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Farmers Protest: किसानों ने लोहड़ी पर्व पर नये कानूनों की प्रतियां जलाकर अपना विरोध जताया।

सुप्रीम कोर्ट ने नये कृषि कानूनों और किसानों के आंदोलन (Farmers Protest) को लेकर दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के बाद मंगलवार को इन कानूनों के अमल पर रोक लगाने का फैसला लिया और किसानों की समस्याओं का समाधान तलाशने के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन कर दिया जिसमें चार सदस्य हैं।

New Delhi: कृषि कानूनों (Farm Laws) को वापस लेने की मांग पर अड़े किसानों का आंदोलन (Farmers Protest) बुधवार को 49वें दिन जारी है। आंदोलनकारी किसानों ने लोहड़ी पर्व पर नये कानूनों की प्रतियां जलाकर अपना विरोध जताया। किसान संगठनों के नेताओं ने आंदोलन (Farmers Protest) तेज करने को लेकर पूर्व घोषित सभी कार्यक्रमों को जारी रखने का फैसला लिया है। 

भारतीय किसान यूनियन (लाखोवाल) के जनरल सेक्रेटरी हरिंदर सिंह ने कहा पंजाब, हरियाणा समेत देश के अन्य प्रांतों में भी लोहड़ी पर्व पर किसानों ने तीनों कृषि कानूनों (Farm Laws) की प्रतियां जलाकर अपना विरोध जताया। नये कृषि कानूनों पर किसानों की आपत्तियों और उनके समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) द्वारा गठित कमेटी के मसले पर पूछे गए सवाल पर हरिंदर सिंह ने कहा, किसान तीनों कानूनों को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं, इसलिए किसी कमेटी में जाने की बात उनको मंजूर नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार ने भी कमेटी बनाकर फैसला करने का सुझाव दिया था, जिसे सभी किसान संगठनों ने एकमत से खारिज कर दिया था।

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आंदोलनकारी किसान देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पिछले साल 26 नवंबर 2020 से डेरा डाले हुए हैं और सिंघु बॉर्डर मुख्य प्रदर्शन स्थल है जहां आज लोहड़ी पर्व पर तीनों कृषि कानूनों की प्रतियां जलाने का विशेष कार्यक्रम होगा। सिंघु बॉर्डर पर मौजूद पंजाब के किसान नेता और भाकियू के जनरल सेक्रेटरी पाल माजरा ने बताया कि दिन के करीब 12 बजे यहां किसान संगठनों की बैठक होगी जिसमें तीनों कानूनों की प्रतियां जलाने के कार्यक्रम का समय तय होगा।

किसान यूनियनों के नेता केंद्र सरकार द्वारा लागू कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी देने की मांग कर रहे हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने नये कृषि कानूनों और किसानों के आंदोलन (Farmers Protest) को लेकर दायर विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई के बाद मंगलवार को इन कानूनों के अमल पर रोक लगाने का फैसला लिया और किसानों की समस्याओं का समाधान तलाशने के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन कर दिया जिसमें चार सदस्य हैं।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद संयुक्त किसान मोर्चा ने आंदोलन में शामिल किसान संगठनों की तरफ से एक बयान में कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा गठित कमेटी में शामिल सभी चारों सदस्य नए कृषि कानून के पैरोकार हैं। मोर्चा की तरफ से जारी बयान में किसान नेता डॉ. दर्शनपाल ने कहा कि हमें संतोष है कि सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के लोकतांत्रिक और शांतिपूर्वक विरोध करने के अधिकार को मान्यता दी है।

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बयान में कहा गया कि संयुक्त किसान मोर्चा तीनों किसान विरोधी कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करता है क्योंकि यह आदेश उनकी इस मान्यता को पुष्ट करता है कि यह तीनों कानून असंवैधानिक हैं। उन्होंने कहा, लेकिन यह स्थगन आदेश अस्थाई है जिसे कभी भी पलटा जा सकता है। हमारा आंदोलन (Farmers Protest) इन तीन कानूनों के स्थगन नहीं इन्हें रद्द करने के लिए चलाया जा रहा है। इसलिए केवल इस स्टे के आधार पर हम अपने कार्यक्रम में कोई बदलाव नहीं कर सकते।

उन्होंने आगे कहा, हम सुप्रीम कोर्ट का सम्मान करते हैं लेकिन हमने इस मामले में मध्यस्थता के लिए सुप्रीम कोर्ट से प्रार्थना नहीं की है और ऐसी किसी कमेटी से हमारा कोई संबंध नहीं है। चाहे यह कमेटी कोर्ट को तकनीकी राय देने के लिए बनी हो या फिर किसानों और सरकार में मध्यस्थता के लिए, किसानों का इस कमेटी से कोई लेना देना नहीं है। कोर्ट ने जो चार सदस्य कमेटी घोषित की है उसके सभी सदस्य इन तीनों कानूनों के पैरोकार रहे हैं और पिछले कई महीनों से खुलकर इन कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने की असफल कोशिश करते रहे हैं।

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