बरेली/यूपी: साल 2014 में Bareilly की एक अदालत ने चांद मुहम्मद को पांच साल ‘आतंकवादी’ के तौर पर जेल में बिताने के बाद निर्दोष करार देते हुए बरी कर दिया। चांद मुहम्मद (53) आज भी अपने ऊपर लगे कलंक को दूर करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
हालांकि ‘आतंकवादी’ के ठप्पे के चलते न तो उन्हें कहीं नौकरी मिली और न ही अपने पड़ोसियों के तानों से कभी निजात।
चांद कहते हैं कि मैं ‘आतंकवादी’ के ठप्पे के साथ ही मरूंगा, यह मुझे हर दिन सताता है। मैं अपना जीवन नए सिरे से शुरू नहीं कर पाया, क्योंकि मेरे दोस्त और रिश्तेदार अभी भी पुलिस कार्रवाई के डर से मुझसे जुड़ना नहीं चाहते हैं।
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चांद ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में कहा कि मैं नौकरी करना चाहता हूं, लेकिन कोई मुझे नौकरी नहीं देगा। मेरी प्रतिष्ठा और वर्षों के नुकसान के लिए मुझे कोई मुआवजा नहीं दिया गया। मैं जीवन की बुनियादी जरूरतों के लिए भी पूरी तरह से अपने बेटों पर निर्भर हूं।
Bareilly के एक मंदिर में सेवा करते हैं चाँद
इन दिनों चांद अपना अधिकांश समय बरेली शहर के बाहर स्थित एक मंदिर में सांत्वना के लिए सेवा करने में बिताते हैं। साल 2009 में बरेली शहर के प्रेमनगर थाने के अधिकारियों ने किला नदी के पास जुआ खेलने वाले लोगों को पकड़ने के लिए छापेमारी की थी।
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पुलिस को देखते ही नदी में कूदने से तीन लोगों की मौत हो गई। चांद पुलिस के खिलाफ मामले में एक गवाह थे, लेकिन उनका बयान दर्ज होने से पहले ही उन्हें पुलिस स्टेशन बुलाया गया और उन्हें ‘आतंकवादी’ बताकर हिरासत में ले लिया गया।
पुलिस ने चांद के साथ एक 11 वर्षीय लड़की, जो उनके दोस्त की बेटी है, को भी हिरासत में लिया। चांद कहते हैं कि उसे भी उस दौरान कथित रूप से प्रताड़ित किया गया। बरेली जोन के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ADG राजकुमार ने बताया कि ऐसे मामलों में, हम गैर-जिम्मेदार पुलिसकर्मियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई का आदेश देते हैं, यदि पीड़ित द्वारा उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की जाती है।
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ADG राजकुमार ने कहा कि अगर चांद शिकायत दर्ज करता है, तो उसकी हालत के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई संभव है। 2009 में पुलिस की यातना से बने निशानों को दिखाते हुए, चांद कहते हैं कि, जब भी मामले के बारे में बात होती है तो कुछ स्थानीय समाचार पत्र मुझे आतंकवादी कहते हैं।
चांद कहते हैं कि मुझे गिरफ्तार करने वाले निरीक्षक ने तब दावा किया था कि मैं एक आतंकवादी था, और भारत और अमेरिका में वांछित था। मांझा निर्माताओं द्वारा छोड़े गए कबाड़ को बम बनाने के लिए सामग्री के रूप में दिखाया गया था। मुझे कई दिनों तक प्रताड़ित किया गया। चांद अपना दर्द बयां करते हुए कहते हैं, कि अपमान और पीड़ा को सहन करने में असमर्थ, मैंने पुलिस से इसके बजाय मुझे गोली मारने का अनुरोध किया था।
13 अक्टूबर 2009 को चांद को हिरासत में लिया गया था। अगले दिन, उसके रिश्तेदारों और दोस्तों को अखबार और टीवी न्यूज में किए गए दावों से जानकारी हुई कि चांद एक ‘आतंकवादी’ था, और नाबालिग लड़की को आतंकवादी गतिविधियों के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहा था।
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पुलिस ने यह भी दावा किया, कि चांद ने पाकिस्तान में एक आतंकी शिविर में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। पुलिस ने चांद से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी लोगों से पूछताछ की। चांद बताते हैं, कि इस दौरान नाबालिग लड़की के भाई को कई दिन पेड़ों पर बिताने पड़े, क्योंकि पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए एक अभियान चला रखा था।
बाद में, चांद और नाबालिग लड़की का गुजरात के सूरत में नार्को टेस्ट किया गया, लेकिन उसमें कुछ भी सामने नहीं आया। आज नाबालिग लड़की बरेली में नर्सरी चलाती है। चांद ने कहा जब मैं पुलिस हिरासत में था, तो मैंने उनसे मुझ पर झूठे आरोप लगाने के बजाय मुझे मारने का अनुरोध किया।
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उन्होंने कहा कि मैं अपने देश के प्रति वफादार हूं। चांद को न्याय दिलाने में उनकी मदद करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता योगेंद्र कुमार गुप्ता ने बताया कि चांद अनपढ़ हैं, और यह अदालत में उनके पक्ष में गया। क्योंकि पुलिस ने दावा किया कि उन्होंने चांद के कब्जे से नक्शे और आतंकवाद से संबंधित अन्य साहित्य बरामद किए थे। अदालत ने पुलिस के दावों को खारिज कर दिया, क्योंकि अदालत ने पाया कि वह पढ़-लिख नहीं सकते।
बरेली से दीपक चतुर्वेदी की रिपोर्ट