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केएल राहुल पर संजय मांजरेकर की बातों को इस वर्ल्ड चैंपियन खिलाड़ी ने कहा बकवास

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केएल राहुल पर संजय मांजरेकर ने खड़े किये थे सवाल

केएल राहुल (KL Rahul) की ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए हुई टेस्ट टीम सेलेक्शन में वापसी पर संजय मांजरेकर ने खड़े किये थे  सवाल

नई दिल्ली. टीम इंडिया की टेस्ट टीम में केएल राहुल की वापसी हुई तो कई फैंस ने बीसीसीआई सेलेक्शन कमेटी का इसका स्वागत किया. कई क्रिकेट एक्सपर्ट भी इसके पक्ष में खड़े दिखाई दिये लेकिन पूर्व क्रिकेटर और कमेंटेटर संजय मांजरेकर (Sanjay Manjrekar) को केएल राहुल (KL Rahul) का सेलेक्शन सही नहीं लगा और उन्होंने इसपर सवाल भी खड़े कर दिये. बीसीसीआई ने अपने ट्विटर हैंडल पर बीसीसीआई सेलेक्शन कमेटी की आलोचना करेत हुए कहा कि राहुल का टेस्ट टीम में वापसी होने का मतलब है कि आप रणजी ट्रॉफी क्रिकेटरों को हतोत्साहित कर रहे हैं और आईपीएल के आधार पर टेस्ट टीम का सेलेक्शन नहीं होना चाहिए. मांजरेकर की इस प्रतिक्रिया के बाद 1983 वर्ल्ड कप चैंपियन टीम के खिलाड़ी क्रिस श्रीकांत भड़क गए. उन्होंने संजय मांजरेकर की कड़ी आलोचना की है.

मांजरेकर पर भड़के श्रीकांत
श्रीकांत ने संजय मांजरेकर (Sanjay Manjrekar) की बातों को बकवास करार दिया है और उन्होंने कहा कि मांजरेकर मुंबई के क्रिकेटरों से आगे नहीं सोच पाते. उन्होंने कहा, ‘संजय मांजरेकर की बात आप छोड़ दीजिये, उनके पास कोई और काम नहीं है. अपने यूट्यूब चैनल पर श्रीकांत ने कहा, ‘केएल राहुल के टेस्ट टीम में सेलेक्शन पर सवाल? संजय मांजरेकर किसी पर सवाल खड़े कर रहे हैं तो मुझे नहीं लगता मैं उनसे सहमत हूं. आप सिर्फ विवाद पैदा करने के लिए सवाल खड़े नहीं कर सकते. केएल राहुल ने हर फॉर्मेट में रन बनाए हैं, आप उनका टेस्ट रिकॉर्ड देख सकते हैं. संजय मांजरेकर जो कह रहे हैं वो बकवास है, मैं उसे नहीं मानता.’

केएल राहुल के चयन पर क्यों खड़े किये मांजरेकर ने सवाल

संजय मांजरेकर ने केएल राहुल के टेस्ट में खराब प्रदर्शन को आधार बनाते हुए उनके सेलेक्शन पर सवाल खड़े किये हैं. केएल राहुल ने 12 टेस्ट पारियों में कोई अर्धशतक नहीं लगाया. आखिरी 27 टेस्ट पारियों में उनका औसत महज 22.23 है. राहुल ने वेस्टइंडीज दौरे पर आखिरी टेस्ट खेला था जिसके बाद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया और वो घरेलू सीजन में टीम इंडिया से बाहर रहे. केएल राहुल अपनी पिछली पांच टेस्ट सीरीज में फ्लॉप रहे. साउथ अफ्रीका में उनका औसत 7.1 रहा. इंग्लैंड वो 29 की औसत से रन बना सके.वेस्टइंडीज के खिलाफ उनकी बल्लेबाजी औसत 18 रही. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टेस्ट सीरीज में राहुल ने 10.7 की औसत से रन बनाए.

