बदायूं/उ.प्र:: Budaun के जिला महिला अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधिक्षिका की अध्यक्षता पुष्पा पन्त त्रिपाठी ने माहवारी स्वच्छता एवं हाइजीन के प्रति महिलाओं और बालिकाओं को जागरूक किया गया।
Budaun के इस कार्यक्रम में काफ़ी लोग मौजूद रहे
इस कार्यक्रम में क्वालिटी मैनेजर अरविंद कुमार वर्मा, राकेश सैनी स्टाफ नर्स मेल, सर्वेन्द्र यादव, समस्त महिला स्टाफ नर्स व तीमारदार मौजूद रहे। बदायूं के जिला महिला अस्पताल में कार्यक्रम का आयोजन किया गया था।
संत गाडगे सर्वजन कल्याण समिति के प्रदेश सचिव इंद्रजीत ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ पूरी दुनिया में हर महीने करीब 1.8 अरब महिलाओं को माहवारी होती है, इनमें से ज़्यादातर विकासशील देशों की कम से कम 50 करोड़ महिलाओं को माहवारी के बारे में ना तो कोई अधिक जानकारी है और ना ही उन्हें इस स्थिति को सुरक्षित और सम्मानजनक तरीके से संभालने के बारे में ज़्यादा कुछ पता है।
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उदाहरण के लिए, नाइजीरिया में 25 प्रतिशत महिलाओं को (मेन्सट्रुअल हाइजीन मैनेजमेंट) यानी माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के लिए ज़रूरी निजत या एकांत की कमी है।
बांग्लादेश में केवल 6 प्रतिशत स्कूलों में ही माहवारी स्वच्छता प्रबंधन की शिक्षा दी जाती है। माहवारी की समझ और इसके लिए ज़रूरी साफ़-सफ़ाई को लेकर जागरूकता की काफ़ी कमी है।
जिला अध्यक्ष खुशबू मथुरिया ने बताया कि शिक्षा और रोज़गार से लेकर स्वास्थ्य और पर्यावरण तक हर विषय में लैंगिक समानता के मद्देनज़र यह संकट बेहद डरावना है। माहवारी को लेकर किशोरियों और महिलाओं को अपमान, उत्पीड़न एवं सामाजिक बहिष्कार तक का सामना करना पड़ता है।
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उन्होंने कहा इन सबकी वजह से महिलाएं कहीं आ-जा नहीं सकती हैं, उनकी पसंद-नापसंद प्रभावित होती है, यहां तक कि समुदाय के बीच उठना-बैठना दूभर हो जाता है और लड़कियों की स्कूलों में उपस्थिति भी कम हो जाती है।
अक्सर यह देखने में आता है कि भेदभाव वाली सामाजिक प्रथाएं, सांस्कृतिक रूढ़ियां, ग़रीबी और शौचालय एवं सैनिटरी उत्पादों जैसी जरूरी सुविधाओं की कमी सभी महिलाओं तक माहवारी स्वास्थ्य और स्वच्छता की पहुंच में सबसे बड़ा रोड़ा बनती हैं।
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लीगल एडवाइजर दीपांशी सक्सेना ने बताया कि सैनिटरी पैड के मुफ़्त वितरण योजना के बजाय जागरूकता और इसकी स्वीकृति पर अधिक ज़ोर देने की कोशिश करें। स्थानीय और घरेलू लोग चूंकि सबसे अच्छे सलाहकार होते हैं, इसलिए इसमें पूरे समाज के दृष्टिकोण को शामिल किया गया है।
स्वच्छता सखियां स्थानीय लोक गीतों, नारों, रेडियो संदेशों और नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से माहवारी स्वच्छता को बढ़ावा देती हैं। “पावना, बदल रही है मन की भावना” और “पावना नारी शक्ति का आईना” जैसे नारे वहां के गांवों और स्कूलों में लोकप्रिय हो गए हैं।
शिक्षा और पंचायती राज विभाग ने भी रक्त दान शिविरों, निबंध लेखन एवं ड्राइंग प्रतियोगिताओं के माध्यम से और अंतर्राष्ट्रीय माहवारी स्वच्छता दिवस मनाकर इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना सक्रिय योगदान दिया है।
इतना ही नहीं असुरक्षित माहवारी के कारण तमाम तरह की बीमारियों का शिकार हुई महिलाओं को भी अक्सर अपने अनुभव साझा करने के लिए इन अभियानों में लाया जाता है।
इस योजना ने केवल सैनिटरी पैड बेचने के अलावा और भी बहुत कुछ हासिल किया है। माहवारी से जुड़ी तमाम रूढ़ियों से लड़ने के लिए इस विषय से जुड़े तमाम मिथकों और भ्रांतियों को तोड़कर एक सामाजिक क्रांति की शुरुआत की है।
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बदायूं संवाददाता कुलदीप सक्सेना की रिपोर्ट