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बिहार चुनाव: उमड़ती भीड़ ने बढ़ाई कोरोना और सुरक्षा को लेकर चिंता.

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तेजस्‍वी के हेलीकॉप्‍टर के पास पहुंच रही लोगों की भीड़, सोशल डिस्‍टेसिंग के नियमों का हो रहा उल्‍लंघन. आरजेडी ने अभियान को प्रभावित करने काप्रयासबताया

Bihar Assembly Elections 2020: बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार के दौरान महागठबंधन के सीएम पद के प्रत्‍याशी तेजस्‍वी यादव (Tejashwi Yadav) के हेलीकॉप्‍टर के पास उमड़ रही भीड़ ने राष्‍ट्रीय जनता दल (RJD) के लिए सुरक्षा और कोविड-19 को लेकर चिंता बढ़ा दी. सोशल मीडिया पर आए विजुअल्‍स में युवाओं की भारी भीड़ को तेजस्‍वी के हेलीकॉप्‍टर की ओर बढ़ते देखा जा सकता है. इस दौरान कोरोना वायरस महामारी के चलते सोशल डिस्‍टेंसिग की गाइडलाइंस का साफ उल्‍लंघन होते दिखा. लोगों ने न तो एक-दूसरे से दूरी बना रखी थी और न ही वे उनमें से ज्‍यादातर ने मास्‍क पहने हुए थे.आरजेडी के राष्‍ट्रीय सलाहकार संजय यादव ने इसे सुरक्षा उल्‍लंघन का उनके चुनाव अभियान को प्रभावित करने का ‘इरादतन प्रयास’ करार दिया. उन्‍होंने कहा, हालांकि पूर्व उप मुख्‍यमंत्री तेजस्‍वी को Y प्‍लस श्रेणी की सुरक्षा हासिल है लेकिन राज्‍य सरकार ने इस मामले में कुछ भी नहीं किया है.

तेजस्‍वी यादव और पायलट को बार-बार भीड़ से हटने का अनुरोध करना पड़ता है. लगातार अनुरोध (चुनाव आयोग) के बावजूद स्थिति जस की जस है. ऐसा लगता है कि यह अभियान को प्रभावित करने का इरादतन प्रयास है, इसके उनके लिए खतरा हो सकता है.’ आरजेडी के वरिष्‍ठ नेता मनोज ने चुनाव आयोग को अपनी शिकायत में कहा था कि आरजेडी नेता की बैठकों के लिए पर्याप्‍त सुरक्षा व्‍यवस्‍था न होने से असामाजिक तत्‍व परेशानी खड़ी कर सकते हैं.

गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने कोविड-19 के खतरे के मददेनजर प्रचार और वोटिंग के दौरान गाइडलाइंस की घोषणा की है लेकिन बिहार में चुनावी रैलियों के दौरान इसका पालन होता नजर नहीं आ रहा है. तेजस्‍वी यादव की रैली के दौरान भारी भीड़ उमड़ती देखी गई है लेकिन बहुत कम लोग मास्‍क पहने और सोशल डिस्‍टेंसिंग का पालन करते दिखे हैं.

महिलाओं के लिए जानलेवा है ब्रैस्ट कैंसर, जानिये इसके लक्षण और इलाज

भारत में महिलाओं में पाए जाने वाले कैंसरों में ब्रैस्ट कैंसर महिलाओं की मौत का सबसे बड़ा कारण है. सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनियाभर की महिलाओं में ब्रैस्ट कैंसर तेजी से बढ़ रहा है. बता दें कि, स्तनों में गांठ महसूस होना या निप्पल से किसी तरह का रिसाव होना स्तन कैंसर के शुरुआती लक्षण हैं. कैंसर अगर स्टेज 3-4 में पहुँच जाए तो इलाज के तौर पर अंतिम विकल्प सर्जरी ही बचता है. इतना ही नहीं, कई बार परिस्थिति ज़्यादा बिगड़ने पर मौत का खतरा भी रहता है. लेकिन अगर सही समय पर स्तन कैंसर की पहचान कर ली जाए और इसका इलाज शुरू कर दिया जाए, तो इसे आसानी से ठीक किया जा सकता है. इसलिए आइये आपको बताते हैं महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण और इलाज के बारें में.

