ नहीं होती। किशोरावस्था भी बचपन की तरह ही बेफिक्र, निश्चिंत मौज-मस्ती में बीती।

यह भी पढ़ें: Children में मासूमियत कैसे विकसित करें

युवावस्था आ गई, उसमें शक्ति है, शुभ संयोग से मन में भक्ति भी है। लेकिन दिनचर्या ऐसी है कि पूरा जीवन पारिवारिक जिम्मेदारियों में ही बीत जाता है। अब बुढ़ापा आ गया, जिसमें कुछ खास नहीं किया जा सकता, शारीरिक स्थिति ऐसी है तो भगवान की भक्ति की व्यवस्था कैसे बन सकती है। इस प्रकार प्रत्येक परिस्थिति के अनुसार समझ, अज्ञान, उत्तरदायित्व आदि होंगे। अतः समझकर, साधना में निरन्तर वृद्धि के लिए दैनिक समय सारिणी में एक निश्चित समय आरक्षित कर लेना चाहिए। तभी जीवन के लक्ष्य की ओर बढ़ने की गति में निरन्तर प्रगति हो सकती है। संक्षेप में, यदि हम इस सही क्रम को अपना लें, तो हम सदैव स्वस्थ और प्रेरित बने रहेंगे।

प्रदीप छाजेड़

spot_img

सम्बंधित लेख