होम मंत्र-जाप Mahishasura Mardini के 9 स्वरूप, स्तोत्रम्, अर्थ और लाभ

Mahishasura Mardini के 9 स्वरूप, स्तोत्रम्, अर्थ और लाभ

Mahishasura mardini माँ दुर्गा शक्ति का उग्र रूप माना जाता है। उन्होंने ने महिषासुर का वध कर के ऋषिओं और देवता पर हो रहे अत्याचार को समाप्त किया।

Mahishasura Mardini देवी दुर्गा के उग्र रूपों में से एक हैं।

Mahishasura mardini स्तोत्रम गीत (अयि गिरि नन्दिनी) असुर (महिषासुरन) को मारने के बाद शक्ति को शांत करने के लिए गाया गया था। यह गीत आपके और आपके घर के आसपास और अधिक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करता है। यह भगवान शक्ति देवी की पूजा करने के लिए सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक है।

कहा जाता है कि Mahishasura Mardini स्तोत्रम भक्त को शांति प्रदान करता है और सभी भय और दुखों को दूर करता है। यह संदेह, क्रोध, अहंकार और जड़ता जैसी नकारात्मक भावनाओं को दूर भगाता है। यह स्तोत्रम आस्तिक के मार्ग में आने वाली बाधाओं को भी दूर करता है। Mahishasura Mardini स्तोत्रम को कोई भी सुन सकता है, हालांकि मंत्रों का जाप अधिक शक्तिशाली माना जाता है।

मां दुर्गा की उत्पत्ति

Mahishasura Mardini Stotram Meaning Benefits
Mahishasura mardini

पुराणों में उल्लेखित के अनुसार मानव ही नहीं देवता भी असुरों के अत्याचार से परेशान हो गए थे। तब देवता ब्रह्माजी के पास गए और उनसे सामाधान मांगा। तब ब्रह्मा जी ने बताया कि दैत्यराज का वध एक कुंवारी कन्या के हाथ ही हो सकता है।

इसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर अपने तेज को एक जगह समाहित किया और इस शक्ति से देवी का जन्म हुआ। देवी के शरीर का अंग प्रत्येक देव की शक्ति के अंश से उत्पन हुआ था। जैसे भगवान शिव के तेज से माता का मुख बना, श्रीहरि विष्णु के तेज से भुजाएं, ब्रह्मा जी के तेज से माता के दोनों चरण बनें।

वहीं, यमराज के तेज से मस्तक और केश, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जांघें, पृथ्वी के तेज से नितंब, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की अंगुलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने।

Mahishasura Mardini को दिए देवगण ने अपने अस्त्र

देवगण की सभी अस्त्र-शस्त्र को देवी दुर्गा ने अपनी 18 भुजाओं में धारण किया।

देवी का जन्म तो हो गया, लेकिन महिषासुर के अंत के लिए देवी को अभी भी अपार शक्ति की जरूरत थी। तब भगवान शिव ने उनको अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने चक्र, हनुमान जी ने गदा, श्रीराम ने धनुष, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, वरुण ने दिव्य शंख, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, इंद्र ने वज्र, शेषनाग ने मणियों से सुशोभित नाग, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने माता उनका वाहन सिंह दिया। इन सभी अस्त्र-शस्त्र को देवी दुर्गा ने अपनी 18 भुजाओं में धारण किया।

अस्त्र-शस्त्र और आंतरिक शक्ति से देवी का विराट रूप बन गया और असुर उन्हें देख कर ही भयभीत होने लगे। देवी के पास सभी देवताओं की शक्तियां हैं। उनके जैसा कोई दूसरा शक्तिशाली नहीं है, उनमें अपार शक्ति है, उन शक्तियों का कोई अंत नहीं है, इसलिए वे आदिशक्ति कहलाती हैं।

देवगण की शक्ति से बनी नवदुर्गा

देवी दुर्गा के अंश के रूप में इन देवियों की पूजा होती है।

प्रथमं शैलपुत्री द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

Mahishasura mardini स्तोत्रम्

Mahishasura mardini स्तोत्रम् गुरु आदि शंकराचार्य (श्री श्री श्री शंकर भगवतपादाचार्य) द्वारा लिखित देवी दुर्गा का एक बहुत लोकप्रिय भक्ति गीत है।