Jake Weatherald: 25 वर्षीय खिलाड़ी को हुआ डिप्रेशन, छोड़ा टूर्नामेंट

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Jake Weatherald

जेक वेदरेल्ड ने लिया क्रिकेट से ब्रेक

नई दिल्ली. क्रिकेटर्स भले ही अच्छे स्तर पर पहुंचकर दौलत और शौहरत दोनों कमाते हैं लेकिन इस दौरान उनके ऊपर अच्छे प्रदर्शन का काफी दबाव होता है और यही वजह है कि उन्हें काफी ज्यादा मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. होता तो ये कई क्रिकेटर्स के साथ है लेकिन बहुत ही कम खिलाड़ी हैं जो इसका खुलासा करते हैं. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के कई क्रिकेटर्स ने डिप्रेशन की वजह से क्रिकेट से ब्रेक लिया जिसमें अब एक और युवा खिलाड़ी का नाम जुड़ गया है. साउथ ऑस्ट्रेलिया के 25 वर्षीय बल्लेबाज जेक वेदरल्ड (Jake Weatherald) ने मानसिक परेशानियों की वजह से क्रिकेट से ब्रेक ले लिया है. वेदरल्ड ऑस्ट्रेलिया के फर्स्ट क्लास टूर्नामेंट शैफ्लीड शील्ड में खेल रहे थे और उन्होंने टूर्नामेंट का आगाज शतक के साथ भी किया था लेकिन अब अचानक उन्होंने इसे बीच में ही छोड़ दिया है.

कौन हैं जेक वेदरल्ड?

बाएं हाथ के बल्लेबाज वेदरल्ड (Jake Weatherald)  ने 46 फर्स्ट क्लास मैचों में 34.16 के औसत से 2972 रन बनाए हैं. उनके नाम 7 शतक हैं. यही नहीं वेदरल्ड ने 25 लिस्ट ए मैचों में 4 शतकों की मदद से 997 रन बनाए हैं. लिस्ट ए में उनका औसत 41 से ज्यादा का है. टी20 में भी वेदरल्ड ने शतक ठोका है. वो 48 मैचों में 26 से ज्यादा की औसत से 1235 रन बना चुके हैं.

वेदरल्ड ने क्यों छोड़ी शैफील्ड शील्ड?
फिलहाल ये खुलासा नहीं हो पाया है कि वेदरल्ड (Jake Weatherald) ने क्रिकेट में मानसिक दबाव के चलते ब्रेक लिया है या फिर इस खिलाड़ी ने निजी समस्याओं के चलते ये कदम उठाया है. स्पोर्ट्स साइंस और स्पोर्ट्स मेडिसिन के मैनेजर ने कहा, ‘हम वेदरल्ड के फैसले का सम्मान करते हैं, जिन्होंने टूर्नामेंट छोड़ने का मुश्किल और सही फैसला लिया है. हम उनके फैसले के साथ हैं और उनके साथ संपर्क में रहेंगे. जब भी वो चयन के लिए उपलब्ध रहेंगे, हम उनसे बात करेंगे.’ बता दें जेक वेदरल्ड की जगह विल बोसिस्तो को साउथ ऑस्ट्रेलिया ने अपनी टीम में शामिल किया है, वहीं तेज गेंदबाज डेनियल वॉरेल भी पिंडली की चोट से उबर चुके हैं और वो विक्टोरिया के खिलाफ 30 अक्टूबर को मैच खेल सकते हैं. बता दें जेक वेदरेल्ड से पहले ऑस्ट्रेलिया के ऑलराउंडर ग्लेन मैक्सवेल और विल पुकोवोस्की ने भी मानसिक दबाव के चलते क्रिकेट से ब्रेक लिया था.

Diwali : वास्तु के अनुसार करें दीवाली की पूजा तो माता लक्ष्मी व भगवान गणेश की विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है.

14 नवंबर को है दीपों का त्यौहार यानि दीवाली. जिसे सुख, समृद्धि व खुशहाली का पर्व माना जाता है. इस दिन पूरे विधि विधान से विशेष तौर पर भगवान गणेश व माता लक्ष्मी का पूजा की जाती है. चूंकि मां लक्ष्मी ऐश्वर्य व वैभव की देवी हैं. इसीलिए इस दिन इनकी पूजा से भौतिक सुखों की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही घर में भरपूर खुशियां आती हैं. वहीं दीवाली पूजन में अगर वास्तु निममों का भी खास ध्यान रखा जाए तो विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है.

दीवाली के दिन करें वास्तुनुसार पूजा

उत्तर दिशा में पूजा – माना जाता है कि उत्तर दिशा धन की दिशा होती है. और मां लक्ष्मी जिनकी पूजा दीवाली के दिन होती है, धन की देवी मानी गई हैं इसीलिए दीवाली की पूजा उत्तर दिशा या फिर उत्तर-पूर्व दिशा में ही करनी चाहिए. इसके मुताबिक पूजा करने वाले का मुख घर की उत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए.   

हर बार बदले मूर्तियां – हर साल दीवाली पूजन में इस्तेमाल की जाने वाली लक्ष्मी व गणेश की मूर्तियां नई होनी चाहिए. पुरानी मूर्तियों को इस्तेमाल में नहीं लाना चाहिए. लेकिन अगर आपके पास चांदी की मूर्तियां हैं तो दोबारा उन्हें गंगाजल से साफ करके इस्तेमाल में लाया जा सकता है. 

