Chakra एक संस्कृत शब्द है और इसका अर्थ है पहिया। प्राचीन भारत में, चक्रों का उपयोग ऊर्जा के विभिन्न रूपों के रूप में किया जाता था। यह ध्यान अभ्यास में प्रयुक्त मानव शरीर का केंद्र बिंदु है। मानव शरीर में 7 मुख्य चक्र होते हैं और इसे मंत्रों और ध्यान द्वारा सक्रिय किया जा सकता है।
प्रत्येक Chakra के अपने मंत्र और मुद्राएं होती हैं। चक्रों को खोलने के लिए आपको सही मंत्र और मुद्रा की आवश्यकता होती है। लेकिन सबसे पहले आपको यह जानना होगा कि चक्र क्या है और यह कैसे काम करता है।
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Chakra क्या हैं?
मानव शरीर में 7 मुख्य ऊर्जा केंद्र होते हैं। इन प्रमुख ऊर्जा केंद्रों को Chakra कहा जाता है। Chakra सिर से रीढ़ की हड्डी के नीचे तक चलते हैं।
7 मुख्य Chakra हैं:
मूलाधार चक्र – मूल चक्र
स्वाधिष्ठान चक्र – त्रिक चक्र
मणिपुर चक्र – सौर जाल चक्र
अनाहत चक्र – हृदय चक्र
विशुद्ध चक्र – गले का चक्र
आज्ञा चक्र – तीसरा नेत्र चक्र
सहस्रार चक्र – ताज चक्र
चक्रों को सक्रिय करने के लिए आप मंत्रों का जाप कैसे करते हैं?
अपने चक्रों को खोलने के लिए आपको मंत्रों का सही जप करना होगा। प्रत्येक चक्र के लिए मंत्रों का जाप करने के लिए अपनी स्वाभाविक आवाज का प्रयोग करें, उच्च या निम्न स्वर में मंत्रों का जाप न करें।
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प्रत्येक Chakra के लिए मंत्र नीचे पढ़ें:
मूल चक्र – ‘लम’ का जाप करें
यह Chakra रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से के आसपास होता है। इस चक्र को कुलकुण्डलिनी का मुख्य स्थान कहा जाता है , इसका एक और नाम भौम मंडल भी है। यह चक्र चौकोर तथा उगते हुये सूर्य के समान स्वर्ण वर्ण का है, भौतिक रूप से सुगंध और आरोग्य इसी चक्र से नियंत्रित होते हैं।
आध्यात्मिक रूप से धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष का नियंत्रण करता है। इसका बीजाक्षर है – “लं” व्यक्ति के अन्दर अत्यधिक भोग की इच्छा और आध्यात्मिक इच्छा इसी चक्र से आती है।
मूल चक्र के लिए ‘लम’ का जाप करें। यह चक्र आपकी समृद्धि, सामान और सुरक्षा की भावना को खोलता है। यदि आप कम ऊर्जा महसूस करते हैं तो आप ‘लम’ मंत्र का जाप कर सकते हैं।
स्वाधिष्ठान चक्/ त्रिक चक्र- ‘वम’ का जप करें
जनन अंग के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है, इस चक्र का स्वरुप अर्ध-चन्द्राकार है, यह जल तत्त्व का चक्र है। इस चक्र से निम्न भावनाएँ नियंत्रित होती हैं, अवहेलना, सामान्य बुद्धि का अभाव, आग्रह, अविश्वास, सर्वनाश और क्रूरता। यह चक्र छह पंखुड़ियों का है। इसी चक्र से व्यक्ति के अन्दर काम भाव और उन्नत भाव जाग्रत होता है।
इस चक्र का बीज मंत्र है “वं” इस चक्र को तामसिक चक्र माना जाता है।
VAM त्रिक चक्र के लिए एक सफाई मंत्र है। यह चक्र कामुकता, कामुकता और आनंद की इच्छा से संबंधित है। इस चक्र को खोलने के लिए ‘वम’ का जाप करें।
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मणिपुर चक्/सौर जाल चक्र – ‘राम’ का जाप करें
यह Chakra नाभि के ठीक पीछे रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है। इस चक्र की आकृति त्रिकोण है, और रंग रक्त के समान लाल है। यह चक्र ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र है , यहीं से सारे शरीर में ऊर्जा का संचरण होता है।
यह अग्नि तत्त्व को नियंत्रित करता है और राजसिक गुण से संपन्न है। यह चक्र १० पंखुड़ियों का है।
इस चक्र से निम्न वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं, लज्जा, दुष्ट भाव, ईर्ष्या, सुषुप्ति, विषाद, कषाय, तृष्णा, मोह, घृणा व भय।
मन या शरीर पर पड़ने वाला प्रभाव सीधा मणिपुर चक्र पर पड़ता है। इस चक्र का बीज मंत्र है- “रं”