Mahishasura mardini स्तोत्रम् का जाप करने से, दिव्य आनंद, सुरक्षा और देवी महिषासुर मर्दिनी की कृपा प्राप्त हो सकती है, जो अपने भक्तों पर मातृत्व के लिए जानी जाती हैं, जो मोक्ष प्राप्त करने के लिए जीवन भर उनका साथ देती हैं।

।।१।।
अयि गिरि नन्दिनी नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते।
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Aigiri nandini nandhitha medhini Viswa Vinodhini Nandanuthe
Girivara Vindhya Sirodhi Nivasini Vishnu Vilasini Jishnu Nuthe
Bhagawathi Hey Sithi Kanda Kudumbini Bhoori Kudumbini Bhoori Kruthe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- हे हिमालायराज की कन्या, विश्व को आनंद देने वाली, नंदी गणों के द्वारा नमस्कृत, गिरिवर विन्ध्याचल के शिरो (शिखर) पर निवास करने वाली, भगवान् विष्णु को प्रसन्न करने वाली, इन्द्रदेव के द्वारा नमस्कृत, भगवान् नीलकंठ की पत्नी, विश्व में विशाल कुटुंब वाली और विश्व को संपन्नता देने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली भगवती! अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।२।।
सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते ।
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ।।
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणी सिन्धुसुते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Suravara Varshini Durdara DarshiniDurmukhamarshani Harsharathe
Tribhuvana Poshini Sankara Thoshini Keelbisha Moshini Ghosharathe
Danuja Niroshini Dithisutha Roshini Durmadha Soshini Sindhusuthe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- देवों को वरदान देने वाली, दुर्धर और दुर्मुख असुरों को मारने वाली और स्वयं में ही हर्षित (प्रसन्न) रहने वाली, तीनों लोकों का पोषण करने वाली, शंकर को संतुष्ट करने वाली, पापों को हरने वाली और घोर गर्जना करने वाली, दानवों पर क्रोध करने वाली, अहंकारियों के घमंड को सुखा देने वाली, समुद्र की पुत्री हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।३।।
अयि जगदम्बमदम्बकदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते ।
शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते ।।
मधुमधुरे मधुकैटभगन्जिनि कैटभभंजिनि रासरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Ayi jagadambha madamba kadam Bavana Priya Vasini Hasarathe
Shikhari Siromani Thunga Himalaya Srunga Nijalaya Madhyagathe
Madhu madhure madhu Kaitabha Banjini Rasarathe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- हे जगतमाता, मेरी माँ, प्रेम से कदम्ब के वन में वास करने वाली, हास्य भाव में रहने वाली, हिमालय के शिखर पर स्थित अपने भवन में विराजित, मधु (शहद) की तरह मधुर, मधु-कैटभ का मद नष्ट करने वाली, महिष को विदीर्ण करने वाली,सदा युद्ध में लिप्त रहने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।४।।
अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते ।
रिपु गजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते ।।
निजभुज दण्ड निपतित खण्ड विपातित मुंड भटाधिपते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Ayi satha kanda vikanditha runda Vithunditha Shunda Gajathipathe
Ripu Gaja Ganda Vidhaarana Chanda Paraakrama Shunda Mrigathipathe
Nija Bhuja Danda Nipaathitha Khanda Vipaathitha Munda Bhatathipathe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- शत्रुओं के हाथियों की सूंड काटने वाली और उनके सौ टुकड़े करने वाली, जिनका सिंह शत्रुओं के हाथियों के सर अलग अलग टुकड़े कर देता है, अपनी भुजाओं के अस्त्रों से चण्ड और मुंड के शीश काटने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।५।।
अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते ।
चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतकृत प्रथमाधिपते ।।
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Ayi rana durmathashathru vadhothitha Durdhara Nirjara Shakthi Bruthe
Chathura Vicharadureena Maha Shiva Dhoothakritha Pramadhipathe