लाल रंग का इस्तेमाल – कहते हैं देवी को लाल रंग अति प्रिय होता है इसीलिए दीवाली की पूजा में लाल रंग की वस्तुओं का इस्तेमाल विशेष तौर से करना चाहिए. जैसे इस दिन पूजा के दौरान देवी को लाल रंग के कपड़े, लाल रंग के फूल, लाल श्रृंगार अर्पित करें. इससे मां को प्रसन्न किया जा सकता है. 

रोली से बनाएं स्वास्तिक – पूजा घर में दोनों तरफ रोली से स्वास्तिक का निर्माण करना भी शुभ माना जाता है. कहते हैं स्वास्तिक भगवान गणेश का ही स्वरूप होता है. जो अत्यंत शुभ फल देने वाला माना गया है. इससे घर में मौजूद तमाम तरह की नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है. 

पूजा में बजाए शंख – लक्ष्मी पूजन में शंख का बहुत ही महत्व होता है. और शंख की आवाज़ को अत्यंत शुभ माना गया है. इसीलिए दीवाली की पूजा में शंख ज़रुर बजाना चाहिए इससे देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. और मन व मस्तिष्क दोनों में सकारात्मक ऊर्जा आती है. 

Dhanteras : धनतेरस के दिन बर्तन खरीदना क्यों शुभ माना जाता है? क्यों जलाते हैं हम दीया

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दीवाली कोई एक दिन का त्यौहार नहीं हैं बल्कि ये पंचदिवसीय पर्व है जिसकी शुरुआत धनतेरस के साथ ही हो जाती है. पांच दिनों तक चलने वाले इस पर्व में सबसे पहले दिन मनाया जाता है धनतेरस. जो कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि को होता है. इस दिन भगवान धनवंतरि की विशेष तौर पर पूजा होती है. और लोग इस दिन सोने चांदी के अलावा बर्तनों की भी जमकर खरीददारी करते हैंलेकिन आखिर ऐसा क्यों किया जाता हैक्यों इस दिन बर्तन खरीदना शुभता की निशानी मानी जाती है.

इसीलिए खरीदे जाते हैं बर्तन

समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरि प्रकट हुए थे. जब वो प्रकट हुए तो उनके हाथों में कलश मौजूद था. इसीलिए इस दिन विशेष तौर से बर्तन खरीदने की प्रथा है. इस दिन लोग स्टील, एलुमीनियम के नए बर्तन खरीदकर घर लाते हैं जिसे शुभता की निशानी माना जाता है

13 गुना होती है वृद्धि

शास्त्रों में मान्यता है कि इस दिन खरीदे गए सामान से 13 गुना बढ़ोतरी होती है. यही कारण है कि लोग इस दिन जमकर खरीददारी करते हैं. सिर्फ बर्तन ही नहीं बल्कि धनतेरस के दिन चांदी खरीदना भी काफी शुभ फलदायी माना गया है. इसीलिए लोग इस दिन चांदी के सिक्के या फिर चांदी की लक्ष्मीगणेश की मूर्तियां खरीदकर घर लाते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ चांदी ही खरीदी जा सकती है बल्कि सोना, तांबा, कांसा पीतल कोई धातु की वस्तु इस दिन खरीदी जा सकती है. माना जाता है कि धनतेरस के दिन ये चीज़ें खरीदने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और इंसान की किस्मत पलट जाती है

घर की दक्षिण दिशा में जलाएं दीया

यूं तो दीवाली को दीपों का त्यौहार कहा जाता है लेकिन दीए जलाने की प्रथा धनतेरस से ही शुरु हो जाती है. इस दिन घर की दक्षिण दिशा में दीपक जलाने का खासा महत्व होता है. कहते हैं कि एक बार यमदेव से उनके दूतो ने प्रश्न किया था कि क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है तब यमदेव ने बताया था कि जो मनुष्य धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा में दीपक जलाकर रखेगा उसे अकाल मृत्यु का भय कभी नहीं होगा. यही कारण है कि आज भी धनतेरस के दिन लोग दक्षिण दिशा में दीया ज़रुर जलाते हैं. दक्षिण दिशा को यम की दिशा माना जाता है इसीलिए इस दिन यम की पूजा का भी विधान है

In सीरीज के फोन के डिजाइन और विकास के लिए माइक्रोमैक्स ने MediaTek से मिलाया हाथ

Micromax

माइक्रोमैक्स ‘In’ सीरीज के स्मार्टफोन को 3 नवंबर को लॉन्च होने जा रही है.

