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Supreme Court ने वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की

केंद्र सरकार ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, न कि धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करना।

Supreme Court में हाल ही में वक्फ अधिनियम, 1995 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हुई है, जिसने ‘धार्मिक आस्था’ और ‘निजी संपत्ति के अधिकार’ जैसे संवेदनशील मुद्दों को एक बार फिर राष्ट्रीय बहस के केंद्र में ला दिया है।

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याचिकाकर्ताओं में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, AAP नेता अमानतुल्लाह खान, RJD सांसद मनोज कुमार झा और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी शामिल हैं।

याचिकाकर्ताओं ने यह दलील दी है कि वक्फ अधिनियम मुस्लिम धर्मस्थलों से जुड़ी संपत्तियों को बिना प्रभावी न्यायिक प्रक्रिया के वक्फ संपत्ति घोषित करने की अनुमति देता है, जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 300A (कानून द्वारा प्रदत्त संपत्ति का अधिकार) का उल्लंघन होता है। Supreme Court के समक्ष यह प्रश्न भी उठा कि क्या राज्य एक धर्मविशेष की संस्थाओं को संपत्ति पर विशिष्ट नियंत्रण दे सकता है, जबकि समानान्तर धार्मिक संस्थानों के साथ ऐसा नहीं होता।

Supreme Court ने सुनवाई के दौरान अहम सवाल उठाए


Supreme Court hears petitions challenging the Waqf Act

सुनवाई के दौरान, Supreme Court ने दो प्रारंभिक प्रश्न उठाए: (1) क्या इस मामले की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जानी चाहिए या इसे उच्च न्यायालय को भेजा जाना चाहिए? और (2) याचिकाकर्ता किन विशिष्ट संवैधानिक मुद्दों को उठाना चाहते हैं?

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें प्रस्तुत करते हुए कहा कि संशोधन अधिनियम के तहत वक्फ स्थापित करने के लिए किसी व्यक्ति को कम से कम पांच वर्षों तक इस्लाम का पालन करना आवश्यक बताया गया है, जो राज्य द्वारा किसी की धार्मिक पहचान निर्धारित करने का प्रयास है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि अधिनियम के तहत कलेक्टर को वक्फ संपत्ति निर्धारित करने का अधिकार दिया गया है, जिससे न्यायिक निष्पक्षता पर प्रश्न उठते हैं।

अधिनियम की धारा 14 के तहत वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने के प्रावधान पर भी आपत्ति जताई गई, जिसे धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता में हस्तक्षेप माना गया। इसके अतिरिक्त, ‘वक्फ बाय यूज़र’ प्रावधान को हटाने और लिमिटेशन एक्ट, 1963 को लागू करने के निर्णयों पर भी चिंता व्यक्त की गई, जिससे वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जों को वैधता मिलने की आशंका है।

Supreme Court hears petitions challenging the Waqf Act

केंद्र सरकार ने अधिनियम का बचाव करते हुए कहा कि इसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है, न कि धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप करना।

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