Duritha Dureetha Dhurasaya Durmathi Dhanava Dhutha Kruthaanthamathe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- रण में मदोंमत शत्रुओं का वध करने वाली, अजर अविनाशी शक्तियां धारण करने वाली, प्रमथनाथ (शिव) की चतुराई जानकार उन्हें अपना दूत बनाने वाली, दुर्मति और बुरे विचार वाले दानव के दूत के प्रस्ताव का अंत करने वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।६।।
अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभय दायकरे ।
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे ।।
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Ayi sharanagatha vairi vadhuvara Veera Varabhaya Dhayakare
Tribhuvana Masthaka Shoola Virodhi Shirodhi Krithamala Shoolakare
Dhumi dhumi Thaamara Dundu binadha Maho Mukharikruthatigmakare
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- शरणागत शत्रुओं की पत्नियों के आग्रह पर उन्हें अभयदान देने वाली, तीनों लोकों को पीड़ित करने वाले दैत्यों पर प्रहार करने योग्य त्रिशूल धारण करने वाली, देवताओं की दुन्दुभी से ‘दुमि दुमि’ की ध्वनि को सभी दिशाओं में व्याप्त करने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।७।।
अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते।
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते।।
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Ayi nija hoonkrithi maathra niraakrutha Dhoomra Vilochana Dhoomra Sathe
Samar Vishoshitha Sonitha Bheeja Samudhbhava Sonitha Bheejalathe
Shiva Shiva Shumbha Nishumbhamaha Hava Tarpitha Bhootha Pisacharathe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- मात्र अपनी हुंकार से धूम्रलोचन राक्षस को धूम्र (धुएं) के सामान भस्म करने वाली, युद्ध में कुपित रक्तबीज के रक्त से उत्पन्न अन्य रक्तबीजों का रक्त पीने वाली, शुम्भ और निशुम्भ दैत्यों की बली से शिव और भूत-प्रेतों को तृप्त करने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।८।।
धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके ।
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।।
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Dhanu ranu shanga ranakshana sanga Parisphuradanga Natak Katake
Kanaka Pishanga Prishatka Nishanga Rasadh bhata Shringa Hathavatuke
Kritha Chaturanga Balakshithi ranga Ghatad Bahuranga Ratad Batuke
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- युद्ध भूमि में जिनके हाथों के कंगन धनुष के साथ चमकते हैं, जिनके सोने के तीर शत्रुओं को विदीर्ण करके लाल हो जाते हैं और उनकी चीख निकालते हैं, चारों प्रकार की सेनाओं [हाथी, घोड़ा, पैदल, रथ] का संहार करने वाली अनेक प्रकार की ध्वनि करने वाले बटुकों को उत्पन्न करने वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।९।।
सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते ।
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।।
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Sura-Lalanaa Tatatheyi Tatheyi Krta-Abhinayo-[U]dara Nrtya-Rate
Krta Kukuthah Kukutho Gaddadaadika-Taala Kutuuhala Gaana-Rate |
Dhudhukutta Dhukkutta Dhimdhimita Dhvani Dhiira Mrdamga Ninaada-Rate
Jaya Jaya He Mahissaasura-Mardini Ramya-Kapardini Shaila-Sute

अर्थ- देवांगनाओं के तत-था थेयि-थेयि आदि शब्दों से युक्त भावमय नृत्य में मग्न रहने वाली, कु-कुथ अड्डी विभिन्न प्रकार की मात्राओं वाले ताल वाले स्वर्गीय गीतों को सुनने में लीन, मृदंग की धू-धुकुट, धिमि-धिमि आदि गंभीर ध्वनि सुनने में लिप्त रहने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।१०।।
जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते ।
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।।
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Jaya Jaya Japya Jaye Jaya shabdha Parastuti Tathpara Vishwanuthe
Bhana Bhana bhinjimi Bhinkritha Noopura Sinjitha Mohitha Bhoothapathe
Naditha Nataartha Nadi Nada Nayaka Naditha Natya Sugaanarathe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- जय जयकार करने और स्तुति करने वाले समस्त विश्व के द्वारा नमस्कृत, अपने नूपुर के झण-झण और झिम्झिम शब्दों से भूतपति महादेव को मोहित करने वाली, नटी-नटों के नायक अर्धनारीश्वर के नृत्य से सुशोभित नाट्य में तल्लीन रहने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।११।।
अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते ।
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।।
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Ayi Sumanah Sumanah Sumanah Sumanohara Kanthiyuthe
Sritha Rajanee Rajanee Rajanee Rajanee karavakra Vrithe