माइक्रोमैक्स (Micromax) ने बुधवार को कहा कि उसने अपने स्मार्टफोन ब्रांड ‘इन’ (In) के डिजाइन और विकास के लिए ताइवान की चिपसेट निर्माता मीडियाटेक (MediaTek) के साथ गठजोड़ किया है.

New Delhi- भारत की मोबाइल फोन कंपनी माइक्रोमैक्स (Micromax) ने बुधवार को कहा कि उसने अपने स्मार्टफोन ब्रांड ‘इन’ (In) के डिजाइन और विकास के लिए ताइवान की चिपसेट निर्माता मीडियाटेक (MediaTek) के साथ गठजोड़ किया है.500 करोड़ रुपये निवेश का लक्ष्य

माइक्रोमैक्स ने इस महीने की शुरुआत में अपने नए सब-ब्रांड ‘इन’ की घोषणा की थी और बताया था कि इसके लिए कंपनी अगले 12-18 महीनों में आरएंडडी, मैन्युफैक्चरिंग और मार्केटिंग पर 500 करोड़ रुपये निवेश करेगी.

कंपनी के इस कदम को भारतीय बाजार में उसकी वापसी की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. उम्मीद है कि नए ब्रांड के तहत उसका पहला उत्पाद नवंबर के पहले सप्ताह में बाजार में आ जाएगा. कंपनी ने बुधवार को एक बयान में कहा कि माइक्रोमैक्स स्मार्टफोन समाधान के लिए मीडियाटेक के साथ गठजोड़ कर रही है

बेंगलुरु में है आर एंड डी केंद्र

माइक्रोमैक्स ने कहा कि ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत उसका बेंगलुरु स्थिति आरएंडडी केंद्र नई ‘इन’ स्मार्टफोन श्रृंखला के लिए डिजाइन और विकास कार्य शुरू करेगा. माइक्रोमैक्स के सह-संस्थापक राहुल शर्मा ने कहा कि भारत में कंपनी की आरएंडडी इकाई नवीनतम तकनीक और मीडिया के अत्याधुनिक जी श्रृंखला वाले हेलियो चिप का इस्तेमाल करेगी.  उन्होंने कहा कि सॉफ्टवेयर विकास हमेशा से भारत की ताकत रहा है, और कंपनी सॉफ्टवेयर डिजाइन में उसी ताकत का फायदा उठाएगी.

3 नवंबर को भारत में होगी Micromax की वापसी

गौरतलब है कि माइक्रोमैक्स ने हाल ही में कहा था कि वह नए ब्रांड ‘In’ के तहत भारतीय स्मार्टफोन बाजार में वापसी करने जा रही है. कंपनी के सीईओ और को-फाउंडर राहुल शर्मा ने एक वीडियो जारी करते हुए मोबाइल मार्केट में वापसी की बात कही थी. कंपनी ‘In’ सीरीज के स्मार्टफोन को 3 नवंबर को लॉन्च होने जा रही है. इसे टीज करने के लिए कंपनी ने हाल ही में नया वीडियो जारी किया है. कंपनी के ट्विटर हैंडल से एक वीडियो शेयर किया गया है जिसमें आओ करें चीनी कम (Aao Karein Cheeni Kum) मैसेज है.

जानिए भारत में केवल कुछ राज्यों में ही क्यों है पब्लिक हेल्थ कानून

भारत के सिर्फ छह राज्य/केंद्रशासित प्रदेश ऐसे हैं, जहां लोक स्वास्थ्य (Public Health) से जुड़े कानून लागू हैं. नौ राज्य ऐसे हैं, जो चाह रहे हैं कि वो भी अपने नागरिकों के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों को कानूनी तौर पर (Legal Framework) तय करें और स्वास्थ्य संबंधी अधिकारों (Health Rights) और मानकों को तय करें, लेकिन आठ राज्य ऐसे भी हैं, जो इस दिशा में कोई कदम उठाने के लिए तैयार नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक याचिका की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार (Central Government) ने इस तरह की जानकारी दी है, हालांकि बाकी राज्यों का इस जानकारी में ज़िक्र नहीं किया गया है.स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस तरह का डेटा सुप्रीम कोर्ट को दिया तो एक जिज्ञासा यही उठती है कि आखिर क्यों सिर्फ छह राज्यों में ही स्वास्थ्य कानून हैं, बाकी में नहीं! दूसरी बात यह भी कि आखिर यह जानकारी देने की ज़रूरत ही क्यों पड़ गई? आइए जानें क्या है पूरी स्थिति.

क्यों उठा यह सवाल?

