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Supreme Court: तुच्छ मामलों से राष्ट्रीय महत्व के मामलों में देरी हो रही है

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की खंडपीठ ने कहा, "तुच्छ मामले संस्था को निष्क्रिय बना रहे हैं। ये मामले अदालत का महत्वपूर्ण समय बर्बाद करते हैं, जो गंभीर मामलों, अखिल भारतीय मामलों पर खर्च किया जा सकता था।"

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को कहा कि उसके समक्ष दायर किए जा रहे तुच्छ मामलों में उसका अधिकांश समय लग रहा है, जिससे संस्थान निष्क्रिय हो रहा है और राष्ट्रीय महत्व के मामलों में देरी हो रही है।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की विशेष पीठ की यह टिप्पणी एक उपभोक्ता विवाद से संबंधित एक अर्जी पर सुनवाई के दौरान आई।

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पीठ ने कहा कि मामले का निपटारा हो चुका है और अंतिम आदेश पारित किया जा चुका है लेकिन याचिकाकर्ता ने एक छोटे से मुद्दे पर फिर से एक आवेदन दिया है।

हम पहले से निपटाए गए मामले में एक और आदेश पारित नहीं कर सकते हैं। हमें आपकी बात नहीं सुननी चाहिए। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ऐसे ही बेकार होता जा रहा है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि न्यायाधीशों को दिन की शुरुआत से पहले इन फाइलों को देखने के लिए अपना महत्वपूर्ण समय बिताना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि न्यायाधीशों को राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर समय बिताने में सक्षम होना चाहिए, जो गंभीर मामले हैं।

आज, जब हम सूचीबद्ध मामलों का अध्ययन कर रहे थे, तो हमने पाया कि 95 प्रतिशत मामले तुच्छ हैं। उन्होंने कहा कि कल, मुझे COVID-19 प्रबंधन पर स्वत: संज्ञान मामले में आदेश को अंतिम रूप देना था, जो राष्ट्रीय महत्व का मामला है, लेकिन इसे अपलोड नहीं कर सका क्योंकि मुझे आज के लिए सूचीबद्ध फाइलों को देखना था, उन्होंने कहा।

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पीठ ने आवेदन पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा, “तुच्छ मामले संस्थान को निष्क्रिय बना रहे हैं। ये मामले अदालत (Supreme Court) का महत्वपूर्ण समय बर्बाद करते हैं, जो गंभीर मामलों, अखिल भारतीय मामलों पर खर्च किया जा सकता था।”

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