Maa Kalratri देवी दुर्गा के भयानक रूपों में से एक है और इन्हे माँ काली भी कहा जाता है। ‘काल’ शब्द आमतौर पर समय या मृत्यु को संदर्भित करता है और ‘रात्रि’ शब्द का अर्थ रात होता है। इसलिए, उन्हें अंधेरे का अंत करने वाली देवी के रूप में भी जाना जाता है।
Maa Kalratri की उत्पत्ति
एक बार की बात है, शुंभ और निशुंभ नाम के दो दुष्ट राक्षस थे। उनके भाई, नमुची को स्वर्ग के देवता इंद्र देव ने मार डाला था। इसलिए वे दोनों देवताओं से बदला लेना चाहते थे।
जल्द ही, उन्होंने देवताओं पर हमला किया और देवताओं के वार से उनके शरीर से रक्त की जितनी बूंदे गिरीं, उनके पराक्रम से अनेक दैत्य उत्पन्न हुए। जल्द ही, रक्तबीज के रक्त से पैदा हुए हजारों राक्षक देवताओं को हराने में कामयाब रहे और सारी दुनिया पर उन्होंने अपना क़ब्ज़ा कर लिया।
इस युद्ध में चंड व मुंड ने रक्तबीज की मदद की। ये तीनों राक्षस महिषासुर के पुराने मित्र थे, जिसका महिषासुरमर्दिनि द्वारा वध हुआ था। सभी राक्षसों ने मिलकर देवतों को पराजित कर तीनों लोकों पर अपना शासन कर लिया।
इंद्र और अन्य देवता हिमालय गए और देवी पार्वती से प्रार्थना की। उन्होंने देवताओं के डर को समझा और उनकी मदद के लिए देवी चंडिका की रचना की। देवी चंडिका शुंभ और निशुंभ द्वारा भेजे गए अधिकांश राक्षसों को मारने में सक्षम थीं।
हालांकि, चंड व मुंड और रक्तबीज जैसे राक्षस बहुत शक्तिशाली थे और वह उन्हें मारने में असमर्थ थी। तो, देवी चंडिका ने अपने शीर्ष से देवी कालरात्रि बनाई।
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Maa Kalratri ने चंड व मुंड से युद्ध किया और अंत में उनका वध कर दिया। इसलिए उन्हें चामुंडा भी कहा जाता है। इसके बाद, देवी चंडिका/ देवी कालरात्रि, शक्तिशाली राक्षस रक्तबीज से लड़ने के लिए आगे बढ़ीं।
रक्तबीज को ब्रम्हा भगवान से एक विशेष वरदान प्राप्त था कि यदि उसके रक्त की एक बूंद भी जमीन पर गिरती है, तो उसके बूंद से उसका एक और हमशक्ल पैदा हो जाएगा। इसलिए, जैसे ही माँ कालरात्रि रक्तबीज पर हमला करती रक्तबीज का एक और रूप उत्त्पन्न हो जाता।
Maa Kalratri ने सभी रक्तबीज पर आक्रमण किया, लेकिन सेना केवल बढ़ती चली गई। जैसे ही रक्तबीज के शरीर से खून की एक बूंद जमीन पर गिरती थी, उसके समान कद का एक और महान राक्षस प्रकट हो जाता था।
यह देख मां कालरात्रि अत्यंत क्रोधित हो उठीं और रक्तबीज के हर हमशक्ल दानव का खून पीने लगीं। माँ कालरात्रि ने रक्तबीज के खून को जमीन पर गिरने से रोक दिया और अंततः सभी दानवो का अंत हो गया। बाद में, उन्होंने शुंभ और निशुंभ को भी मार डाला और तीनों लोकों में शांति की स्थापना की।
Maa Kalratri का स्वरूप
Maa Kalratri रात्रि के सामान बहुत ही गहरे रंग के लिए जानी जाती है और उन के लंबे, खुले बाल हैं। माँ कालरात्रि के चार हाथ हैं। वह अपने दो हाथों में वज्र और खडग रखती है, जबकि उन के अन्य दो हाथ अभय (रक्षा) और वरदा (आशीर्वाद) की स्थिति में हैं। देवी कालरात्रि गधें की सवारी करती हैं।
इसलिए ऐसा माना जाता है कि मां कालरात्रि अपने भक्तों पर कृपा करती हैं और उन्हें सभी बुराईयों से भी बचाती हैं। नवरात्रि के दौरान उनकी पूजा कि जाती है, क्योंकि वह सभी अंधकारों को नष्ट कर सकती है और दुनिया में शांति लाती है।
माँ कालरात्रि को व्यापक रूप से देवी काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृित्यू, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालरात्रि के अन्य नामों में से हैं |
नवरात्रि में सातवें दिन Maa Kalratri की पूजा का महत्व
शास्त्रों में मां कालरात्रि को संकटों और विघ्न को दूर करने वाली देवी माना गया हैं। इसके साथ ही मां कालरात्रि को शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला भी बताया गया है। नवरात्रि में मां कालरात्रि की पूजा करने से तनाव, अज्ञात भय और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती हैं।
देवी कालरात्रि, जिन्हें मां काली भी कहा जाता है, देवी दुर्गा का 7वां अवतार हैं। नवरात्रि के 7वें दिन इनकी भी अन्य देविओं की तरह पूजा की जाती है।
देवी कालरात्रि पूर्णता का प्रतीक है और अपने भक्तों को पूर्णता, खुशी और हृदय की पवित्रता प्राप्त करने में मदद करती है।
उन्हें समय और मृत्यु का नाश करने वाला भी माना जाता है। इस प्रकार उनका नाम “काल रात्रि” है। वह सबसे अंधेरी रातों की शक्ति है।
वह अपने भक्तों को निडर बनाती हैं। वह अपने भक्तों को बुरी शक्तियों और आत्माओं से बचाती है।
माँ कालरात्रि सहस्रार चक्र से जुड़ी हुई है, जिससे वे अपने सच्चे भक्तों को ज्ञान, शक्ति और धन प्रदान करती है।
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Maa Kalratri की पूजा विधि
पौराणिक कथाओं के विशेषज्ञों के अनुसार, कलश के पास देवी की मूर्ति / फोटो रखने और उन्हें धूप, अगरबती, चमेली और गुड़हल के फूल चढ़ाने का सुझाव दिया गया है।
इसके बाद कालरात्रि देवी के मंत्रों का जाप करें और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करें और घी से युक्त बत्ती से आरती करें।
पूजा विधि का पालन करने के बाद ओम देवी कालरात्रयै नमः का 108 बार जाप करने का सुझाव दिया जाता है।
Maa Kalratri को अर्पित करने के लिए प्रसाद
विशेषज्ञों के अनुसार, सातवें दिन भक्त देवी को प्रसन्न करने के लिए गुड़ और जल चढ़ाते हैं। देवी को प्रसन्न करने के लिए आप गुड़ का प्रयोग खीर या चिक्की बनाने के लिए कर सकते हैं।