यह चक्र आपको अपने भाग्य को नियंत्रित करने और शक्तिशाली महसूस करने की अनुमति देता है। इस चक्र को खोलने के लिए ‘राम’ मंत्र का जाप करें। आप इस चक्र से अपने भाग्य को नियंत्रित कर सकते हैं।
अनाहत चक्र/हृदय चक्र – ‘यम’ का जाप करें
ह्रदय के बीचों बीच रीढ़ की हड्डी पर स्थित चक्र को अनाहत चक्र कहा जाता है। हृदय चक्र प्रेम से जुड़ा है।
इस Chakra को सौर मंडल भी कहा जाता है। इसका वर्ण हल्का हरा है। इसका आकार षठकोण का है। इस चक्र में १२ पंखुड़ियां हैं।
इस चक्र से निम्न प्रकार की वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं, आशा, चिंता, चेष्टा, ममता, दंभ, विवेक, विकलता, अहंकार, लोलता, कपटता, वितर्क, अनुताप।
व्यक्ति की भावनाएँ और साधना की आंतरिक अनुभूतियाँ इस चक्र से सम्बन्ध रखती हैं। मानसिक अवसाद की दशा में इस चक्र पर गुरु ध्यान और प्राणायाम करना अदभुत परिणाम देता है। इस चक्र का बीज मंत्र है – “यं”
यदि आप अपने रिश्ते में प्यार या कठिनाइयों का अनुभव कर रहे हैं तो आपको ‘यम’ मंत्र का जाप करना चाहिए। आध्यात्मिक दृष्टि से यहीं से साधक के सतोगुण की शुरुआत होती है। इसी चक्र से व्यक्ति की भावनाएँ और अनुभूतियों की शुरुआत होती है।
विशुद्ध चक्र/गला चक्र – ‘हम’ का जाप करें
कंठ के ठीक पीछे स्थित चक्र है, विशुद्ध चक्र, यह चक्र और भी उच्चतम आध्यात्मिक अनुभूतियाँ देता है , सारी की सारी सिद्धियाँ इसी चक्र में पायी जाती हैं।
यह Chakra बहुरंगा है और इसका कोई एक ख़ास स्वरुप नही है। यह चक्र आकाश तत्त्व और आठों सिद्धियों से सम्बन्ध रखता है।
इस चक्र की १६ पंखुड़ियां हैं, कुंडली शक्ति का जागरण होने से जो ध्वनि आती है वह इसी चक्र से आती है।
इस चक्र के गड़बड़ होने से वैज्ञानिक रूप से थाईराइड जैसी समस्याएँ और वाणी की विकृति पैदा होती है। संगीत के सातों सुर इसी चक्र का खेल हैं।
इसका बीज मंत्र है – “हं” इस चक्र से निम्न वृत्तियाँ नियंत्रित होती हैं। भौतिक ज्ञान, कल्याण, महान कार्य, ईश्वर में समर्पण, विष और अमृत।
यह चक्र आपकी शारीरिक और आध्यात्मिक आवाज से संबंधित है। मंत्र जाप और सांस लेने के व्यायाम इस चक्र की शक्ति को बढ़ा सकते हैं।
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आज्ञा चक्र/तीसरा नेत्र चक्र – ‘OM या A’ का जाप करें
दोनों भौहों के बीच स्थित चक्र को आज्ञा चक्र कहा जाता है।
यह Chakra दो पंखुड़ियों वाला है, एक पंखुड़ी काले रंग की और दूसरी पंखुड़ी सफ़ेद रंग की है।
सफ़ेद पंखुड़ी ईश्वर की ओर जाने का प्रतीक है , और काली पंखुड़ियों का अर्थ संसारिकता की ओर जाने का है।
चक्र के दो अक्षर और दो बीज मंत्र हैं – ह और क्ष
इस चक्र का कोई ध्यान मंत्र नहीं है क्योंकि यह पांच तत्वों और मन से ऊपर होता है। इस चक्र पर मंत्र का आघात करने से शरीर के सारे चक्र नियंत्रित होते हैं।
इसी चक्र पर इडा, पिंगला और सुषुम्ना आकार खुल जाती हैं और मन मुक्त अवस्था में पंहुँच जाता है।
यह चक्र आपके माथे के बीच में स्थित है। इस चक्र को खोलने के लिए ओम या ओम् मंत्र का जाप करें। तीसरा नेत्र चक्र जागरूकता और मार्गदर्शन से जुड़ा है।
सहस्रार चक्र/क्राउन चक्र – ओम या आह का जाप करें
मष्तिष्क के सबसे उपरी हिस्से पर जो चक्र स्थित होता है, उसे सहस्त्रार कहा जाता है। क्राउन चक्र आध्यात्मिक संबंध से संबंधित है। यह चक्र आपके सिर के ऊपर थोड़ा ऊपर स्थित है।
यह Chakra सहस्त्र पंखुड़ियों वाला है , और बिलकुल उजले सफ़ेद रंग का है।
इस चक्र का न तो कोई धयान मंत्र है और न ही कोई बीज मंत्र , इस चक्र पर केवल गुरु का ध्यान किया जाता है।
कुण्डलिनी जब इस चक्र पर पहुँचती है तब जाकर वह साधना की पूर्णता पाती है और मुक्ति की अवस्था में आ जाती है।
इसी स्थान को तंत्र में काशी कहा जाता है, इस स्थान पर सदगुरु का ध्यान या कीर्तन करने से व्यक्ति के मुक्ति मोक्ष का मार्ग सहज हो जाता है।