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Farms Law: कृषि कानून में सिविल कोर्ट जाने का रास्ता नहीं होना संवैधानिक अधिकार में दखल

बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के चेयरमैन रमेश गुप्ता ने बताया कि कानून (Farms Law) में सिविल कोर्ट के जूरिडिक्शन को खत्म करना मुख्य परेशानी का सबब है और इसके लिए पीएम को बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने लेटर भी लिखा है

There is no way to go to civil court in Farms law interfering with constitutional right
(File Photo)कृषि कानून (Farms Law) के तहत सिविल कोर्ट के जूरिडिक्शन को एसडीएम और एडीएम को सौंपा जा रहा है।

New Delhi: कृषि बिल (Farms Law) के खिलाफ किसानों का प्रदर्शन (Farmers Protest) हो रहा है और इससे संबंधित तीनों कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है जिस पर अभी सुनवाई होनी है। लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा उस कानूनी प्रावधान को लेकर है जिसमें प्रावधान किया गया है कि मामले में सिविल कोर्ट (Civil Court) जाने का प्रावधान नहीं है। इस मामले में हालांकि सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह कोर्ट जाने का प्रावधान करने पर विचार कर रही है लेकिन फिलहाल जो कानून है उसमें कोर्ट का जूरिडिक्शन नहीं है और ये विवाद का बहुत बड़ा कारण बना है कानूनी जानकारों के मुताबिक कोर्ट जाने का अधिकार संवैधानिक अधिकार है।

कृषि कानून के जान लें प्रावधान

कृषि बिल (Farms Law) से संबंधित तीन कानून हैं। इनमें कृषक उपज ट्रेड और कॉमर्स (प्रोमोशन और सरलीकरण) क़ानून, 2020, कृषक (सशक्‍तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्‍वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (अमेंडमेंट) कानून 2020 है। इनमें कृषक उपज ट्रेड और कॉमर्स (प्रोमोशन और सरलीकरण) कानून, 2020 की धारा-13 को सबसे पहले देखना जरूरी है। इस धारा के तहत प्रावधान किया गया है कि केंद्र सरकार या उनके अधिकारी या फिर राज्य सरकार या फिर उनके किसी अधिकारी या किसी और के खिलाफ इस कानून के तहत बेहतर मंशा से की गई कार्रवाई के मामले में कोई भी सूट, मुकदमा और अन्य कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाएगी। वहीं धारा-15 में प्रावधान किया गया है कि किसी भी सिविल कोर्ट का इस कानून के तहत जूडिरिडिक्शन नहीं होगा और इस कएक्ट के तहत जिस अथॉरिटी को अधिकृत किया जाएगा वही मामले में संज्ञान ले सकेगा। कानूनी जानकार बताते हैं कि इस मामले में एसडीएम और अडिशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के यहां अर्जी दाखिल किया जा सकेगा।

तो न्याय मिलना होगी दूर की कौड़ी

बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के चेयरमैन रमेश गुप्ता ने बताया कि कानून में सिविल कोर्ट के जूरिडिक्शन को खत्म करना मुख्य परेशानी का सबब है और इसके लिए पीएम को बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने लेटर भी लिखा है कृषि कानून (Farms Law) के तहत सिविल कोर्ट के जूरिडिक्शन को एसडीएम और एडीएम को सौंपा जा रहा है। कैसे सिविल कोर्ट के कार्यवाही के जूरिडिक्शन को एडमिनिस्ट्रेटिव एजेंसी को सौंपा जा सकता है। क्योंकि एडमिनिस्ट्रेटिव एजेंसी तो कार्यपालिका के कंट्रोल में होता है। संविधान का जो प्रावधान है उसके तहत जूडिशियरी को कार्यपालिका से अलग किया गया है। लेकिन इस कानून के तहत जो प्रावधान किया गया है वह संविधान के तहत मान्य नहीं है। इससे आम लोगों के हितों के साथ समझौता हो जाए और ब्यूरोक्रेसी के सामने न्याय मिलना दूर की कौड़ी होगी।

तो कृषि कानून से CPC हो गया निष्प्रभावी?