Sunayana Vibhramara bhramara Bhramara brahmaradhipadhe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- आकर्षक कान्ति के साथ अति सुन्दर मन से युक्त और रात्रि के आश्रय अर्थात चंद्र देव की आभा को अपने चेहरे की सुन्दरता से फीका करने वाली, काले भंवरों के सामान सुन्दर नेत्रों वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।१२।।
सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते ।
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।।
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Sahitha mahaahava mallama thallika Mallita rallaka Mallarathe
Virichitha vallika Pallika Mallika Billika Bhillika Varga Vrithe
Sithakritha phulla Samulla Sitharuna Thallaja Pallava Sallalithe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- महायोद्धाओं से युद्ध में चमेली के पुष्पों की भाँति कोमल स्त्रियों के साथ रहने वाली तथा चमेली की लताओं की भाँति कोमल भील स्त्रियों से जो झींगुरों के झुण्ड की भाँती घिरी हुई हैं, चेहरे पर उल्लास (ख़ुशी) से उत्पन्न, उषाकाल के सूर्य और खिले हए लाल फूल के समान मुस्कान वाली, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली, अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।१३।।
अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते ।
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।।
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Avirala ganda Galanmadha medhura Maththa mathangaja Rajapathe
Tribhuvana Bhooshana Bhootha Kalanidhi Roopa Payonidhi Rajasuthe
Ayi Sudha Theejana Laalasa Maanasa Mohana Manmatha Rajasuthe
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- जिसके कानों से अविरल (लगातार) मद बहता रहता है उस हाथी के समान उत्तेजित हे गजेश्वरी, तीनों लोकों के आभूषण रूप-सौंदर्य, शक्ति और कलाओं से सुशोभित हे राजपुत्री, सुंदर मुस्कान वाली स्त्रियों को पाने के लिए मन में मोह उत्पन्न करने वाली मन्मथ (कामदेव) की पुत्री के समान, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।१४।।
कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते ।
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।।
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Kamala dhalaamala komala kaanthi Kala Kalithaamala Bala Lathe
Sakala Vilaasa Kalanila yakrama Keli Chalathkala Hamsa Kule
Alikula Sankula Kuvalaya Mandala Mauli Miladh Bhakulaalikule
Jaya Jaya Hey Mahishasura Mardini Ramyaka pardini Shailasuthe

अर्थ- जिनका कमल दल (पंखुड़ी) के समान कोमल, स्वच्छ और कांति (चमक) से युक्त मस्तक है, हंसों के समान जिनकी चाल है, जिनसे सभी कलाओं का उद्भव हुआ है, जिनके बालों में भंवरों से घिरे कुमुदनी के फूल और बकुल पुष्प सुशोभित हैं उन महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री की जय हो, जय हो, जय हो।

।।१५।।
करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते।
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते।।
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Kara murali rava veejitha koojitha Lajjitha Kokila Manjumathe
Militha Pulinda Manohara Kunchitha Ranchitha Shaila Nikunjagathe
Nija Guna Bhootha Mahaa Sabari Gana Sathguna Sambhritha Kelithale
Jaya jaya hey mahishasura mardini ramyaka pardini shailasuthe

अर्थ- जिनके हाथों की मुरली से बहने वाली ध्वनि से कोयल की आवाज भी लज्जित हो जाती है, जो [खिले हुए फूलों से] रंगीन पर्वतों से विचरती हुयी, पुलिंद जनजाति की स्त्रियों के साथ मनोहर गीत जाती हैं, जो सद्गुणों से सम्पान शबरी जाति की स्त्रियों के साथ खेलती हैं उन महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री की जय हो, जय हो, जय हो।

।।१६।।
कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे।
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे।।
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Kati thata peetha dukoola vichithra Mayuka thiraskritha chandra ruche
Pranatha Suraasura Mouli Mani Sphura Dansula sannakha chandra ruche
Jitha kanakachala maulipadorjitha Nirbhara kunjara kumbhakuche
Jaya jaya hey mahishasura mardini ramyaka pardini shailasuthe