1. ब्रेस्ट कैंसर के लक्षण


अक्सर महिलाएं ब्रैस्ट में उठने वाले दर्द को नज़रंदाज़ कर लापरवाही बरतती हैं. जबकि यह दर्द कोई सामान्य दर्द नहीं बल्कि स्तन में मौजूद गांठ की वजह से उठने वाला दर्द है. ऐसा नहीं है कि हर बार गांठ में सामान्य रूप से दर्द हो, कई बार केवल छूने पर ही इस दर्द को महसूस किया जा सकता है. इसलिए अगर आपको आपके ब्रेस्ट में दर्द या गांठ महसूस हो तो डॉक्टर से सलाह ज़रूर लें. बता दें कि, स्तनों में पड़ने वाली गांठ का पता लगाने के लिए मेमोग्राफी की जाती है. मैमोग्राफी से ही ब्रैस्ट कैंसर का भी पता लगाया जा सकता है और मेमोग्राफी कराने में ज्य़ादा पैसे भी नहीं लगते. विशेषज्ञों का मानना है कि 30 से 35 साल की महिला को एक बार मेमोग्राफी ज़रूर करानी चाहिए. ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षण इस प्रकार हैं
ब्रेस्ट में गांठ होना
समय के साथ स्तन का आकार बढ़ना
ब्रेस्ट का असामान्य तरीके से बढ़ना
स्तनों के बगल में सूजन आना
निप्पल का लाल पड़ना या उनसे खून आना
स्तन में कोई उभार या असामान्य मोटाई लगना

2. जांच इलाज


यह आवश्यक है कि 30 साल की उम्र से प्रत्येक महिला माहवारी के बाद अपने स्तनों और इसके इर्दगिर्द होने वाले बदलावों की स्वयं जांच करे. इसके अलावा, 40 साल की उम्र से प्रत्येक महिला को साल में एक बार महिला रोग विशेषज्ञ से अपनी जांच कराकर उनके परामर्श से स्तनों का एक्सरे या मैमोग्राफी कराना चाहिए. इस एक्सरे को मैमोग्राम कहते हैं. मैमोग्राम के ज़रिये छोटे से छोटे कैंसरग्रस्त भाग का पता लगाया जा सकता है. इस स्थिति में कैंसर के इलाज में पूरे स्तन को निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ती. इस अवस्था में पता चलने वाले स्तन कैंसर के रोगियों का 90 से 95 प्रतिशत तक सफल इलाज हो सकता है. ऑपरेशन के ज़रिये पूरे स्तन को निकालने की स्थिति केवल और केवल एडवांस्ड स्टेज में ही आती है. एक डाटा के मुताबिक़, महानगरों शहरों में रहने वाली औरतों में स्तन कैंसर के मामले अधिक देखे जाते हैं. इसलिए ये बहुत ज़रूरी है कि 40 की उम्र के बाद महिलाएं हर महीने अपने ब्रैस्ट की खुद जांच करें और कुछ भी गड़बड़ी लगने पर डॉक्टर से फ़ौरन परामर्श करें.

निकिता हत्याकांड: कोर्ट ने तौसीफ और अजरू को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा.

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फरीदाबादबल्लभगढ़ निकिता हत्याकांड में आज पुलिस ने तौसीफ और अजरू (जिसने हथियार दिया था) को कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने इन दोनों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया है। जबकि तौसीफ़ के दोस्त रेहान को (जो घटना वाले दिन कार चला रहा था) कल पेश किया जाएगा। उसकी रिमांड कल यानि शुक्रवार को खत्म हो रही है। इसके साथ ही आरोपी तौसीफ की जेल बदलने की एप्लीकेशन को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि अग्रवाल कॉलेज की छात्रा निकिता की एक युवक ने हत्या कर दी थी। इसबीच, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने आरोपियों को जल्द से जल्द सजा दिलवाने की मांग को लेकर बल्लभगढ़ स्थित अग्रवाल कॉलेज के बाहर प्रदर्शन किया था। वहीं, एनएसयूआई के कार्यकर्ताओं ने जिला उपायुक्त कार्यालय पर प्रदर्शन किया था। 

निकिता तोमर हत्याकांड में एसआईटी ने जांच शुरू की 

निकिता तोमर हत्याकांड की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने मामले की जांच शुरू कर दी है। निकिता हत्याकांड को लेकर बल्लभगढ़ में हुए प्रदर्शन के बाद हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर  की सरकार ने मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने का आदेश दिया था। इस बीच, केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर ने भी बुधवार को निकिता के परिजनों से मुलाकात की थी। उन्होंने पत्रकारों से कहा था, ‘‘ फरीदाबाद की बेटी निकिता की दिनदहाड़े हुई हत्या के मामले में पीडि़त परिवार को पूरा न्याय मिलेगा।’’ 

उच्च न्यायालय ने केंद्र से पूछा : क्या अत्यधिक मीडिया रिपोर्टिंग से न्याय बाधित होता है ?

