बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) के मद्देनज़र यह मुद्दा गूंज रहा है कि बिहार में पिछली सरकारों की तुलना में नीतीश कुमार सरकार (Nitish Kumar Government) के कार्यकाल में अपराध कम (Crime Rate) हुए हैं और अपराधियों पर लगाम लगी है.
चुनाव से पहले भी इसी मुद्दे पर नीतीश कुमार को ‘सुशासन बाबू’ जैसे नाम मिले और इस तरह की कई रिपोर्ट्स प्रकाशित हुईं कि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) सरकार के समय जैसे बिहार में जंगल राज (Jungle Raj) था, उसका कायापलट जेडीयू सरकार (JDU Government) ने किया, बयानबाज़ी अपनी जगह, लेकिन आंकड़े क्या कहते हैं? वास्तव में सूरते हाल क्या है?
चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) तक बिहार (Bihar) की जनता को यह याद दिला रहे हैं कि लालू सरकार के समय में बिहार की ‘आपराधिक राज्य’ की छवि थी, जो एनडीए के साथ जुड़े नीतीश कुमार की सरकार में ‘सुशा सन’ में बदल गई. बिहार में अपराध कंट्रोल कर लिये गए. लेकिन क्राइम रिकॉर्ड्स का हवाला तो सियासी रैलियों में नहीं दिया जाता. चलिए इन रिकॉर्ड्स में देखते हैं कि माजरा क्या है.
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क्राइम रिकॉर्ड: लालू बनाम नीतीश सरकार1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव और फिर उनकी पत्नी राबड़ी देवी बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज़ रहे। साल 2005 में नीतीश कुमार की सरकार बनी और पिछले 15 साल से बिहार में नीतीश सरकार कायम है. दोनों के समय के आंकड़े देखे जाएं तो 2004 में राबड़ी देवी सरकार के समय बिहार में प्रति एक लाख आबादी पर क्राइम की दर 122.4 थी.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार इस दर में 2019 में 34.6 फीसदी का इज़ाफा देखा गया और 15 साल बाद क्राइम दर 164.8 रही. इन आंकड़ों में एक और तथ्य यह है कि 2004 में, देश के अपराध में बिहार (Bihar) का कुल हिस्सा 5.9 फीसदी का था. उस वक्त, 7 राज्य/केंद्रशासित प्रदेश देश की आपराधिक दर में सबसे ज़्यादा हिस्सेदारी रखते थे.
हालांकि 2014 से 2019 के बीच बिहार की अपराध दर कुछ कम होती ज़रूर दिखी, इसके बावजूद देश के क्राइम रेट में बिहार (Bihar) का हिस्सा बढ़ा है और इस लिस्ट में बिहार प्रतिशत के हिसाब से दो रैंक बढ़कर ज़्यादा क्राइम वाला राज्य बन गया है.
बिहार पुलिस के डेटा से यह खुलासा होता है कि 2014 से 2019 के बीच पूर्ण संख्या के हिसाब से संज्ञेय अपराधों में आश्चर्यजनक तौर पर 133.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई. इन्हीं रिकॉर्ड्स से यह भी खुलासा हुआ कि महिलाओं के प्रति अपराध भी बेतहाशा बढ़े. 2004 में जहां महिलाओं के खिलाफ 8091 अपराध दर्ज हुए, वहीं 2019 में 18,587 यानी दोगुने से भी ज़्यादा.
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बिहार (Bihar) में अपराध के आंकड़ों का विश्लेषण हमेशा ही दिलचस्प रहा है. 2004 और 2019 के आंकड़ों के तुलनात्मक अध्ययन में डकैती के केसों में पहले की तुलना में 80 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई. जेडीयू सरकार को इस बात का श्रेय भी मिलना चाहिए कि बिहार में हत्याओं के अपराधों में भी 42.2 फीसदी कमी आई है. अगर डकैती और हत्या के अपराध इतने कम हुए हैं, तो अपराध बढ़े कहां हैं?
जेडीयू सरकार (JDU Government) के कार्यकाल में हत्या के प्रयास के केस 82.3 फीसदी बढ़े हैं. यानी हत्याओं के मामले जितने कम हुए हैं लेकिन हत्या के मकसद से हमले के मामले उसके करीब दोगुने ढंग से बढ़े हैं. दूसरी तरफ, चोरी की घटनाएं बेतहाशा 130 फीसदी से ज़्यादा बढ़ी हैं. साथ ही, 2009 से 2019 के बीच रॉबरी के अपराध भी 17.6 प्रतिशत ज़्यादा हो गए हैं.
तो ये हैं बिहार (Bihar) में क्राइम के आंकड़े और ध्यान रखने की बात यह भी है कि बिहार की आबादी 2001 की जनगणना के अनुसार करीब 8 करोड़ 30 लाख थी और 2011 की जनगणना के मुताबिक 10 करोड़ 41 लाख. बहरहाल, इन आंकड़ों के आईने में सियासी बयानों की हकीकत आपको ही देखना है.