अर्थ- जिनकी चमक से चन्द्रमा की रौशनी फीकी पड़ जाए ऐसे सुन्दर रेशम के वस्त्रों से जिनकी कमर सुशोभित है, देवताओं और असुरों के सर झुकने पर उनके मुकुट की मणियों से जिनके पैरों के नाखून चंद्रमा की भांति दमकते हैं और जैसे सोने के पर्वतों पर विजय पाकर कोई हाथी मदोन्मत होता है वैसे ही देवी के उरोज (वक्ष स्थल) कलश की भाँति प्रतीत होते हैं ऐसी हे महिषासुर का मर्दन करने वाली अपने बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।१७।।
विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते।
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते।।
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Vijitha sahasra karaika sahasrakaraika Sarakaraika nuthe
Krutha Sutha Tharaka Sangaratharaka Sangaratharaka soonu suthe

Suratha samadhi samana samadhi Samadhi samadhi sujatharathe
Jaya jaya hey mahishasura mardini ramyaka pardini shailasuthe

अर्थ- सहस्रों (हजारों) दैत्यों के सहस्रों हाथों से सहस्रों युद्ध जीतने वाली और सहस्रों हाथों से पूजित, सुरतारक (देवताओं को बचाने वाला) उत्पन्न करने वाली, उसका तारकासुर के साथ युद्ध कराने वाली, राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य की भक्ति से सामान रूप से संतुष्ट होने वाली हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।१८।।
पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे।
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।।
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Padhakamalam karuna nilaye varivasya Dhiyonudhi nansha shive
Ayi kamale kamala nilaye kamala nilayahssa kathamna bhaveth
Thava padameva param Padha Mithyanu sheelayatho mama kimna shive
Jaya jaya hey mahishasura mardini ramyaka pardini shailasuthe

अर्थ- जो भी तुम्हारे दयामय पद कमलों की सेवा करता है, हे कमला! (लक्ष्मी) वह व्यक्ति कमलानिवास (धनी) कैसे न बने? हे शिवे! तुम्हारे पदकमल ही परमपद हैं उनका ध्यान करने पर भी परम पद कैसे नहीं पाऊंगा? हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।१९।।
कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम् ।
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम् ।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Kanakala sathkala sindhu jalairanu Sinjinuthe guna ranga bhuvam
Bhajathi sakimna sachee kucha kumbha Thati pari rambha sukhanubhavam
Thava charanam saranam kara vani Nataamaravaani nivasi shivam
Jaya jaya hey mahishasura mardini ramyaka pardini shailasuthe

अर्थ- सोने के समान चमकते हुए नदी के जल से जो तुम्हे रंग भवन में छिड़काव करेगा वो शची (इंद्राणी) के वक्ष से आलिंगित होने वाले इंद्र के समान सुखानुभूति क्यों न पायेगा? हे वाणी! (महासरस्वती) तुममे मांगल्य का निवास है, मैं तुम्हारे चरण में शरण लेता हूँ, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।२०।।
तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते।
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखीसु मुखीभिरसौ विमुखीक्रियते।
ममतु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुतक्रियते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ।।

Thava vimalendu kulam vadhanaedhu Malam Sakalam nanu kulayathe
Kimu puruhootha purendu mukhi Sumukhi bhirasow vimukhee kriyathe
Mamathu matham shiva namadhane Bhavathi kripaya kimuth kriyathe
Jaya jaya hey mahishasura mardini ramyaka pardini shailasuthe

अर्थ- तुम्हारा निर्मल चन्द्र समान मुख चन्द्रमा का निवास है जो सभी अशुद्धियों को दूर कर देता है, नहीं तो क्यों मेरा मन इंद्रपूरी की सुन्दर स्त्रियों से विमुख हो गया है? मेरे मत के अनुसार तुम्हारी कृपा के बिना शिव नाम के धन की प्राप्ति कैसे संभव हो सकती है? हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।२१।।
अयि मयि दीन दयालु-तया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे।
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।।
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।