इस कानून (Farms Law) पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि ये नहीं भूलना चाहिए कि जूडिशियरी आम लोगों के अधिकार का रक्षक है। कार्यों के बंटवारे के साथ समझौता नहीं किया जा सकता है। वैसे सरकार ने इस मामले में प्रस्ताव दिया है कि सिविल कोर्ट जाने का विकल्प दिया जा सकता है। किसानों के विरोध के बीच जो बातचीत चल रही है उसी के तहत केंद्र सरकार ने प्रस्ताव दिया है कि विवाद के संदर्भ में जो माजूदा व्यवस्था की गई है उसके अतिरिक्त सिविल कोर्ट जाने का विकल्प दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में कृषि कानून को चुनौती देने वाले एपी सिंह बताते हैं कि इस कानून ने सीपीसी के प्रावधान को ही इस कानून में निष्प्रभावी कर दिया गया। दरअसल जब जमीन विवाद या संपत्ति विवाद होता है तो सिविल प्रक्रिया की धारा यानी सीपीसी अप्लाई होता है और सिविल कोर्ट का जूरिडिक्शन बनता है लेकिन इस कानून में सिविल कोर्ट का दरवाजा ही बंद कर दिया गया है जो गैर संवैधानिक है।

यहां फंस रहा है पेच

कोई भी कानून संविधान के प्रावधान से ऊपर नहीं हो सकता। कानून बनाकर कोर्ट का जूरिडिक्शन या विकल्प को खत्म नहीं किया जा सकता। इस मामले में कोर्ट का जूरिडिक्शन खत्म किया गया है। संविधान के तहत हर नागरिक को न्याय पाने का अधिकार है उससे कैसे वंचित किया जा सकता है। कोर्ट का अधिकार एसडीएम को नहीं दिया जा सकता क्योंकि एसडीएम न्यायिक अधिकारी नहीं बल्कि प्रशासनिक अधिकारी है। इस तरह से देखा जाए तो हर व्यक्ति को न्याय पाने का जो मौलिक अधिकार है उससे वंचित किया जा रहा है और ये संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर के खिलाफ है।

विकल्प के तौर पर न तो ट्रिब्यूनल और न ही रिवेन्यू कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट केटीएस तुलसी बताते हैं कि इस मामले में केंद्र सरकार ने जो कानून बनाया है उसमें कई ऐसे मुद्दे हैं जो संवैधानिक है। संविधान के तहत कृषि राज्य का विषय है और राज्य सरकार इस पर कानून बना सकती है। लेकिन इस मामले में केंद्र सरकार ने संसद के जरिये कानून बनाया जो सुप्रीम कोर्ट के सामने चुनौती का विषय हो सकता है क्योंकि ये संविधान के प्रावधान के खिलाफ है। कृषक उपज ट्रेड और कॉमर्स (प्रोमोशन और सरलीकरण) क़ानून, 2020 की धारा-13 व 15 आदि को देखने से साफ है कि न्यायिक जूरिडिक्शन को ही खत्म कर दिया गया है। कानून में सिविल कोर्ट का रास्ता बंद किया गया है लेकिन उसके विकल्प के तौर पर न तो ट्रिब्यूनल बनाया गया और न ही रिवेन्यू कोर्ट आदि का जूरिडिक्शन दिया गया। बल्कि कहा गया है कि एसडीएम या ए़डीएम का जूरिडिक्शन होगा।

संविधान का बेसिक स्ट्रेक्चर जान लीजिए

संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का पार्ट है कि हर व्यक्ति को न्याय पाने का अधिकार है उससे किसी को वंचित नहीं किया जा सकता। यहां जो कानून बनाया गया है उसमें सिविल कोर्ट का जूरिडिक्शन खत्म कर कोई वैकल्पिक ट्रिब्यूनल का ऑप्शन नहीं है और ये देखा जाए तो संविधान के तहत हर नागरिक को न्याय पाने का जो अधिकार है उससे वंचित करने जैसा है। वैसे ही कोई भी प्रावधान हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के रिट के अधिकार में दखल नहीं दे सकता। ये तमाम ऐसे मद्दे हैं जो संवैधानिक व्यवस्था में दखल जैसा है और सुप्रीम कोर्ट के सामने ये मसला उठना चाहिए और उठेगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट संविधान का गार्जियन होता है।

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