16 दिसंबर को सूर्य के मीन राशि में आने से Kharmas शुरू हो गया है। जो कि 14 जनवरी तक रहेगा। इसलिए अगले महीने मकर संक्रांति पर खरमास (Kharmas) दोष खत्म हो जाएगा। इस दौरान किसी भी तरह के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। सूर्य के राशि बदलने से साल में 2 बार खरमास आता है। लगभग एक महीने के इस समय में भगवान की आराधना करने का विशेष महत्व है। धर्मग्रंथों में खर मास से जुड़े कुछ नियम बताए गए हैं। जिनका ध्यान रखना चाहिए।
क्या होता है Kharmas
सूर्य जब बृहस्पति की राशियों यानी धनु और मीन में प्रवेश कर जाता है तो Kharmas शुरू हो जाता है। ज्योतिष ग्रंथों में इसे गुरुवादित्य काल भी कहा गया है। ये स्थिति साल में 2 बार यानी दिसंबर-जनवरी और मार्च-अप्रैल में बनती है। इस दौरान हर तरह के मांगलिक काम नहीं किए जाते हैं। दिसंबर-जनवरी के दौरान सूर्य के धनु राशि में आने से इसे धनुर्मास भी कहा जाता है। वहीं मार्च-अप्रैल में मीन राशि में सूर्य के आने से इसे मीनमास भी कहा जाता है।
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क्या करना चाहिए
धर्मग्रंथों (Dharmagranth) और संस्कृति के मुताबिक, इस महीने में सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नहाना चाहिए। फिर भगवान की पूजा करनी चाहिए। इससे भगवान की कृपा बनी रहती है। इस दौरान सूर्य पूजा करनी चाहिए। इनके साथ ही भगवान विष्णु की आराधना भी करनी चाहिए। खरमास के दौरान दान और मंत्र जप करने का महत्व है। इस महीने में देवता, वेद, ब्राह्मण, गुरु, गाय, साधु-सन्यांसियों की पूजा और सेवा करनी चाहिए।
खरमास में क्या नहीं करें
खरमास के दौरान गृह प्रवेश और 16 संस्कार सहित अन्य मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। इस दौरान 16 में से कुछ आवश्यक संस्कार किए जा सकते हैं।
मांस, शहद, चावल का मांड, उड़द, प्याज, लहसुन, नागरमोथा, राई, नशे की चीजें, दाल, तिल का तेल और किसी का झूठा खाना नहीं खाना चाहिए।
खरमास के दौरान पत्तल पर भोजन करना, शाम को एक वक्त खाना, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। साथ ही अनजाने में भी गलत काम करने से बचना चाहिए।
किसी का विरोध करने से बचना चाहिए। निंदा और झूठ से बचना चाहिए।