शोध का मकसद रेमडेसिविर के शुरू करने के समय का मूल्यांकन करना था. डॉक्टर ये जानना चाहते थे कि हल्के लक्षण से लेकर मध्य लक्षण के दौरान दवा का क्या असर होता है. शोध के नतीजे से पता चला कि लक्षण शुरू होने से 9 दिनों के बीच रेमडेसिविर के इलाज से मौत को कम किया जा सकता है. उन्होंने कहा, “दवा उस वक्त सबसे ज्यादा असरदार होती है जब बीमारी के शुरुआती चरणों में दिया जाए.”
रेमडिसिविर लेनेवाले 350 मरीजों में से चार को साइड इफेक्ट होने पर परीक्षण से हटा दिया गया. 350 मरीजों के ग्रुप में 270 मरीज पुरुष थे. सबसे बुजुर्ग पुरुष मरीज की उम्र 94 साल थी जबकि सबसे कम उम्र का 24 वर्षीय मरीज था. सभी मरीजों की औसत आयु 60 साल थी. मरीजों को मध्यम और लक्षणों में बांटा गया था. उनमें से 109 मरीजों को कोविड-19 का मध्यम लक्षण और 237 को बीमारी का गंभीर लक्षण था.
अपोलो अस्पताल बेंगलुरू के डॉक्टरों ने किया खुलासा
अस्पताल में भर्ती होने पर लक्षण शुरू होने के 9 दिनों के अंदर 260 मरीजों को और 86 मरीजों को नौवें दिन के बाद दवा दी गई. इस दौरान पता चला कि 76 (22 फीसद ) मरीजों की मौत हो गई. 76 मरीजों में 73 को गंभीर संक्रमण से जूझना पड़ा और तीन को मध्यम लक्षण का सामना करना पड़ा.
9 दिनों के अंदर रेमडेसिविर लेनेवाले 260 मरीजों में 174 का संक्रमण गंभीर था जबकि 260 में से 47 (18 फीसद) मरीजों की मौत हो गई. ग्रुप में शामिल मरीजों का मृत्यु दर 34 फीसद (23 गंभीर और 63 मध्यम लक्षण) पाया गया यानी रेमडेसिविर की देरी से 23 मरीज गंभीर लक्षण और 63 बीमारी के मध्यम लक्षण से पीड़ित हुए. गौरतलब है कि भारत में किए गए शोध के नतीजे विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के बिल्कुल विपरीत है.
‘डब्ल्यूएचओ सॉलिडरिटी ट्रायल’ के अंतरिम नतीजे के हवाले से बताया गया था कि कोविड-19 के सिलसिले में चार दवाओं का मृत्यु दर घटाने, श्वसन को सुचारू करने और अस्पताल में भर्ती रहने की अवधि पर कोई असर नहीं पड़ा. डब्ल्यूएचओ ने रेमडेसिविर, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन, लोपिनाविर/रिटोनोविर और इंटरफेरोन का 30 देशों के 405 अस्पतालों में 11 हजार 666 बालिगों पर परीक्षण के बाद खुलासा किया था.