मुंबई, 29 अक्टूबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि किसी मामले में चल रही जांच में मीडिया द्वारा ‘‘अत्यधिक’’ रिपोर्टिंग करना क्या अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप होगा ? मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ ने सरकार से छह नवंबर तक यह बताने को कहा है कि क्या खबरों की रिपोर्टिंग जांच को एवं इसके बाद चलने वाले मुकदमे को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है, और क्या अदालत को मीडिया की रिपोर्टिंग पर दिशानिर्देश निर्धारित करना चाहिए ? पीठ ने कहा, ‘‘यदि अत्यधिक रिपोर्टिंग हो रही है, तो यह आरोपी को सतर्क कर सकता है और वह साक्ष्यों को नष्ट कर सकता है या फरार हो सकता है या यदि वह व्यक्ति बेकसूर है, तो मीडिया की जरूरत से ज्यादा रिपोर्टिंग उसकी छवि खराब कर सकती है।’’ अदालत ने कहा, ‘‘हम यह नहीं चाहेंगे कि मीडिया अपनी लक्ष्मण रेखा लांघे और हम यह भी चाहेंगे कि हम लोग भी अपनी सीमाओं के अंदर रहें।’’ साथ ही, पीठ ने सरकार से पूछा कि क्या इस तरह की रिपोर्टिंग दखलंदाजी होगी और क्या सरकार ने सोचा है कि उच्च न्यायालय के पास दिशानिर्देश तय करने का अधिकार क्षेत्र है? उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘क्या मीडिया की अत्यधिक रिपोर्टिंग अदालत की अवमानना अधिनियम की धारा 2 (सी) के तहत न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप है और क्या हमें दिशानिर्देश निर्धारित करना चाहिए? हमारे समक्ष यह मुद्दा है। ’’ अदालत ने अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल (एएसजी) अनिल सिंह से उन परिदृश्यों पर भी विचार करने को कहा, जहां किसी मामले की चल रही जांच पर (जिसमें आरोपपत्र दाखिल किया जाना बाकी हो) इस तरह की रिपोर्टिंग ने जांच अधिकारी (आईओ) को प्रभावित किया हो, या इसके परिणामस्वरूप गवाहों को धमकी मिली हो। उच्च न्यायालय ने कहा कि क्या अदालत को कदम उठाना ही पड़ेगा और इस तरह के परिदृश्यों से बचने के लिये प्रेस का नियमन करने को लेकर दिशानिर्देश तैयार करना होगा ? प्रेस द्वारा किसी जांच अधिकारी को प्रभावित किये जाने की संभावना पर उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘एक पुलिस अधिकारी के बारे में सोचिए। क्या कोई इस बात की गारंटी दे सकता है कि वह प्रभावित नहीं होगा?’’ अदालत ने कहा, ‘‘वह किसी खास पहलू पर आगे बढ़ रहा होगा। मीडिया कहेगा कि नहींनहीं, यह सही रास्ता नहीं है। वह उस रास्ते से भटक जाएगा और किसी बेकसूर व्यक्ति को पकड़ लेगा अथवा यदि अधिकारी सक्षम है और वह प्रभावित नहीं होता है तो मीडिया उसकी छवि धूमिल करना शुरू कर देता है। क्याकानून का शासनवाले समाज में इसे उचित ठहराया जा सकता है। ’’ अदालत कई जनहित याचिकाओं के एक समूह पर अंतिम दलीलें सुन रही है। इन याचिकाओं के जरिये यह अनुरोध किया गया है कि अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच मेंमीडिया ट्रायलबंद किया जाए। ये याचिकाएं कुछ कार्यकर्ताओं और सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों ने दायर की थीं। पिछली सुनवाई के दौरान टीवी चैनलों और नेशनल ब्रॉडकास्टर्स स्टैंडर्ड ऑथरिटी (एनबीएसए) ने स्वनियमन तंत्र के पक्ष में दलील दी थी और कहा था कि सरकार को उनकी सामग्री (खबरों) पर नियंत्रण नहीं करने दिया जाना चाहिए। उच्च न्यायालय ने कहा कि उसे सरकार से उम्मीद है कि वह उपरोक्त सवालों का अदालत को जवाब देगी। अदालत ने एएसजी सिंह को अपनी लिखित दलील दाखिल करने और पीठ द्वारा उठाये गये सभी सवालों का जवाब अदालत को छह नवंबर को देने का निर्देश दिया। अदालत ने कहा कि मीडिया अक्सर अपनी रिपोर्टिंग का यह कहते हुए बचाव करती है कि उसने खोजी पत्रकारिता की है। पीठ ने हालांकि कहा कि खोजी पत्रकारिता का मतलब हैसच्चाई का खुलासा करना।अदालत ने पूछा, ‘‘क्या ऐसा कोई कानून है, जो कहता है कि जांच एजेंसी ने सबूत के तौर पर जो कुछ जुटाया है उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए? जांच अधिकारी का यह दायित्व कहां है कि वह साक्ष्य का खुलासा करेगा?’’ अदालत ने जानना चाहा, ‘‘पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट पहले ही मीडिया के पास कैसे गई? क्या हमें इन पहलुओं पर दिशानिर्देश निर्धारित करना चाहिए?’’ अदालत ने यह भी कहा कि यदि प्रेस के पास कोई ऐसी सूचना है जो जांच में मददगार साबित हो सकती है तो उसे ऐसी सूचना दंड प्रक्रिया संहिता(सीआरपीसी) की धारा 38 के तहत पुलिस को देनी चाहिए।