Ayi mayi deena dayalu Dhaya kripayaiva Tvaya bhavi thavya mume
Ayi jagatho janani kripayaasi yathaasi Thathaanu mithaasi rathe
Yaduchitha mathra bhavathyu rarikurutha Durutha pamapaakuruthe
Jaya jaya hey mahishasura mardini ramyaka pardini shailasuthe

अर्थ- हे दीनों पर दया करने वाली उमा! मुझ पर भी दया कर ही दो, हे जगत जननी! जैसे तुम दया की वर्ष करती हो वैसे ही तीरों की वर्ष भी करती हो, इसलिए इस समय जैसा तुम्हें उचित लगे वैसा करो मेरे पाप और ताप दूर करो, हे महिषासुर का मर्दन करने वाली बालों की लता से आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

।।२२।।
स्तुतिमिमां स्तिमितः सुसमाधिना नियमतो यमतोऽनुदिनं पठेत् ।
परमया रमया स निषेव्यते परिजनोऽरिजनोऽपि च तं भजेत्।।

Stutimima stimitah susamadhina niyamato yamatonudinam pathet।
Paramaya ramaya s nishevyate parijnoऽrijnopi ch tan bhajet।।

अर्थ – जो मनुष्य शान्तभाव से पूर्णरूप से मन को एकाग्र करके तथा इन्द्रियों पर नियन्त्रण कर नियमपूर्वक प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करता है, भगवती महालक्ष्मी उसके यहाँ सदा वास करती हैं और उसके बन्धु-बान्धव तथा शत्रुजन भी सदा उसकी सेवा में तत्पर रहते हैं।

Mahishasura Mardini स्तोत्रम का पाठ कब कर सकते हैं?

Mahishasura mardini स्तोत्र का पाठ कब करना है, इसके बारे में कोई विशेष प्रतिबंध नहीं है। आप जब चाहें जप कर सकते हैं। हालाँकि इस स्तोत्र पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, Mahishasura Mardini स्तोत्रम के प्रत्येक श्लोक के अर्थ को समझते हुए शांतिपूर्ण वातावरण में इसका पाठ करें।

नवरात्रि के नौ दिनों में Mahishasura Mardini स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। अधिमानतः ब्रह्म मुहूर्त के दौरान महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र का पाठ करें।

Mahishasura Mardini स्तोत्रम का जाप करने से क्या लाभ होता है?

मंत्र/श्लोक/स्तोत्र में मूल रूप से ध्वनि होती है। जो मानव शरीर की चेतना को बढ़ाने में सहायता करती हैं।

Mahishasura Mardini स्तोत्रम का जाप करने से, दिव्य आनंद, सुरक्षा और देवी महिषासुर मर्दिनी की कृपा प्राप्त हो सकती है, जो अपने भक्तों पर मातृत्व के लिए जानी जाती हैं, जो मोक्ष प्राप्त करने के लिए जीवन भर उनका साथ देती हैं।

परंपरागत रूप से, यह स्तोत्रम शक्ति के गुणों को याद करने और देवी Mahishasura Mardini की मानवता को बचाने, राक्षसों को नष्ट करने और लोकों की रक्षा करने के कार्यों पर उनकी महानता का पाठ और प्रशंसा करने के लिए है।

Mahishasura Mardini स्तोत्रम मां देवी दुर्गा को समर्पित एक प्रार्थना के रूप में है। Mahishasura Mardini स्तोत्रम का जाप करने से, आप महिषासुर मर्दिनी या चंडिका के रूप में देवी दुर्गा का असीम आनंद, सुरक्षा और आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

इस स्तोत्र का जप हमें अत्यधिक दुःख से मुक्त करता है और जीवन के सभी आवश्यक पहलुओं में हमारा उत्थान करता है। जो सभी देवी दुर्गा के चरण कमलों की पूजा करते हैं, उन्हें देवी की कृपा प्राप्त होती है।

माँ दुर्गा को आदि शक्ति के नाम से जाना जाता है। वह किसी भी आत्मा के अंदर के सभी भयों पर विजय प्राप्त करती है; वह क्रोध, द्वेष और अहंकार को मारती है और आपके मन, शरीर और आत्मा के अंदर की सभी नकारात्मकताओं को दूर करती है।

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