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका में कोविड 19 के इलाज से जुड़े पहलुओं के बारे में सवाल खड़े किए गए थे. इस याचिका की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र के नेशनल हेल्थ बिल 2009 की तर्ज़ पर सभी राज्यों में स्वास्थ्य कानून बनाए जाने के लिए केंद्र को निर्देश दिए थे. साथ ही, केंद्र से कहा था कि राज्यों के साथ मीटिंग कर उन्हें इस दिशा में जल्दी प्रेरित किया जाए.छह राज्यों में कैसे हैं हेल्थ कानून?
कोर्ट के निर्देश पर केंद्र ने जो जवाब दिया, उसके मुताबिक आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गोवा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम राज्य ऐसे हैं, जहां लोक स्वास्थ्य को लेकर कानूनी फ्रेमवर्क है. हालांकि इनकी स्थिति पर चर्चा ज़रूर की जाना चाहिए क्योंकि मध्य प्रदेश में इस बारे में जो कानून है, वो 1949 का है यानी देश के संविधान के बनने से और मध्य प्रदेश की स्थापना से भी पहले का.

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दूसरी तरफ, आंध्र प्रदेश में यह कानून 1939 से लागू हुआ था, जिसे समय समय पर संशोधित किया जाता रहा है. गोवा में पब्लिक हेल्थ एक्ट 1985 में बना था और उत्तर प्रदेश में तो इसी साल जब कोरोना वायरस महामारी के रूप में फैला, तभी स्वास्थ्य संबंधी कानूनी प्रक्रिया पूरी हुई.

अन्य राज्यों के हालात?
कर्नाटक, पंजाब, सिक्किम, ओडिशा, मणिपुर, झारखंड, मेघालय, महाराष्ट्र और दादर नागर हवेली व दमन दीव जल्द ही स्वास्थ्य संबंधी कानून लागू करने की तैयारी कर रहे हैं, ऐसा केंद्र सरकार के शपथ पत्र में दावा किया गया है. दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल, चंडीगढ़, जम्मू व कश्मीर, उत्तराखंड, मिज़ोरम, नागलैंड, हरियाणा और अंडमान निकोबार द्वीप समूह जैसे राज्यों/यूटी का इस बारे में कोई प्लान नहीं है.

हालांकि, नागालैंड और हरियाणा कह चुके हैं कि वो केंद्र सरकार के एक्ट को ही राज्य में लागू करने जा रहे हैं. लेकिन केंद्र सरकार का शपथ पत्र इस विषय पर बाकी राज्यों की स्थिति साफ नहीं करता.

क्या कारण हैं?
सिर्फ छह राज्यों में हेल्थ लॉ होने के पीछे बड़ा कारण तो यही है कि स्वास्थ्य राज्य के अधिकार क्षेत्र का विषय है इसलिए उसे ही एक व्यवस्था बनानी होती है. इसमें केंद्र को खास दखल नहीं होता. इसके बावजूद केंद्र सरकार ने 1955 और 1987 में दो बार कोशिश की थी कि सभी राज्य अपने स्तर पर एक आदर्श पब्लिक हेल्थ एक्ट का कॉंसेप्ट तैयार करें.

लेकिन, केंद्र के ये दोनों ही प्रयास नाकाम साबित हुए. इस बारे में राज्य सरकारों के रुचि न लेने के चलते साल 2009 में केंद्र ने ही नेशनल हेल्थ बिल के तहत एक मानक व्यवस्था देने का रवैया अपनाया.

अंतत: यह समझना चाहिए कि स्वास्थ्य समानता और न्याय की दिशा में हेल्थकेयर सेवाओं से जुड़े कानूनी प्रावधान होना ज़रूरी है. इस विषय पर द प्रिंट की रिपोर्ट में यह भी साफ कहा गया है कि कई फैसलों में सुप्रीम कोर्ट साफ कह चुका है कि संविधान के आर्टिकल 21 के तहत हेल्थकेयर मूलभूत अधिकार है.

कोविड 19 को लेकर चर्चा में स्वास्थ्य कानूनों के मुद्दे पर याचिका दायर करने वाले सचिन जैन के हवाले से लिखा गया है कि केंद्र ने यह तो बताया कि महामारी के लिए उसने डिसास्टर मैनेजमेंट एक्ट, 2005 के प्रावधानों का सहारा लिया, लेकिन कोर्ट को यह नहीं बताया गया कि किस तरह. बहरहाल, कोर्ट की कार्यवाही और पूरे देश की स्थितियों के बाद यह साफ हो जाता है कि राज्यों में हेल्थ लॉ की कमी कितनी खली है और इसे अनदेखा किया जाना कितना महंगा पड़ा.

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