diabetes: करेले और पालक का जूस पीने से होता है फायदा

पालक और करेला का जूस पीकर काबू करें शुगर

विशेषज्ञों का कहना है कि पालक और करेले का जूस शुगर को काबू करने के लिए सबसे बेहतर उपाय है. करेला खाने से शरीर में रसायनिक प्रतिक्रिया पैदा होती है जो ब्लड ग्लूकोज के लेवल को कम करने के साथ इंसुलिन की सतह को काबू में करता है. जबकि, पालक भी खास सब्जियों में से एक है जो शुगर से पीड़ित होने का खतरा टालने में मददगार साबित होता है.

पालक और करेले का जूस कैसे बनाया जाए

पालक और करेले का जूस पीना बहुत कड़वा होता है. उसका स्वाद भी बहुत खराब लगता है. लेकिन, अगर आप उसमें चंद कतरे नींबू के और काली मिर्च शामिल करने से स्वाद कुछ अच्छा हो जाता है और आसानी से पी लिया जा सकता है. पालक और करेले का जूस बनाने के लिए पहले पालक के कुछ पत्तों को बारीक काट कर उबाल लें. फिर, उसी तरह एक करेला लें से उसके बीज निकालकर बारीक काट लें. उसके अलावा जूस को बनाने के लिए नींबू, चंदरे कतरे, काली मिर्च कटी हुई अदरक की भी जरूरत होगी. अब, तमाम सामग्री को एक साथ ब्लेंड में डाल कर अच्छी तरह पीस लें और जब लगे कि तमाम सामग्री आपस में अत्छी तरह मिक्स हो गई हैं तो उसको एक ग्लास पानी में निकाल कर पीएं.

सर्दी में इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए खाएं सरसों का साग, साग की पत्तियों में आवश्यक पोषक तत्वों का खजाना छिपा होता है.

सरसों का साग एक प्रकार की हरी पत्तेदार सब्जी सरसों के पत्तों से तैयार किया जाता है. पंजाबी डिश ज्यादातर सर्दियों में बनाई जाती है. कहा जाता है कि इसका सेवन शरीर को गर्मी देता है और शीतलहर से लड़ाई में मदद करता है. साग की पत्तियों में आवश्यक पोषक तत्वों का खजाना छिपा होता है. सरसों की पत्तियों में शीर्ष वर्ग के एंटी ऑक्सीडेंट्स और आवश्यक सूक्ष्म पोषक के अलावा आयरन पाया जाता है.

सरसों का साग बनाने की विधि व सामग्री 

250 ग्राम सरसों की पत्तियां
125 ग्राम बथुआ की पत्तियां
125 ग्राम पालक की पत्तियां
240 ग्राम मेथी की पत्तियां
200 ग्राम प्याज
50 ग्राम अदरक
20 ग्राम हरी मिर्च
20 ग्राम लहसुन
5 ग्राम लाल मिर्च पाउडर
1000 मिलीलीटर पानी
50 ग्राम मक्के का आटा
स्वाद के मुताबिक नमक

बनाने का तरीका

सभी हरी पत्तियों को साफ कर काट लें और दोबारा बहते पानी में गंदगी के लिए साफ करें. 3-4 बार हरी पत्तियों पर पानी गिराएं. उसके बाद, प्रेशर कूकर में मक्के के आटे को छोड़कर सभी सामग्री को मिलाकर 8-10 मिनट तक पकाएं. स्टॉक और मक्के के आटे के साथ साग को ब्लेंडर में डालें और एक मिनट तक मिक्स करें. एक कटोरा में मिश्रित साग को डालें.

अब, एक कड़ाही में हरी पत्तियों को शामिल करें और 20-25 मिनट तक उबालें. दूसरी कड़ाही में तेल या घी को गर्म कर कटी हुई प्याज को डालें और रंग भूरा होने तक तलें. उसके बाद तैयार साग को शामिल करें और गर्म तेल या घी में कुछ मिनट तक भूनें. अब, तैयार पंजाबी डिश को मकई की रोटी, मूली, आंवले के अचार और गुड़ के साथ खा सकते हैं. गार्निश और स्वाद के लिए आप १०० ग्राम पनीर ले सकते हैं।